Indian Ambassador News: सुप्रीम कोर्ट में दो शादी का एक पेचीदा मामला सामने आया है. पति क्यूबा में भारत के राजदूत हैं. उन्होंने पहली शादी 1994 में एक चर्च में की थी. वह कुकी जनजाति से ताल्लुक रखते हैं. असम के दीमा हसाओ जिले में गांव के बुजुर्गों की पंचायत जैसी एक समिति की मदद से स्थानीय रीति-रिवाज वाले कानून का हवाला देकर इस शादी को भंग करा दिया गया. बाद में अधिकारी महोदय ने दूसरी शादी कर ली. पहली पत्नी ने कोर्ट का रुख किया. सुप्रीम कोर्ट में मामला आने से पहले 2022 में गुवाहाटी हाई कोर्ट ने जो फैसला दिया, उसने मामले को कानूनी रूप से जटिल बना दिया.
जी हां, हाई कोर्ट ने साफ कह दिया कि प्रथागत तरीके से विवाह को रद्द नहीं किया जा सकता है. कोर्ट के सामने सवाल यही था कि क्या चर्च में कुकी जनजाति के किसी पुरुष और महिला के विवाह को पति की मांग पर ग्राम समिति और बुजुर्गों वाली संस्था की तरफ से स्थानीय नियमों के आधार पर भंग किया जा सकता है?
दो शादी पर हाई कोर्ट का फैसला
गुवाहाटी हाई कोर्ट ने फैसले में कहा कि ईसाई विवाह अधिनियम 1872 के तहत एक बार चर्च में विवाह होने के बाद इसे गांव के बुजुर्गों से जुड़ी कानूनी प्रथाओं द्वारा रद्द नहीं किया जा सकता है. अदालत ने कहा कि इस तरह के विवाह को तलाक अधिनियम 1869 की धारा 10 के अनुसार हाई कोर्ट या जिला न्यायाधीश के समक्ष शुरू की गई कार्यवाही के माध्यम से ही भंग किया जा सकता है.
इस फैसले से क्यूबा में भारतीय राजदूत थोंगकोमांग आर्मस्ट्रांग चांगसन अजीब वैवाहिक संकट में फंस गए क्योंकि अब उनके पास दो पत्नियां हो गईं. पहली पत्नी नीखोल चांगसन के साथ उनकी चर्च में शादी हुई थी. रस्मी तलाक लेकर उन्होंने दूसरी महिला से शादी कर ली थी. दोनों शादियों से उनकी एक-एक बेटी है. अब सुप्रीम कोर्ट ने भी डिप्लोमेट चांगसन से कोई सहानुभूति नहीं दिखाई. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मध्यस्थता की कोशिश विफल रह गई.
अब सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
TOI की रिपोर्ट के मुताबिक, चांगसन की अपील पर जस्टिस सूर्यकांत और जे. बागची की पीठ ने मौखिक रूप से कहा कि हाई कोर्ट का फैसला कानूनी रूप से सही है. यह देखते हुए कि भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी की शादी को अब लगभग 15 साल हो गए हैं, कोर्ट ने इस कानूनी रूप से जटिल मुद्दे का समाधान खोजने और पहली पत्नी को एक नया जीवन शुरू करने में मदद का फैसला किया है. राजदूत ने बताया कि वह पहली पत्नी नीखोल को 20,000 रुपये महीने दे रहे हैं और उन्होंने दिल्ली में एक घर भी दिया है. उधर, नीखोल ने अदालत को बताया कि उसने अकेले ही अपनी बेटी का पालन-पोषण किया. पहली पत्नी ने आगे आरोप लगाया कि पति ने साजिश कर उसे बेटी (29) से अलग कर दिया है.
राजदूत की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि पिता अपनी बेटी का खर्च उठा रहे हैं, जो बेंगलुरु में अपना करियर बना रही है. महिला ने आरोप लगाया है कि पति ने बुजुर्गों को अपने साथ कर शादी गुप्त तरीके से भंग करवा दी थी. न्यायमूर्ति कांत के नेतृत्व वाली पीठ ने पहली पत्नी से कहा, 'हमें उस व्यक्ति के लिए कोई सहानुभूति नहीं है. उच्च न्यायालय का फैसला आपके पक्ष में है और आपने सामाजिक और मानसिक रूप से पीड़ा झेली है लेकिन क्या आप नए सिरे से जीवन शुरू करने का कोई तरीका सोच सकती हैं?'
दिलचस्प बात यह है कि असम में कुकी जनजाति की सबसे बड़ी गवर्निंग बॉडी 'कुकी इनपी' ने कहा है कि कुकी प्रथागत कानून न तो चर्च में किए गए ईसाई विवाह को भंग कर सकता है और न ही यह किसी भी जोड़े को कपल की इच्छा के खिलाफ फिर से जुड़ने के लिए मजबूर कर सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नीखोल के लिए अपनी बेटी से मिलना और भविष्य पर चर्चा करना फायदेमंद हो सकता है. कोर्ट ने राजदूत से बेंगलुरु के लिए टिकट की व्यवस्था करने का आदेश दिया है. राजदूत को 3 लाख रुपये भी देने को कहा है जिससे मां अपनी बेटी से मिल सके. न्यायमूर्ति कांत ने कहा, 'अगर समझौता होने की कोई संभावना है, तो बेटी की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है.'
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