Rajasthan News: वर्तमान की भागदौड़ भरी जिंदगी में फास्ट फूड कल्चर तेजी से बढ़ा है, जिसके चलते हम हमारे पारंपरिक व्यंजनों से दूर होते जा रहे हैं. राजस्थान के मरुस्थलीय भागों में एक वनस्पति पाई जाती है, जिसे यहां स्थानीय भाषा में खींप कहा जाता है, जिसके फाल्गुन माह में फली लगती है. इसे खीपोली कहते हैं. इसकी सब्जी बनती है जो स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी होती है.
गणगौर के गीतों में भी इसका बखान किया जाता है. राजस्थान की माटी से जुड़े हुए लोग इसके स्वाद को बहुत अच्छी तरह जानते हैं. आजकल केवल कुछ ही सब्जियां है, जिनमें प्राकृतिक स्वाद निहित है, जैसे कैर, ककोड़ा, सांगर (खेजड़ी की फली), फोगला (रायता बनाने के काम में लेते हैं), खींपोली (खींप की फली) आदि. अन्य सभी सब्जियों में ज्यादा या कम मात्रा में रसायनों का प्रयोग होता ही है.
बुजुर्गों के अनुसार, आधुनिक युग की भागदौड़ में लोग स्वदेशी व्यंजन को भूल गए हैं. बाजारों में आने वाली सब्जियों पर निर्भर हो रहे हैं. खींपोली की स्वादिष्ट सब्जी बनती है. खींपोली व काचरी की सब्जी खास होती है. स्वाद के साथ यह पेट के रोगों में राहत पहुंचाती है. पाचन क्रिया ठीक होती है. इसका दाद, खाज, खुजली सहित विभिन्न त्वचा रोगों व दर्द में उपयोग किया जाता है. दाद में लगातार दर्द होने पर खींप को मसल कर उसका रस दिन में 5-7 बार लगाने पर दाद मिट जाता है. पशुओं की विभिन्न बीमारियों में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है.
संरक्षण की जरूरत
खींप बहुउपयोगी रेगिस्तानी झाड़ी है. बदलती तकनीकी व पर्यावरण परिवर्तन में यह लगातार विलुप्त होती जा रही है. सदाबहार मरुस्थलीय झाड़ी कम होने का दूरगामी असर पड़ सकता है. इसका संरक्षण आवश्यक है, जिस तरह फोग का वृक्ष खत्म होने के कगार पर है, वैसे ही इसका अगर संरक्षण नहीं किया गया तो विलुप्त हो सकती है.
खींप का उपयोग व कार्य
सामाजिक कार्यकर्ता मोनिका सैनी ने बताया कि खींप का उपयोग छप्पर बनाने के साथ ही चारा, ईंधन व आदि ढकने के काम में आता है इनकी रस्सी बनाकर छप्पर गूंथने के काम में लिया जाता है रेतीले धोरों में पाई जाने वाली खींप की झाड़ी है यह यह अपनी जड़ों,तने व शाखाओं के माध्यम से बालू मिट्टी को विस्थापित होने से बचाती हैं.
खींप और खीपोली के औषधीय गुण
वरिष्ट चिकित्सक डॉ किसन सियाग ने बताया कि खीपोली की सब्जी में प्रचुर मात्राओं में फाइबर मिलता है जो कि आंत की कैंसर, कब्ज एवं बवासीर जैसी समस्याओं का समाधान करती है. फोलेट और लौह तत्व जो कि शरीर में रक्त की कमी को पूरा करते है एवं साथ ही न्यूरोलॉजिकल समस्याओं का समाधान होता है. अन्य माइक्रो न्यूट्रिएंट शरीर की सामान्य गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाते हैं. डॉ सियाग बताते हैं कि खींप पुराने जमाने की आयुर्वेदिक औषधि है. इसका उपयोग वादार खाज, खुजली सहित विभिन्न त्वचा रोगों में किया जाता रहा है. त्वरित दर्द निवारक के रूप में इसका उपयोग होता है. इसकी फली की सब्जी स्वादिष्ट व सुपाच्य होती है.
डॉ आरिफ खान ने बताया कि खींपोली की सब्जी बहुत ही पौष्टिक होती है. इसमें प्रोटीन की मात्रा भी अधिक पाई जाती है. इसको अत्यधिक मात्रा में खाना चाहिए. इसमें एंटी फंगल गुण, जीवाणुरोधी गुण, कैंसर रोधी गुण, एंटीऑक्सीडेंट गुण, घाव भरने वाले गुण, कृमिनाशक गुण, एंटी एथेरो स्क्लेरोटिक गुण, हाइपोलिपिडेमिक गुण, एंटीडायबिटिक गुण, हेपाटो प्रोटेक्टिव गुण हैं.
जानकार बताते हैं कि खींप के पौधे के करीब सभी भागों का इस्तेमाल कई देशों की पारंपरिक औषधि प्रणालियों में किया जाता है. ऐसे में हमें भी आज खींप के उपयोग के बारे में जानने की बेहद जरूरत है, तभी हम इसका महत्व समझ पाएंगे.
रिपोर्टर- नवरतन प्रजापत
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