Rang Teras festival: उदयपुर के रुण्डेड़ा गांव की सबसे खास और अनोखी होली अब होने वाली है. जी हां, यहां पर रंग तेरस का पर्व इस बार 26 मार्च को मनाया जाएगा. यह रिवाज पिछले करीब साढ़े चार सौ बरसों से इसी तरह मनाया जा रहा है. गांव की गलियों में रंगों की वर्षा होगी. ढोल और मादल की धुन के साथ होली खेली जाएगी. वहीं रात के अंधकार में रंग बिरंगी सतरंगी लाइटों की रोशनी से पूरा गांव चमचमाता दिखने वाला है.
वल्लभनगर क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले रुण्डेड़ा गांव उदयपुर से करीब 43 किलोमीटर आगे स्थित है. 26 मार्च को मनाए जाने वाले रंग तेरस को लेकर गांव वाले काफी एक्साइटेड हैं. यहां लोग अपने-अपने तरीके से तैयारियां कर रहे हैं. गांव को सजाना शुरू कर दिया गया है. वहीं रात में युवा गैर नृत्य खेलने लगे हैं.
गांव में सुबह चार बजे ही ढोल की गूंज पूरे गांव के माहौल को जोश से भर दे रही है. इस ढोल की आवाज ही पिछले साढ़े चार सालों से यह परंपरा जीवंत रखे हुए हैं. यहां पर दोपहर के 12 बजे गांव के उत्तर दिशा में स्थित जत्तीजी कलदास महाराज की धूणी बनी है, जिस पर गांव के तीनों प्रमुख समाज मेनारिया,जाट और जणवा के पंच अपने-अपने ढोल, थाली और मादल के साथ दर्शन के लिए पहुंचते हैं. वहां पूजा-अर्चना करते हैं और जत्तीजी महाराज को इस महोत्सव के लिए आमंत्रित करते हैं.
इसके बाद कुएं के फेरे में करीब आधा घंटे कीचड़ में लोटा जाता है. इसको स्थानीय भाषा में भरूड़िए आना बोलते हैं. इसके बाद ढोल के साथ ग्रामीण वहां से निकलकर डेमण बावजी को आमंत्रित करते हैं. फिर गांव के बड़े मंदिर जाते हैं. वहां जतीजी महाराज की अमानत चिमटा, माला और घोड़ी को लेकर सर्व समाज का सामूहिक गैर नृत्य की तैयारी में लग जाता है.
गांव के बड़े बुजुर्गों का मानना है कि कीचड़ में लोटपोट होने के बाद सभी मान दिखते हैं. न कोई अमीर दिखता है... न गरीब...न कोई ऊंचा... न नीचा...सभी एक समान हो जाते है. यह पर्व सामाजिक एकता को दर्शाता है. वहीं मान्यता यह भी है कि कीचड़ शुद्धिकरण करता है. इससे नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है.
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