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India-US Tariff War: टैरिफ पर निकल जाएगी ट्रंप की हेकड़ी? अमेरिकी दबाव से निपटने के लिए भारत के पास मौजूद हैं ये विकल्प

India US trade talks: डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ वाली मनमानी से भारत पर क्या और कितना असर पड़ेगा, ये समझने के लिए आपको सबसे पहले वो 5 कदम देखने चाहिए, जो ज्यादा टैरिफ लगाने के जवाब में भारत उठा सकता है.

India-US Tariff War: टैरिफ पर निकल जाएगी ट्रंप की हेकड़ी? अमेरिकी दबाव से निपटने के लिए भारत के पास मौजूद हैं ये विकल्प
Shwetank Ratnamber|Updated: Aug 05, 2025, 11:14 PM IST
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US Tariff : डोनाल्ड ट्रंप दावा करते हैं कि वो पूरी दुनिया में युद्ध रुकवाना चाहते हैं. लेकिन टैरिफ पर बार-बार भारत को धमकी देकर ट्रंप खुद एक आर्थिक युद्ध की शुरुआत कर सकते हैं. अगर आर्थिक टकराव की यह आशंका हकीकत में बदल गई तो भारत किस तरह अमेरिका को जवाब दे सकता है, अब हम आपके सामने इसी सवाल का विश्लेषण करने वाले हैं. इस विश्लेषण को समझने के लिए आपको सबसे पहले वो 5 कदम देखने चाहिए, जो ज्यादा टैरिफ लगाने के जवाब में भारत उठा सकता है.

अगर ट्रंप भारत पर 25 प्रतिशत से भी ज्यादा टैरिफ लगाते हैं, तो भारत भी अमेरिका से आने वाले उत्पादों पर टैरिफ बढ़ा सकता है. दूसरा विकल्प ये है कि अमेरिका को सप्लाई किए जाने वाले भारतीय उत्पादों के लिए वैकल्पिक बाजार भी खोजे जा सकते हैं. भारत के पास इस आर्थिक युद्ध में  तुरुप का इक्का साबित हो सकता है Make In India. यानी भारत जिन उत्पादों के लिए अमेरिका पर निर्भर है. उनका निर्माण भारत में बढ़ाया जाए. ताकि अमेरिका पर निर्भरता कम हो सके. ट्रंप के टैरिफ से भारत के जिन सेक्टर्स पर असर पड़ेगा. उन्हें सब्सिडी देकर अमेरिकी टैरिफ से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है और आखिरी विकल्प ये है कि भारत और अमेरिका के बीच बातचीत जारी रहे. ताकि आने वाले वक्त में टैरिफ के मुद्दे पर ट्रंप का रुख नरम हो जाए. 

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'भारत किसी से डरता नहीं'

सोमवार को DNA में हमने आपको डॉनल्ड ट्रंप का वो पोस्ट दिखाया था. जिसमें ट्रंप ने भारत पर 25 प्रतिशत से भी अधिक टैरिफ लगाने का ऐलान किया था. यानी बातचीत के जरिए ट्रंप के टैरिफ पर कोई समाधान निकल पाए. ये संभावना कम नजर आती है. इसी वजह से भारत भी ट्रंप के टैरिफ वाले प्रहार का जवाब देने की तैयारी कर रहा है. सबसे पहले भारत के विकल्प नंबर एक. यानी अमेरिका पर जवाबी टैरिफ बढ़ाने के कदम का DNA विश्लेषण करते हैं, जो आपको बेहद ध्यान से पढ़ना चाहिए. हम आपको जटिल आंकड़े नहीं बताएंगे, बल्कि सीधी और सरल मिसालों के साथ समझाएंगे कि अमेरिका को भारत किस तरह जवाब दे सकता है.

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भारत ऐसे दे सकता है जवाब

भारत को अमेरिकी निर्यातों में लैपटॉप भी शामिल हैं. अगर हम मान लें कि आज अमेरिका से आने वाले लैपटॉप की कीमत 50 हजार रुपए है और अगर भारत ने भी अमेरिका पर 20 या 25 प्रतिशत का टैरिफ लगा दिया. तो अमेरिका से आने वाले लैपटॉप की कीमत हो जाएगी 70 से 75 हजार रुपए. ऐसे में भारतीय ग्राहक महंगे लैपटॉप की जगह सिंगापुर, मलेशिया में बने सस्ते लैपटॉप खरीदेंगे. जो भारतीय बाजार में अमेरिकी लैपटॉप की खपत कम कर देगा.

ऐसा नहीं है कि अमेरिकी लैपटॉप सिर्फ भारत को सप्लाई किए जाते हैं. अमेरिका से कनाडा, मेक्सिको, नीदरलैंड्स और ब्रिटेन जैसे देशों को लैपटॉप निर्यात किए जाते हैं. लेकिन इन देशों के बाजार भारत के मुकाबले काफी छोटे हैं. यानी अमेरिकी निर्माताओं को या तो निर्माण कम करना होगा या फिर अपने उत्पाद के दम कम करने होंगे. दोनों ही सूरत में अमेरिकी कंपनियों को नुकसान होगा. अब हम भारत के दूसरे कदम यानी एक्सपोर्ट के लिए वैकल्पिक बाजारों का विश्लेषण करने जा रहे हैं. ये बिंदु भी आपको गौर से देखने और समझने चाहिए. 

साल 2024 के आंकड़ों को देखें तो भारत के एक्सपोर्ट का 21 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका को जाता है. दूसरे नंबर पर है यूरोपीयन यूनियन. जहां भारतीय एक्सपोर्ट का 18.6 प्रतिशत हिस्सा जाता है. इसी तरह जापान, मलेशिया जैसे आसियान देशों को भारतीय एक्सपोर्ट का 11 प्रतिशत हिस्सा जाता है. अगर टैरिफ की वजह से अमेरिका को भारतीय एक्सपोर्ट कम होता है तो यूरोपीयन यूनियन और आसियान देशों में भारत टैरिफ रहित उत्पाद देकर नए बाजार खोज सकता है.

एक समय था जब भारत अपनी सामरिक जरूरतों के लिए अमेरिका पर निर्भर था. लेकिन डिफेंस सेक्टर में स्वदेशी कंपनियों के बलबूते आज भारत खुद हथियारों का निर्यात कर रहा है. जिसने अमेरिका पर भारत की निर्भरता को कम कर दिया है. Make In India आर्थिक युद्ध में भी भारत की शक्ति बनकर उभर सकता है. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, ये समझने के लिए आपको ये आंकड़ा जरूर पढ़ना चाहिए.

किसी भी देश में मैनुफेक्चरिंग सेक्टर को आगे बढ़ाने के लिए युवा शक्ति की जरूरत पड़ती है. बात अमेरिका की करें तो वहां युवा आबादी की तादाद है 13.20 करोड़ जबकि भारत में युवा आबादी करीब 90 करोड़ है.

अनुमान बताते हैं कि वर्ष 2025-26 में भारत की अर्थव्यवस्था तकरीबन 6 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी. जबकि अमेरिका की अर्थव्यवस्था की बढ़ोतरी 2 प्रतिशत तक ही रहेगी. यानी टैरिफ से पैदा हुए कथित आर्थिक युद्ध में भले ही भारत को शुरुआत में कुछ नुकसान हो. लेकिन लंबी अवधि में अमेरिका को ही नुकसान उठाना पड़ेगा. ये पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने भारत को प्रतिबंधों के जरिए डराने या धमकाने की कोशिश  की हो. लेकिन अपनी विदेश नीति को लेकर भारत हमेशा स्वतंत्र रहा है और कथित सुपरपावर अमेरिका को जवाब भी दिया है. आपको भारत की इस स्वतंत्र और ठोस विदेश नीति का इतिहास भी बेहद गौर से पढ़ना चाहिए.

आपदा में अवसर तलाशता है भारत

70 के दशक में भारत परमाणु शक्ति की तरफ कदम बढ़ा रहा था. परमाणु तकनीक को लेकर अमेरिका ने भारत पर पाबंदियां लगा रखी थीं. तब भी भारत ने अपनी तकनीक और अपना रिएक्टर बनाकर पहला परमाणु परीक्षण किया था. 1998 में भारत ने दूसरा परमाणु परीक्षण किया तो अमेरिका ने भारत पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे. लेकिन प्रतिबंधों के पहले साल यानी 1998 में भारत की अर्थव्यवस्था 6.1 की दर से बढ़ी और 1999 में भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास 8.8 प्रतिशत की दर से हुआ. 2012 में अमेरिका ने भारत को ईरान से तेल लेने के लिए मना किया था. जवाब में भारत ने ईरान के साथ डॉलर में नहीं बल्कि रुपए में व्यापार करना शुरु कर दिया था.

रूस से तेल लेने के मुद्दे पर ट्रंप ने कथित दादागीरी को अंजाम देना शुरु कर दिया है. फर्क इतना है कि प्रतिबंधों की जगह टैरिफ ने ले ली है. लेकिन भारत ने एक बार फिर अमेरिका को बता दिया है कि भारतीय नीति किसी दबाव से नहीं बल्कि भारतीय हितों के अनुसार चलेगी.

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