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Jaisalmer News: जैसलमेर में गोडावण का नया जन्म, कृत्रिम गर्भाधान की सफलता से दुनिया भर में चर्चा

भारत-पाक सरहद पर बसा सरहदी जिला जैसलमेर इन दिनों एक बार फिर से दुनिया भर में चर्चा में है. यहां के वैज्ञानिकों ने आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन यानी कृत्रिम गर्भाधान को दुनिया से गायब हो रहे गोडावण पर आजमाया है. जिसमे वो सफल रहे है.

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Jaisalmer News: जैसलमेर में गोडावण का नया जन्म, कृत्रिम गर्भाधान की सफलता से दुनिया भर में चर्चा
Zee Rajasthan Web Team|Updated: Oct 28, 2024, 06:39 AM IST
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Jaisalmer News: भारत-पाक सरहद पर बसा सरहदी जिला जैसलमेर इन दिनों एक बार फिर से दुनिया भर में चर्चा में है. यहां के वैज्ञानिकों ने आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन यानी कृत्रिम गर्भाधान को दुनिया से गायब हो रहे गोडावण पर आजमाया है. जिसमे वो सफल रहे है. इस तरह का प्रयोग करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन गया है. इस तकनीक को करीब से जानने और दुनिया को इस पक्षी से रूबरू करवाने हमारी टीम पहुंची है रामदेवरा स्थित गोडावण ब्रीडिंग सेंटर.

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जैसलमेर से करीब 125 किमी दूर रेतीले टीलों के बीच रामदेवरा गांव के पास घने जंगल में करीब 2 स्क्वायर किमी एरिया में ब्रीडिंग सेंटर बनाया गया है. ये सेंटर हॉलीवुड मूवी जुरासिक पार्क की याद दिलाता है. उस पार्क में डायनासोर को पैदा किया गया था जो अब इस दुनिया मे नही है. वही इस ब्रीडिंग सेंटर में राजस्थान का राज्य पक्षी गोडावण जो लुप्त होने की कगार पर है उसके कुनबे को बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे है. इस सेंटर में गोडावण पक्षी को कृत्रिम गर्भाधान से जन्म दिया जा रहा है. इस ब्रीडिंग सेंटर के चारों तरफ करीब 10 फीट ऊंची तारबंदी की गई है. यहां बिना परमिशन के एंट्री नहीं है. अलग-अलग सेक्शन में गोडावण के लिए ये इलाका साल 2019 में बनना शुरू हुआ और 2022 में यहां ब्रीडिंग सेंटर का काम शुरू हुआ था. चारो तरफ सीसीटीवी कैमरे लगे है.

कृत्रिम गर्भाधान से गोडावण का हुआ जन्म
पहली बार अबू धाबी स्थित इंटरनेशनल फंड फॉर हुबारा कंजर्वेशन फाउंडेशन (IFHC) में कृत्रिम गर्भाधान का प्रयोग तिलोर पक्षी पर किया गया था. इसकी सफलता के बाद भारत के वैज्ञानिकों ने इसका प्रयोग दुनिया से लुप्त हो रहे गोडावण पक्षी पर करना शुरू किया. इसके लिए भारत के वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) के वैज्ञानिक साल 2023 में अबू धाबी गए और इस तकनीक को सीखा. इसके बाद गोडावण पर इस तरह के परीक्षण के प्रयास शुरू किए. 8 महीने की कोशिशों के बाद गोडावण पर ये तकनीक सफल रही. इस तकनीक में नर गोडावण से वीर्य एकत्र किया जाता है. इसके बाद उसे मादा गोडावण में गर्भाधान किया जाता है.

परीक्षण के लिए लकड़ी की नकली मादा गोडावण बनाई गई. प्रोजेक्ट साइंटिस्ट डॉ. तुषना करकरिया ने नर गोडावण सुदा को चुना. डॉ. करकरिया ने बताया कि इनका मैटिंग सीजन मार्च से अक्टूबर के बीच होता है. इस दौरान ये मैटिंग करते हैं और मादा अंडे देती है.

हर रोज दिया जाता है परीक्षण
डॉ. करकरिया ने बताया कि प्रतिदिन सुबह करीब 25 मिनट नकली मादा गोडावण को नर गोडावण सुदा के पास हम लाते. उसे मैटिंग के लिए तैयार करते ताकि उसका स्पर्म इकट्ठा किया जा सके. इस दौरान हम कई बार सफल भी हुए. स्पर्म को ट्यूब में लेकर लैब में चेक किया जाता था. इस तरह नर को एआई तकनीक से स्पर्म देने के लिए तैयार किया गया. जब ये तैयार हो गया तब टोनी नाम की मादा गोडावण के प्रजनन के सही समय का इंतजार किया गया. टोनी नामक मादा जिसके गर्भ में एआई तकनीक से कृत्रिम गर्भाधान करवाया गया. टोनी नामक मादा जिसके गर्भ में एआई तकनीक से कृत्रिम गर्भाधान करवाया गया.

रामदेवरा से सम ले जाया गया स्पर्म
सम ब्रीडिंग सेंटर में एक मादा प्रजनन के लिए तैयार थी तो उसी दिन रामदेवरा में एक नर से वीर्य एकत्रित किया गया. माइक्रोस्कोप में गतिशीलता की जांच की गई. जांच करने के बाद इसे 25 डिग्री सेल्सियस पर एक बॉक्स में सम गांव स्थित सुदासरी ब्रीडिंग सेंटर में ले जाया गया. वहां प्रशिक्षित कर्मचारियों द्वारा मादा का गर्भाधान किया गया. मादा ने 24 सितंबर के बाद एक अंडा दिया. अंडे से 16 अक्टूबर को चूजा निकला. चूजा स्वस्थ है और सम सीबीसी में अनुभवी कर्मचारियों द्वारा उसकी देखभाल की जा रही है.

50 से ज्यादा सीसीटीवी से निगरानी
इन पक्षियों को बाहरी दुनिया से बिल्कुल अलग रखा गया है. इनको जंगल से अंडों के रूप में लिया गया. अब यहां पालन पोषण कर इनको बचाने के प्रयास किए जा रहे हैं. यहां ये उम्र भर रहेंगे. इनके बच्चों को भी यहीं रखा जाएगा ताकि इनकी तादाद को और बढ़ाया जा सके. इनकी सुरक्षा के लिए स्टाफ है. साथ ही 50 से ज्यादा एचडी सीसीटीवी कैमरे भी लगे हैं.

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