Maharana Kumbha : राजस्थान को योद्धाओं में राणा सांगा की कहानी अब सभी की जुबान पर है, लेकिन क्या आप महाराणा कुंभा को जानते हैं. जो महाराणा प्रताप से पहले अपनी वीरता और शौर्य के झंडे गाड़ चुके थे. महाराणा कुंभा कभी कोई युद्ध नहीं हारे, कुंभलगढ़ का किला आज भी महाराणा की अद्म्य साहस को दिखाता है.
राजस्थान में चीन के बाद दूसरी सबसे बड़ी दीवार भी महाराणा कुंभा ने ही बनवायी थी. जब कुंभा ने मालवा पर हमला किया था, महमूद खिलजी के क्षमा याचना करने पर कुंभा ने उसे छोड़ दिया था. लेकिन फिर से महमूद खिलजी ने कुंभलगढ़ पर हमला कर दिया, और एक बार फिर से महाराणा से हारा.
दरअसल सांरगपुर युद्ध राणा कुंभा और महसून खिलजी के बीच हुआ था. जब राणा कुंभा ने अपने पिता राणा मोकल के हत्यारों में से एक महपा पंवार की मांग की, तो खिलजी ने हत्यारे को सौंपने से इनकार कर दिया. विरोध में महाराणा कुंभा ने युद्ध की घोषणा की और खिजली को खड़ेद दिया.
लेकिन एक बार फिर महमूद खिलजी ने गागरोन पर हमला किया और किले को अपने कब्जे में कर लिया. महाराणा कुंभा ने इसके बाद महमूद खिलजी को मालगढ़, अजमेर और जावर में हराया. जब तक महाराणा कुंभा का शासन रहा मुगलों का सिर झुका रहा. महाराणा कुंभा ने चित्तौड़गढ़ के भीतर 9 मंजिले और 122 फीट ऊंचे विजय स्तंभ को बनवाया था.
माना जाता है कि महाराणां कुंभा की मौत उनके खुद के बेटे के हाथ हुई . महाराणा कुंभा के बेटे उदयकरण सिंह ने 1468 में षडयंत्र किया था और अपने पिता की हत्या कर दी थी. और सत्ता हासिल कर ली. लेकिन उसका शासन ज्यादा वक्त नहीं चल सका. राजपूतों ने उसका विद्रोह किया, जिसके चलते कुछ ही समय के बाद उसको सत्ता त्यागनी पड़ी.
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