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Holi Celebration 2025: राजस्थान का वो गांव, जहां रंग-गुलाल से नहीं बल्कि बारूद से मनाई जाती है होली, जानें खास परंपरा...

राजस्थान के एक छोटे से गांव में एक अनोखी परंपरा है, जो आपको हैरान कर देगी. इस गांव में होली के त्योहार को बहुत ही अनोखे और रोमांचक तरीके से मनाया जाता है. यहां के लोग होली के दिन बारूद से खेलते हैं, जो एक बहुत ही खतरनाक और रोमांचक गतिविधि है.

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Holi Celebration 2025: राजस्थान का वो गांव, जहां रंग-गुलाल से नहीं बल्कि बारूद से मनाई जाती है होली, जानें खास परंपरा...
Zee Rajasthan Web Team|Updated: Mar 09, 2025, 12:03 PM IST
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Holi Celebration 2025: राजस्थान के एक छोटे से गांव में एक अनोखी परंपरा है, जो आपको हैरान कर देगी. इस गांव में होली के त्योहार को बहुत ही अनोखे और रोमांचक तरीके से मनाया जाता है. यहां के लोग होली के दिन बारूद से खेलते हैं, जो एक बहुत ही खतरनाक और रोमांचक गतिविधि है. यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और गांव के लोग इसे बहुत ही उत्साह और जोश के साथ मनाते हैं.
 
 

 
मेवाड़ का एक छोटा सा गांव मेनार होली को एक अनोखे तरीके से मनाता है. यहां होली का जश्न बारूद के धमाकों के साथ मनाया जाता है, जो लगभग 400 साल पुरानी परंपरा है. इस अनोखी परंपरा के पीछे की वजह यह है कि यह मुगलों पर मेवाड़ की जीत का जश्न है. इस दिन को जमरा बीज के रूप में भी मनाया जाता है, जो मेवाड़ के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है. मेनार गांव के लोग इस परंपरा को बहुत ही उत्साह और जोश के साथ निभाते हैं.
 
 

 

 
 
मेनार गांव, जो उदयपुर से 45 किमी और महाराणा प्रताप एयरपोर्ट डबोक से महज 25 किमी दूरी पर स्थित है, में जमरा बीज पर्व की तैयारियां शुरू हो गई हैं. इस साल यह पर्व 15 मार्च को मनाया जाएगा. बर्ड विलेज के नाम से प्रसिद्ध मेनार गांव में धुलंडी के अगले दिन शौर्य और इतिहास की झलक देखने को मिलेगी. तलवारें खनकाई जाएंगी और बारूदी धमाकों से रणभूमि का नजारा उभर आएगा, जो दर्शकों को आकर्षित करेगा.
 

 
 
मेनार गांव में होली के त्योहार को बहुत ही अनोखे और रोमांचक तरीके से मनाया जाता है. पंडित मांगीलाल आमेटा के अनुसार, 13 मार्च को रात 11.28 बजे होलिका दहन होगा, इसके बाद 14 मार्च को धुलंडी और 15 मार्च को जमरा बीज पर्व मनाया जाएगा. इस दिन पांच हांस से ओंकारेश्वर चौक पर लोग जमा होंगे और मेवाड़ी पोशाक में सज-धज कर योद्धा की भांति दिखेंगे. ढोल की थाप पर कूच करते हुए हवाई फायर और तोप से गोले दागे जाएंगे. आधी रात में तलवारों से जबरी गेर खेली जाएगी, जिसमें पुरुष ढोल की थाप पर एक हाथ में खांडा और दूसरे में तलवार लेकर गेर नृत्य करेंगे.
 
 
पंडित मांगीलाल आमेटा के अनुसार, जमरा बीज पर्व के दौरान आतिशी धमाकों के बीच तलवारों की खनक से माहौल युद्ध के मैदान जैसा बन जाता है. इसकी तैयारियां पहले से ही शुरू हो जाती हैं. देश के विभिन्न हिस्सों और विदेशों में रहने वाले मेवारवासी भी जमरा बीज पर्व में शामिल होने के लिए अपने गांव आते हैं, भले ही वे दिवाली पर गांव न आएं. यह पर्व मेवारवासियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और वे इसे बहुत ही उत्साह और जोश के साथ मनाते हैं.
 
 
महाराणा प्रताप के अंतिम समय में मेवाड़ में मुगल सैनिकों की छावनियां थीं. मुगलों ने मेवाड़ पर अधिकार करने की कोशिश की, लेकिन महाराणा अमरसिंह प्रथम के नेतृत्व में उन्हें मुंह की खानी पड़ी. मुगलों की एक मुख्य चौकी ऊंटाला वल्लभगढ़ में थी, जिसकी उपचौकी मेनार में थी. 
 
 
 
महाराणा प्रताप के निधन के बाद मेनार के मेनारिया ब्राह्मणों ने मुगल सेना को हटाने की रणनीति बनाई. ओंकारेश्वर चबूतरे पर निर्णय लेकर ग्रामीणों ने मुगलों की चौकी पर हमला बोला और मुगल सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया. यह घटना विक्रम संवत 1657 में हुई थी. मुगलों से जीत की खुशी में महाराणा ने मेनार की 52 हजार बीघा भूमि पर लगान माफ कर दिया और ग्रामीणों को शौर्य उपहार दिए.
 
 
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