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शंकराचार्य के शास्त्रार्थ में क्या हुआ था? नॉर्थ-साउथ डिबेट पर राजनाथ सिंह ने विरोधियों की बोलती बंद की

Rajnath singh on Misleading narratives on north-south divide: दक्षिण भारतीय और उत्तर भारतीयों में वर्चस्व की लड़ाई एक बार फिर सामने आ रही है, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और DMK के अध्यक्ष एम के स्टालिन दक्षिण भारतीय राज्यों को एकजुट होने की अपील कर रहे हैं,  हिदी भाषा,  परिसीमन जैसे मुद्दों पर राजनीतिक गतिविधियां बढ़ रही हैं, लेकिन इसी बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ऐसा बयान दिया है, जिसके बाद विरोधियों की बोलती बंद है. जानें पूरी खबर.  

शंकराचार्य के शास्त्रार्थ में क्या हुआ था? नॉर्थ-साउथ डिबेट पर राजनाथ सिंह ने विरोधियों की बोलती बंद की
krishna pandey |Updated: Apr 02, 2025, 09:03 AM IST
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Rajnath singh on North-south conflict: उत्तर भारत के दक्षिण भारत पर हावी होने की बात को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है. मंगलवार को तुमकुरु के सिद्धगंगा मठ में डॉ. श्री श्री श्री शिवकुमार स्वामीगलु की 118वीं जयंती पर बोलते हुए सिंह ने साफ किया कि साउथ ने नॉर्थ को संस्कृति और धर्म के मामले में कई बार नई दिशा दी है. उन्होंने कहा, "ये बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोग ये साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि नॉर्थ ने साउथ पर हावी हो रखा है. ये पूरी तरह गलत है. कर्नाटक की धरती खुद इसका सबूत है कि साउथ ने नॉर्थ को धर्म के मामले में कई मौकों पर रास्ता दिखाया." 

नॉर्थ और साउथ राज्यों के साथ भेदभाव
ये बयान कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के हालिया अखबार लेख के बाद आया है, जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार पर नॉर्थ और साउथ राज्यों के साथ भेदभाव का आरोप लगाया था. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच हुए शास्त्रार्थ का जिक्र करके नॉर्थ-साउथ की राजनीतिक बहस को लेकर विरोधियों को करारा जवाब दिया है. उन्होंने कहा कि शंकराचार्य ने मंडन मिश्र को हराकर दिखा दिया था कि ज्ञान और दिमाग की कोई सीमा नहीं होती, चाहे आप उत्तर से हों या दक्षिण से. इस बात से उन्होंने उन लोगों की बोलती बंद कर दी जो देश में उत्तर और दक्षिण के नाम पर विवाद कर रहे हैं.

सबसे पहले सुने राजनाथ सिंह का वीडियो:-

शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच शास्त्रार्थ का जिक्र
राजनाथ सिंह ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोगों द्वारा यह कहा जाता है कि उत्तर ने दक्षिण पर कई मामलों में वर्चस्व बना रखा है, लेकिन यह पूरी तरह से गलत है. कर्नाटक की यह धरती प्रमाण दे रही है कि दक्षिण ने उत्तर को अनेक बार धर्म के क्षेत्र में नई दिशा दी. इसका प्रमाण है कि काशी के आचार्य मंडन मिश्र जी और आदि शंकराचार्य का शास्त्रार्थ जो भारतीय संस्कृति का सबसे प्रसिद्ध शास्त्रार्थ है. जिसमें शंकराचार्य जी ने मंडन मिश्र जी को पराजित कर दिया था. आचार्य मंडन मिश्र जी शंकराचार्य जी के शिष्य बन गये और यह एक प्रचलित मान्यता है कि वे कर्नाटक में आकर श्रृंगेरी में आचार्य सुरेशाचार्य जी के रूप में वे शंकराचार्य बने. इसका अर्थ यह हुआ कि ज्ञान को लेकर भारत कि परम्परा कितनी उदार थी और सच को स्वीकार करने में तनिक भी संकोंच नहीं करती थी.इसलिए मैं मानता हूँ कि आज मतभेद पैदा करने के लिए गुलामी के कालखंड में किये गए दुष्प्रचार से मुक्त होने की आवश्यकता है.

विरोधी चुप, भाजपा का दांव
इस बयान से विरोधियों के पास बोलने को कुछ नहीं बचा है, राजनाथ सिंह ने शंकराचार्य की कहानी ने साफ कर दिया कि भारत हमेशा से एक रहा है. इसके विपरीत लोग कह रहे हैं कि ये बात 2026 के तमिलनाडु चुनाव को देखते हुए राजनाथ सिंह ने कही है. राजनाथ सिंह ने एक तीर से दो निशाने साधे है,  विरोधियों को जवाब भी दे दिया और देश की एकता का पैगाम भी दे दिया है.

शंकराचार्य और मंडन मिश्र का शास्त्रार्थ में क्या हुआ था?
बात 8वीं सदी की है. शंकराचार्य, जो अद्वैत वेदांत के बड़े गुरु थे, हिंदू धर्म को मजबूत करने के लिए पूरे भारत में घूम रहे थे. रास्ते में उनकी टक्कर मंडन मिश्र से हुई, जो मिथिला (अब का बिहार) के बड़े विद्वान थे. मंडन मिश्र मीमांसा दर्शन के मास्टर थे और उनकी बुद्धि का डंका बजता था. दोनों में बहस शुरू हुई, जो करीब 42 दिन चली. मंडन मिश्र की बीवी उभय भारती जज बनीं. बहस में एक मजेदार चीज हुई. उभय भारती ने दोनों के गले में फूलों की माला डाल दी और कहा, "जो हारेगा, उसकी माला मुरझा जाएगी." जब वो वापस आईं, तो मंडन मिश्र की माला सूख गई थी, लेकिन शंकराचार्य की माला ताजी थी. भारती ने शंकराचार्य को जीता हुआ बताया. फिर भारती ने खुद शंकराचार्य से बहस की और कुछ सवालों से उन्हें चक्कर में डाल दिया. पर शंकराचार्य ने हार नहीं मानी और आखिर में मंडन मिश्र और उनकी बीवी दोनों उनके शिष्य बन गए. ये कहानी भारत की एकता और दिमाग की ताकत का बड़ा सबूत बन गई.

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