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'मुफ्त राशन, पैसा देने के चलते लोग काम नहीं करना चाहते...' फ्रीबीज पर SC की नाराजगी, पूछा- ये कैसे देश के काम आएंगे?

SC deprecates practice of announcing freebies: सुप्रीम कोर्ट ने चुनावों से पहले मुफ्त में चीजें देने की घोषणाओं की आलोचना करते हुए बुधवार को कहा कि लोग काम करने को तैयार नहीं हैं, क्योंकि उन्हें मुफ्त में राशन और पैसे मिल रहे हैं.  

'मुफ्त राशन, पैसा देने के चलते लोग काम नहीं करना चाहते...' फ्रीबीज पर SC की नाराजगी, पूछा- ये कैसे देश के काम आएंगे?
Arvind Singh|Updated: Feb 12, 2025, 02:16 PM IST
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Supreme Court criticised announcing freebies: सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव से पहले राजनीतिक दलों की ओर मुफ्त सुविधाओं(Freebies) की घोषणा पर नाराजगी जाहिर की है. कोर्ट ने कहा कि लोग इनके चलते काम नहीं करना चाहते क्योंकि उन्हें मुफ्त में राशन और पैसा मिल रहा है. जस्टिस बी आर गवई ने कहा कि कि मुफ्त राशन और पैसा देने के बजाए बेहतर होगा कि ऐसे लोगों को समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनाया जाए ताकि वो देश के विकास के लिए योगदान दे सके.

कोर्ट ने सरकार से जानकारी मांगी
जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज की बेंच शहरी इलाकों में बेघर लोगो के शेल्टर से जुड़े मामले की सुनवाई कर रही थी. सुनवाई के दौरान अटॉनी जनरल आर वेंकटमनी ने बताया कि सरकार शहरी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम को फाइनल करने में लगी है जो गरीब शहरी बेघर लोगों को आवास उपलब्ध कराने से लेकर दूसरे ज़रूरी मसलों में मददगार होगा. सुप्रीम कोर्ट ने अटॉनी जनरल से कहा कि वो सरकार से निर्देश लेकर बताए कि ये कार्यक्रम कब से लागू होगा. 6 हफ्ते बाद कोर्ट आगे सुनवाई करेगा. न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने शहरी क्षेत्रों में बेघर व्यक्तियों के आश्रय के अधिकार से संबंधित एक मामले की सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां कीं. न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘‘दुर्भाग्यवश, मुफ्त की इन सुविधाओं के कारण... लोग काम करने को तैयार नहीं हैं. उन्हें मुफ्त राशन मिल रहा है. उन्हें बिना कोई काम किए ही धनराशि मिल रही है.’’ 

चुनाव में फ्री पर भी सुप्रीम कोर्ट कर चुका है टिप्पणी
इसके पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले बड़ी टिप्पणी की थी. तब कोर्ट ने राज्यों द्वारा दी जा रही मुफ्त की रेवड़ियों को लेकर बयान दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकारों के पास मुफ्त की योजनाओं के लिए पैसा है, लेकिन जजों के वेतन और पेंशन के लिए पैसा नहीं है. जस्टिस बीआर गवई और एजी मसीह की बेंच ने महाराष्ट्र सरकार की 'लाडली बहना योजना' और दिल्ली चुनाव से पहले राजनीतिक दलों के वादों का उदाहरण दिया था.

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