Udaipur Gunpowder Holi: राजस्थान में होली की धूम रंग तेरस तक रहने वाली है. राज्य में अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरीके से होली खेली जाती है. ऐसी एक अनोखी होली शनिवार यानी 15 मार्च को जमराबीज पर उदयपुर शहर से करीब 50 किलोमीटर मेनार गांव में खेली गई. इसकी चर्चा दूर-दूर तक हो रही है. यहां पर रंग और गुलाल से नहीं बल्कि, तोप, बंदूकों और तलवारों से होली खेली गई. गांव में रातभर टोप के धमाकों और बंदूकों से गोलियां चलने की आवाज दूर तक सुनाई गई.
जमराबीज पर होली खेलने की परंपरा का इतिहास काफी अनोखा है. यह घटना महाराणा अमर सिंह प्रथम के समय की ऐतिहासिक घटना है. इस उत्सव का संबंध, वर्ष 1576 में हुए हल्दी घाटी के युद्ध के बाद से है. मेवाड़ के जन मानस में राष्ट्र भक्ति जाग उठी थी. हर गांव मुगल शासकों के खिलाफ खड़ा हो गया था. लोग जगह-जगह मुगलों की चौकियां नष्ट करने लगे थे.
मुगलों की एक मुख्य चौकी ऊंटाला वल्लभगढ़, जो वर्तमान वल्लभनगर में स्थापित है, इसकी उपचौकी मेनार में थी. यहां का सूबेदार बहुत क्रूर था. आस-पास के गांव वालों को बहुत ही परेशान करता था. महाराणा प्रताप के निधन के बाद मुगलों के आतंक से त्रस्त होकर मेनार के मेनारिया ब्राह्मणों ने मुगल सेना से पीछा छुड़ाने की रणनीति तैयार की थी.
होली के दूसरे दिन जमराबीज पर मेनारिया वीरों ने अचानक मुगलों पर धावा बोल दिया था. सारी मुगल सेना को मार डाला था. युद्ध में मेनारिया ब्राह्मण भी वीरगति को प्राप्त हुए थे. जब मेवाड़ महाराणा अमर सिंह ने प्रसन्न होकर मेनार मेनारिया ब्राह्मणों को शाही लाल जाजम, रणबांकुरा ढोल, सिर पर कलंकी धारण, ठाकुर की पदवी एवं मेवाड़ की 17वीं उमराव की उपाधि दी थी.
जिसके बाद से 450 वर्षों से यह उत्सव मनाया जा रहा है. इस दिन मेहमान नवाजी भी देखने लायक होती है. ग्रामीण सुरक्षा व्यवस्था स्वयं देखते हैं, इतना ही नहीं बारूद व तोपे चलने के बाद भी माँ जगदंबा की कृपा से कभी कोई हादसा यहां आज तक नहीं हुआ है.
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