Panchayat Patis: मशहूर वेब सीरीज 'पंचायत' तो आपने देखी ही होगी, जिसमें दिखाया गया है कि एक गांव के अंदर किस तरह पंचायती दफ्तर चलता है. साथ ही मंजू देवी जो गांव की प्रधान हैं, उनके पति पूरे गांव में खुद को प्रधान के तौर पर पेश करते हैं. ऐसे ना सिर्फ फिल्मों में होता है, बल्कि असल जिंदगी में भी होता है. अक्सर देखा गया है कि जहां पर महिला प्रधान होती है वहां उनके पति 'प्रधानी' की चौड़ में घूमते हैं लेकिन अब ऐसा नहीं हो पाएगा.
पंचायतों में निर्वाचित महिलाओं की जगह उनके पति या अन्य पुरुष रिश्तेदारों के काम करने की प्रथा, जिसे आमतौर पर ‘सरपंच पति’, ‘मुखिया पति’ या ‘प्रधान पति’ कहा जाता है. हालांकि अब इस प्रथा को रोकने के लिए केंद्र सरकार के पंचायती राज मंत्रालय (MoPR) की एक सलाहकार समिति ने सख्त फैसला लेते हुए सजा देने की की सिफारिश की है.
समिति ने सुझाव दिया है कि अगर किसी मामले में प्रॉक्सी नेतृत्व (कथित महिला प्रतिनिधि की जगह किसी पुरुष का शासन) साबित होता है, तो ऐसे मामले में सख्त सजा दी जानी चाहिए. साथ ही इस प्रथा को खत्म करने के लिए मजबूत निगरानी तंत्र की जरूरत है, जिसमें हेल्पलाइन और महिला निगरानी समितियों के जरिए खुफिया शिकायतों का प्रावधान हो. इसके अलावा जो भी व्यक्ति ऐसे मामलों की जानकारी देगा और वह साबित हो जाएगा, उसे इनाम देने की भी सिफारिश की गई है.
इस विषय पर बनी रिपोर्ट को हाल ही में पंचायती राज मंत्रालय के सचिव को सौंपा गया. रिपोर्ट में प्रॉक्सी शासन को रोकने के लिए कई सुझाव दिए गए हैं, जैसे कि महिलाओं के लिए स्पेशल ट्रेनिंग, नेतृत्व विकास और निगरानी करने वाले सिस्टम को मजबूत करना. समिति का गठन सितंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट के जुलाई में दिए गए एक आदेश के बाद किया गया था. इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए 14 राज्यों में चार बड़े रीजनल वर्कशॉप आयोजित किए गए, जिसमें राज्य सरकारों के साथ गहन चर्चा की गई.
कुछ पंचायत समितियों और वार्ड समितियों में महिलाओं के लिए स्पेशल आरक्षण (केरल की तर्ज पर).
महिलाओं के लिए अलग से निगरानी अधिकारी (ओम्बड्समैन) नियुक्त किया जाए.
महिला पंचायत प्रतिनिधियों का एक संघ बनाना, जिससे वे इकट्ठा होकर प्रभावी भूमिका निभा सकें.
पंचायतों की बैठकों में महिलाओं के लिए जेंडर-संवेदनशील बजट की व्यवस्था करना.
पंचायत प्रतिनिधियों को ट्रेनिंग देने के लिए वर्चुअल रियलिटी (VR) तकनीक का इस्तेमाल.
महिलाओं के लिए AI-आधारित कानूनी और प्रशासनिक मार्गदर्शन, जिसे वे अपनी स्थानीय भाषा में समझ सकें.
पंचायत प्रतिनिधियों के लिए खास WhatsApp ग्रुप बनाकर उन्हें पंचायत और ब्लॉक स्तर के अधिकारियों से जोड़ा जाए ताकि वे अपनी समस्याओं का समाधान तुरंत पा सकें.
पंचायत निर्णय पोर्टल को मजबूत बनाया जाए ताकि जनता यह देख सके कि उनके निर्वाचित प्रतिनिधि बैठक और निर्णय प्रक्रिया में हिस्सा ले रहे हैं या नहीं.
भारत में 73वें संविधान संशोधन (1992) के तहत पंचायतों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें रिजर्व की गई हैं, लेकिन 21 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों ने इस आरक्षण को बढ़ाकर 50% तक कर दिया है. देश में कुल 2.63 लाख पंचायतें हैं और इनमें 32.29 लाख निर्वाचित प्रतिनिधियों में से लगभग 47% (15.03 लाख) महिलाएं हैं, लेकिन फिर भी कई जगहों पर असल सत्ता उनके पुरुष रिश्तेदार संभालते हैं, जिसे खत्म करने की जरूरत है.
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