Rajasthan Politics: सदन में कांग्रेस विधायक गणेश घोघरा ने राज्य सरकार की खाद्य सुरक्षा योजना पर सवाल खड़े कर दिए. उन्होंने कहा कि 5 किलो गेहूं में गुजारा नहीं होता है. डूंगरपुर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक ने 5 किलो गेहूं को अपर्याप्त बताया है. उन्होंने कहा कि इस योजना के तहत प्रति माह केवल 5 किलो गेहूं प्रति व्यक्ति को मिल रहा है, लेकिन इतने कम गेहूं से एक व्यक्ति महीने भर तक अपना पेट कैसे भर सकता है.
विधानसभा में अपने संबोधन के दौरान कांग्रेस विधायक गणेश घोघरा राज्य सरकार की खाद्य सुरक्षा योजना को लेकर कहा कि 5 किलो गेहूं से हमारा क्या होगा. हम लोग दिनभर मेहनत करते हैं. हम पत्थर तोड़ने वाले हैं, खेत जोतने वाले हैं, हल चलाने वाले हैं.
विधायक ने मंत्री की ओर इशारा करते हुए कहा कि आपकी तरह पूड़ी खाकर हमारा पेट नहीं भरता है. हमें कम से कम चार रोटी मोटी मोटी सुबह-शाम चाहिए. उन्होंने कहा कि प्रति व्यक्ति केवल 5 किलो गेहूं से घर कैसे चला सकता. उन्होंने कहा कि हम कुत्ता, गाय भी पालते हैं. दो रोटी कुत्ते को और दो रोटी गाय भी खिलाना होता है. ऐसे में पांच किलो में नहीं चलेगा मंत्री जी, कम से कम 10 किलो गेहूं प्रतिमाह दिया जाना चाहिए.
इतना ही नहीं अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि आदिवासी परिवार बेहद गरीबी से जूझ रहे हैं. उनके क्षेत्र में खुलने वाली राशन की दुकानों को भी दूसरे लोग चला रहे हैं. उन्होंने कई उदाहरण दिए और बताया कि वे दुकानें सरकारी ऑनलाइन रिकॉर्ड में एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हैं. लेकिन उनका संचालन किसी के द्वारा किया जा रहा है.
ऐसे में वाजिब और हकदार व्यक्ति तक इस योजना का लाभ नहीं पहुंच पा रहा है. घोघरा ने कहा कि जनसंख्या के आधार पर राशन की दुकानों में भी आरक्षण मिलना चाहिए. वहीं गुजरात की तर्ज पर राशन डीलरों को प्रति माह 20 हजार रुपए का मानदेय देने की भी डिमांड की है.
कांग्रेस विधायक ने खाद्य सुरक्षा योजना में नाम लगाई गईं पाबंदियों पर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा कि सरकार 1 लाख रुपए की वार्षिक आय वालों को इस योजना का पात्र ही नहीं मान रही है. एक मजदूर प्रतिदिन मजदूरी करके 300 रुपए अगर कमा रहा है. इस हिसाब से एक साल की उसकी आय 1 लाख 8 हजार रुपए होगी. यानी दहाड़ी मजदूरी करने वाला व्यक्ति भी इस योजना का पात्र नहीं है.
उन्होंने इस पाबंदी को हटाने के लिए कहा. उन्होंने आगे कहा कि चौपहिया वाहन होने पर भी इस योजना का पात्र नहीं होना ये सही नहीं है. क्योंकि आदिवासी क्षेत्र के गरीब परिवार के लोग गुजरात में मेहनत मजदूरी करके अपना जीवन चलाने के लिए लोन लेकर सेकेंड हैंड जीप लेते हैं. बाद में वे उसकी किस्तें चुकाते हैं. ऐसे लोगों को सरकार पैसे वाला मानते हुए खाद्य सुरक्षा योजना से वंचित नहीं रख सकती है.
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