Rajasthan News: राजस्थान के झुंझुनू के मंडावा में होली और धुलंडी पर बीते 125 सालों से पुरानी परंपरा निभाई जा रही है. यहां पर धुलंडी के दिन गुलाल से सुखी होली खेली जाती है. यहां की फाल्गुनी मस्ती देखने के लिए विदेशों से भी लोग आते हैं.
कहते हैं कि वैद्य लक्ष्मीधर शुक्ल के प्रयासों से मंडावा में होली खेलने और मनाने का तरीका बदला था. इनके द्वारा संस्था का गठन कर होली पर होने वाली अश्लीलता और फुहड़पन दूर करने का कदम उठाया. साथ ही भाईचारा बनाए रखने को लेकर पहल की.
इसी के चलते व्यक्ति को चारपाई पर लिटाकर भीड़ के साथ धुलंडी का जुलूस निकालना शुरू किया. 125 साल पहले शुरू की गई कोशिश आज यहां के लोगों के लिए परंपरा बन गई है. सभी के सामूहिक सहयोग के साथ होली महोत्सव की सांस्कृतिक परंपरा और मान्यता का निभाते हैं.
धुलंडी पर निकाली जाने वाली गेर में काफी लोग शामिल होते हैं. इसके साथ ही हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय गुलाल का तिलक लगाकर बधाईयां देते हैं. रंग डालने के लिए पानी की एक बूंद भी बर्बाद नहीं करते हैं. केवल सुखा गुलाल लगाते हैं. इस होली में विदेशी पर्यटक भी शामिल होते हैं और झूमते हैं. मंडावा में गुलाल के अलावा पक्के रंग और कीचड़ से होली खेलने पर प्रतिबंध है. कहा जाता है कि वैद्य लक्ष्मीधर शुक्ल घोड़े पर सवारी करते थे, ये उनकी पहचान है. लोगों के बीच घोड़े वाले वैद्यजी के नाम से जाना जाता है.
वहीं, मंडावा में भद्रा काल में सालों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन किया. दोपहर में होलिका दहन किया गया. नगर पालिका के पास महाजन परिवारों की मौजूदगी में दिन में ही तिवाड़ियों की होलिका का दहन हुआ. कस्बे में अन्य स्थानों पर रात होलिका दहन को किया जाएगा.