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Lok Sabha Election 2024: बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला, अंतिम समय में साइलेंट वोटर बदल सकते हैं सीट का गणित

Lok Sabha Election 2024: पिछले दस साल से बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट भाजपा के पास है. बीजेपी इस सीट पर हैट्रिक लगाने के सभी जतन कर रही हैं लेकिन मंत्री कैलाश चौधरी के लिए गठबंधन के बाद रालोप से कांग्रेस में आए उम्मेदाराम बेनीवाल एक बड़ी चुनौती बना गए हैं.

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lok sabha election - zee rajasthan
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Nizam Kantaliya|Updated: Apr 24, 2024, 09:14 AM IST
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Barmer News: लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में प्रदेश की सबसे बड़ी लोकसभा सीट बाड़मेर जैसलमेर पर 26 अप्रैल को चुनाव होगा. त्रिकोणीय मुकाबले में फंसी इस सीट पर अब जातीय समीकरण ही जीत तय करेंगे.

प्रदेश की सबसे बड़ी लोकसभा सीट बाड़मेर जैसलमेर पर 62 साल बाद एक बार फिर से एक निर्दलीय प्रत्याशी के चलते यह सीट त्रिकोणीय मुकाबले में फंस गई है. इस सीट पर बीजेपी से कैलाश चौधरी, कांग्रेस से उम्मेदाराम बेनीवाल और निर्दलीय प्रत्याशी रविन्द्र सिंह भाटी चुनावी मैदान में हैं. मोदी फैक्टर और राष्ट्रीय मुद्दो पर चुनाव लड़ रही बीजेपी यहां जातीय समीकरण में उलझ गई हैं. भाजपा और कांग्रेस दोनों ने जाट प्रत्याशी को टिकट दिया तो राजपूत समाज से भाटी निर्दलीय चुनाव लड़ने उतर गए. ऐसे में अब इस सीट पर दूसरी जातियों की भूमिका अहम हो गई है.

उम्मेदाराम बेनीवाल एक बड़ी चुनौती बना गए
पिछले दस साल से यह सीट भाजपा के पास है. बीजेपी इस सीट पर हैट्रिक लगाने के सभी जतन कर रही हैं लेकिन मंत्री कैलाश चौधरी के लिए गठबंधन के बाद रालोप से कांग्रेस में आए उम्मेदाराम बेनीवाल एक बड़ी चुनौती बना गए हैं.

रविन्द्र सिंह भाटी राजपूत वोट बैंक पर एकतरफा मौजूदगी दिखा सकते
त्रिकोणीय मुकाबले के चलते यहां के वोटर्स भी आपस में बंट गए हैं. उम्मेदाराम बेनीवाल को रालोप के साथ कांग्रेस के वोट बैंक का फायदा मिल सकता है.तो वही रविन्द्र सिंह भाटी राजपूत वोट बैंक पर एकतरफा मौजूदगी दिखा सकते हैं. दूसरी तरफ भाजपा और कांग्रेस में जाट वोटों का बंटवारा होने से चुनाव में मूल ओबीसी, अल्पसंख्यक, एससी-एसटी जीत की दिशा तय कर सकते हैं.

जातिवाद का मुद्दा सबसे हावी
जातीय समीकरण के बावजूद वोटर्स का एक बड़ा वर्ग स्थानीय मुद्दों पर गभीर है.पानी की कमी, सड़कों की स्थिति और स्थानीय युवाओं को रोजगार देने का मुद्दे भी हावी हैं.,इसके साथ मोदी और राष्ट्रीय मुद्दो के प्रति भी एक वर्ग का झुकाव हैं, लेकिन इन सभी मुद्दों से परे यहां जातिवाद का मुद्दा सबसे हावी है.

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