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राज और उद्धव ठाकरे साथ आते हैं तो महाविकास अघाड़ी का क्या होगा? क्या करेंगे शरद पवार, कांग्रेस के पास क्या ऑप्शन

Will Raj Uddhav Thackeray Come Together: अगर राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच गठबंधन होता है तो शिवसेना (यूबीटी) के साथ महाविकास अघाड़ी (MVA) में शामिल कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार) का क्या रुख होगा. क्या यह गठबंधन टूट जाएगा या सभी पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ेंगी?

राज और उद्धव ठाकरे साथ आते हैं तो महाविकास अघाड़ी का क्या होगा? क्या करेंगे शरद पवार, कांग्रेस के पास क्या ऑप्शन
Sumit Rai|Updated: Jul 03, 2025, 07:51 AM IST
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Raj Thackeray-Uddhav Thackeray Alliance: महाराष्ट्र में लंबे समय तक एक-दूसरे के विरोधी रहे शिवसेना (यूबीटी) के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे और एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे के एक साथ आने की संभावना है. कई रिपोर्ट्स में दोनों भाइयों के बीच आगे गठबंधन होने की भी संभावना जताई जा रही है. लेकिन, इसके बाद सवाल उठता है कि अगर राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच गठबंधन होता है तो शिवसेना (यूबीटी) के साथ महाविकास अघाड़ी (MVA) में शामिल कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार) का क्या रुख होगा. इस पर समाजवादी पार्टी की महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष अबू आजमी ने बुधवार को दावा किया कि यदि ऐसा हुआ तो विपक्षी गठबंधन महा विकास अघाड़ी में फूट पड़ सकती है.

क्या महाविकास अघाड़ी में पड़ेगी फूट?

उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के साथ आने पर सपा नेता अबु आजमी ने कहा, 'अच्छी बात है कि दोनों साथ आ रहे हैं और हमें इसे कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन, मुझे लगता है कि दोनों के साथ आने से महाविकास अघाड़ी में फूट पड़ सकती है." सपा के स्टैंड पर उन्होंने कहा कि पार्टी का इससे कोई लेना-देना नहीं है, वह इस गठबंधन से अलग है.

मुंबई में बृहन्मुंबई महानगर पालिका (BMC) चुनाव को लेकर कहा जा रहा है कि दोनों भाई साथ आ रहे हैं. दूसरी ओर कांग्रेस बीएमसी चुनाव में अलग से उतरने की तैयारी कर रही है. अगर बीएमसी चुनाव में राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे साथ आकर चुनाव लड़ते हैं तो कहीं न कहीं महाविकास अघाड़ी के टूटने के आसार बढ़ जाएंगे.

उद्धव-राज ठाकरे पर क्या है कांग्रेस का रुख? 

उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के साथ आने पर महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के साथ आने की बात पारिवारिक मामला है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस केवल शिवसेना (यूबीटी) के उद्धव ठाकरे और एनसीपी (एसपी) के शरद पवार के साथ गठबंधन के मामलों पर चर्चा करेगी. अगर वो उप-गठबंधन करना चाहते हैं तो यह उनका फैसला होगा. पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा, 'यदि हम गठबंधन (स्थानीय निकाय चुनावों में) में जाते हैं, तो हम गठबंधन सहयोगियों के नेताओं के साथ सीटों का बंटवारा करेंगे. अब, वे किसके साथ उप-गठबंधन करते हैं, यह पूरी तरह से उनकी स्थिति है.'

उद्धव-राज के साथ आने पर बीजेपी का क्या रुख?

रत्नागिरि-सिंधुदुर्ग से भारतीय जनता पार्टी के सांसद एवं महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे ने उद्धव ठाकरे पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि उद्धव ठाकरे को हिंदुत्व और मराठी भाषा पर बोलने का कोई अधिकार नहीं है. उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के साथ आने की चर्चाओं को लेकर नारायण राणे ने कहा, 'कोई किधर भी जाए वह उनका निजी फैसला है. राज ठाकरे कभी उद्धव ठाकरे को नहीं बुलाएंगे, क्योंकि उनके पास अब शिवसेना कहां बची है. असली शिवसेना एकनाथ शिंदे की है, उद्भव ठाकरे की शिवसेना नकली है. विपक्ष के पास सरकार को घेरने की ताकत नहीं है.'

दोनों भाइयों के साथ आने पर भाजपा को तकलीफ वाले उद्धव ठाकरे के बयान पर नारायण राणे ने कहा, 'हमें कोई तकलीफ नहीं, दो भाई ही नहीं और भी भाई जोड़ लो, हमें कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. हमारी महायुति की सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता. हमारे पास 235 विधायक हैं.' उन्होंने कहा, 'अगर दोनों भाई साथ आते हैं तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. अगर उद्धव को राज ठाकरे पर बहुत प्यार आ रहा है तो मातोश्री का एक भाग राज ठाकरे तो दे दें. उद्धव ठाकरे दो बार राज ठाकरे के साथ धोखा कर चुके हैं और इस बार भी धोखा दे देंगे. राज ठाकरे की जिम्मेदारी है उद्धव ठाकरे को पहचानें.'

विशेष जन सुरक्षा विधेयक पर क्या बोले अबु आजमी

विशेष जन सुरक्षा विधेयक पर जब सपा के वरिष्ठ नेता अबू आजमी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि देश में पहले से ही ऐसे कानून हैं, जिनके तहत लोगों को आजीवन कारावास या यहां तक कि फांसी की सजा भी दी जा सकती है. नया कानून लाकर आप और क्या हासिल करेंगे? नया कानून लाने से कोई फायदा नहीं होगा. देश में सेक्युलरिज्म, बोलने की आजादी है. लेकिन, इस बिल को लाकर लोकशाही को खत्म करके तानाशाही लाने की तैयारी है. मैं समझता हूं कि संविधान को मानने वाले लोग इसका जरूर विरोध करेंगे. जन सुरक्षा विधेयक को लेकर दूसरे विपक्षी नेताओं की चिंता मुख्य रूप से बोलने की आजादी और आंदोलन के संवैधानिक अधिकारों पर इसके संभावित प्रभाव को लेकर है। विपक्षी नेताओं का मानना है कि इस विधेयक के तहत विरोध करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है. विपक्ष इसे लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए खतरनाक और सरकार की ओर से राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश के रूप में बता रहा है.
(इनपुट- न्यूज़ एजेंसी आईएएनएस)

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