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DNA: अपने ब्रह्मास्त्र का 'जिगर' देने को तैयार पुतिन, फिर क्यों कतरा रही मोदी सरकार?

Russia SU-57 Fighter Jet: रूस अब भारत को सुखोई-57 के सोर्स कोड देने के लिए तैयार है. सोर्स कोड उस तकनीक को कहा जाता है, जो किसी फाइटर जेट की अंदरूनी बनावट, उन्नत तकनीक और हथियारों के ऑपरेशन में अहम भूमिका निभाती है. दावा ये भी है कि सोर्स कोड के साथ ही साथ रूस से भारत को देश के अंदर सुखोई-57 फाइटर जेट बनाने की अनुमति भी मिलेगी.

DNA: अपने ब्रह्मास्त्र का 'जिगर' देने को तैयार पुतिन, फिर क्यों कतरा रही मोदी सरकार?
Rachit Kumar|Updated: Jun 06, 2025, 11:53 PM IST
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Russia 5th Generation Fighter Jet: रूस जैसा सुपरपावर देश एक ऐसी एडवांस तकनीक को भारत को सौंपने की तैयारी कर रहा है, जिस पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई हैं. ये तकनीक है रूस का पांचवीं पीढ़ी का फाइटर जेट सुखोई-57. चूंकि ये दुनिया का सबसे आधुनिक फाइटर जेट माना जाता है तो यह अपने आप में और भी खास हो जाता है.

मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि रूस अब भारत को सुखोई-57 के सोर्स कोड देने के लिए तैयार है. सोर्स कोड उस तकनीक को कहा जाता है, जो किसी फाइटर जेट की अंदरूनी बनावट, उन्नत तकनीक और हथियारों के ऑपरेशन में अहम भूमिका निभाती है. दावा ये भी है कि सोर्स कोड के साथ ही साथ रूस से भारत को देश के अंदर सुखोई-57 फाइटर जेट बनाने की अनुमति भी मिलेगी और रूस इस सहमति पर भी तैयार है कि भारत चाहे तो अपने हिसाब से सुखोई-57 में बदलाव भी कर सकता है.

क्यों रूस ने किसी देश को नहीं किया सप्लाई

अब आपके अंदर सवाल उठ रहा होगा, जब रूस ने ये फाइटर जेट आज तक किसी देश को सप्लाई नहीं किया तो भारत में विमान के निर्माण और बदलाव जैसे अहम मुद्दों पर सुखोई-57 बनाने वाली कंपनी कैसे राजी हो गई. इसका जवाब हम आपको देंगे लेकिन पहलने जानिए कि क्यों सुखोई-57 को दुनिया के सबसे घातक फाइटर जेट्स में गिना जाता है.

इस विमान की सबसे बड़ी खासियत है स्टेल्थ तकनीक यानी राडार से इस विमान को देख पाना या पहचान पाना तकरीबन नामुमकिन है. रूस के इस लड़ाकू विमान की दूसरी बड़ी खासियत है इसकी रफ्तार. सुखोई-57 की स्पीड मैक 2 के पार जाती है. यानी आवाज से दोगुनी. अब तक दुनिया में सिर्फ अमेरिका के पास इस रफ्तार से उड़ने वाले फाइटर जेट हैं और तीसरा बिंदु जो इस विमान को खास बनाता है वो है सुखोई-57 के हार्ड प्वाइंट्स यानी हथियार लोड करने की जगह. सुखोई-57 में 12 हार्ड प्वाइंट्स हैं, जिनको एयर टू एयर, एंटी शिप, एंटी रेडिएशन मिसाइल से लैस किया जा सकता है.

प्लेन के साथ उड़ने के लिए तैयार किया ड्रोन

रूस ने सुखोई-57 के साथ एक ऐसा प्रयोग भी किया है, जो दुनिया के किसी फाइटर जेट के साथ नहीं हुआ है. रूस ने इस विमान के साथ उड़ने के लिए एक ड्रोन भी तैयार किया है, जिसे नाम दिया गया है ओकोनिक S-70. ये एक कॉम्बेट ड्रोन है यानी ये अपने डाटा के आधार पर ना सिर्फ दुश्मन पर बम बरसा सकता है बल्कि हवा में दुश्मन के लड़ाकू विमानों से भी टक्कर ले सकता है. ऐसा ही एक प्रयोग चीन ने भी अपने पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट के लिए किया था.लेकिन वो आज तक सफल नहीं साबित हो पाया है.

इस विमान को बनाने वाली कंपनी ने एक दलील भी दी है, जिसमें कहा गया है कि चीन से पाकिस्तान को जल्द पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट मिलने वाले हैं. इस चुनौती से निपटने के लिए भारत को भी पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट की जरूरत होगी. लेकिन भारत ने सुखोई-57 को लेकर अब तक ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई है. भारत के इस रूख की वजह क्या है, ये भी आपको समझना चाहिए.

सुखोई-57 के साथ एक बड़ी समस्या इसके इंजन से जुड़ी है, जिसकी वजह से इस विमान को टॉप स्पीड पर पहुंचने में ज्यादा समय लगता है. साल 2019 से इंजन की समस्या पर काम चल रहा है. लेकिन इसका समाधान नहीं मिला है. विमान की टेस्टिंग के दौरान ये भी सामने आया है कि 8 हजार मीटर से ज्यादा की ऊंचाई पर विमान का ढांचा स्थिर नहीं रहता. दो बार इस ऊंचाई पर विमान का टेस्ट किया गया और दोनों बार विमान क्रैश हो गए थे.

क्यों दुनिया के देशों ने बना रखी है विमान से दूरी

इन समस्याओं की वजह से भारत समेत दुनिया की बड़ी एयरफोर्स सुखोई-57 से दूरी बनाए हुए हैं. अगर भारत ने देश में निर्माण का ऑफर स्वीकारा तो शायद भारतीय वैज्ञानिक इन समस्याओं का समाधान निकाल लें और भारत को कम लागत पर पांचवीं पीढ़ी का फाइटर जेट मिल सकता है.

रूस के पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट पर दुनिया को अब तक भरोसा नहीं हुआ है लेकिन मेक इन इंडिया के तहत बने डिफेंस सिस्टम की धाक दुनिया में जम गई है. ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय एंटी ड्रोन सिस्टम की डिमांड बढ़ी है. ऐसा ही एक सिस्टम है D-4, जिसमें चीन के एक विरोधी ने दिलचस्पी दिखाई है. चीन के किस शत्रु को मेड इन इंडिया पावर चाहिए.

ताइवान ने एंटी ड्रोन सिस्टम खरीदने में दिखाई दिलचस्पी

ताइवान ने भारत से D-4 एंटी ड्रोन सिस्टम खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है. इस डील के लिए ताइवान ने अधिकारिक तौर पर RoP यानी REQUEST FOR PURCHASE LETTER भी भेजा है. ताइवान की सेना के सूत्रों ने मीडिया को ये भी बताया है कि जांचने परखने के बाद उन्होंने पाया कि चीन से ड्रोन अटैक के खतरे से निपटने में भारत का D-4 सिस्टम कामयाब साबित होगा.

ऑपरेशन सिंदूर के बाद जब सेना ने ब्रीफिंग दी थी...तो S-400 से लेकर आकाश जैसे एयर डिफेंस सिस्टम के बारे में देश के नागरिकों को पता चला था. लेकिन D-4 को लेकर ज्यादा जानकारी सामने नहीं रखी गई थी. इसी वजह से हमने आपको इस डिफेंस सिस्टम की बारीकियां बताने का फैसला किया है.

इन सिद्धांतों पर चलता है D-4

D-4 सिस्टम चार सिद्धांतों पर काम करता है. ये सिद्धांत हैं DRONE, DETECT, DETER, DESTROY यानी पहले ड्रोन के खतरे का पता लगाओ, शत्रु के ड्रोन की लोकेशन पता करो. हो सके तो ड्रोन को गिरने से रोको और आखिर में ड्रोन को तबाह कर दो. इस सिस्टम को DRDO ने बनाया है और ये SOFT और HARD KILL पर काम करता है. SOFT KILL का मतलब है कि आते हुए ड्रोन को जाम कर देना. और ड्रोन अपने आप गिर जाएगा. HARD KILL का मतलब है शक्तिशाली लेजर किरण से...ड्रोन को हवा में ही जला देना ताकि वो जमीन पर धमाका ना कर पाएं.

सामरिक जगत में कहा जाता है कि हर युद्ध हथियारों की टेस्टिंग की जमीन होती है यानी युद्ध में ही हथियार की क्षमता का पता चलता है. लेकिन भारत ने एक आतंक रोधी अभियान के जरिए ये बता दिया कि सामरिक क्षेत्र में भारत एक उभरती शक्ति बन चुका है.

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