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सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका, कहा- तय प्रकिया का पालन किया; सुनवाई में जस्टिस वर्मा ने क्या दी दलील

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस वर्मा की ओर से वकील कपिल सिब्बल की दलील थी कि किसी जज को संविधान के आर्टिकल 124(4) के तहत संसद की ओर से हटाया जा सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका, कहा-  तय प्रकिया का पालन किया; सुनवाई में जस्टिस वर्मा ने क्या दी दलील
Arvind Singh|Updated: Aug 07, 2025, 02:26 PM IST
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सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका को खारिज कर दिया है जस्टिस वर्मा ने दिल्ली हाई कोर्ट के जज रहते अपने घर से जला हुआ कैश मिलने के मामले में जांच कमेटी की रिपोर्ट को अमान्य करार देने की मांग की थी. इसके साथ ही जस्टिस वर्मा ने तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की उन्हें पद से हटाने के  लिए राष्ट्रपति और पीएम को भेजी गई सिफारिश को भी चुनौती दी थी.

इन हाउस जांच प्रकिया कानूनन वैध...

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने कहा कि इस मामले में इन हाउस जांच कमेटी का गठन और उनकी ओर से जांच की प्रकिया गैरकानूनी नहीं थी. इन हाउस जांच प्रकिया की अपनी कानूनी वैधता है. सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों में इस पर मुहर लग चुकी है. यह सवैंधानिक व्यवस्था से बाहर कोई समांतर प्रकिया नहीं है. चीफ जस्टिस और कमेटी ने तय प्रकिया का पालन किया है.

वेबसाइट पर वीडियो डालना ठीक नहीं...

सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि माना कि कमेटी के गठन से पहले सुप्रीम कोर्ट की ओर से जस्टिस वर्मा के आवास पर अधजले कैश से जुड़ा वीडियो/ फोटोग्राफ वेबसाइट पर डालना गैर जरूरी था. इससे बचा जाना चाहिए था, लेकिन कोर्ट ने कहा कि अब इस दलील की कोई अहमियत नहीं है, क्योंकि जस्टिस वर्मा ने उसी वक़्त इसके विरोध में कोई अर्जी दाखिल नहीं की थी. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जस्टिस वर्मा को पद से हटाने के लिए चीफ जस्टिस की ओर से प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भेजी गई  सिफारिश भी असंवैधानिक नहीं है.

जस्टिस वर्मा के अधिकार का हनन नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले के जस्टिस यशवंत वर्मा की ओर से पेश वकील की इस दलील का भी जवाब दिया कि इन हाउस जांच कमेटी की रिपोर्ट प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भेजने से पहले  चीफ जस्टिस को जस्टिस वर्मा को व्यक्तिगत सुनवाई के मौका देना चाहिए था. कोर्ट ने कहा कि तय प्रकिया के तहत चीफ जस्टिस के लिए ऐसा करना ज़रूरी नहीं था. सिर्फ इसलिए कि पहले कुछ ऐसे मामलों में चीफ जस्टिस ने संबंधित जज को व्यक्तिगत सुनवाई के लिए मौका दिया, इसे जस्टिस  यशवंत वर्मा अपने अधिकार के तौर पर दावा नहीं कर सकते

जस्टिस वर्मा की दलील...

सुनवाई के दौरान जस्टिस वर्मा की ओर से वकील कपिल सिब्बल पेश हुए थे. सिब्बल की दलील थी कि किसी जज को संविधान के आर्टिकल 124(4) के तहत संसद की ओर से हटाया जा सकता है. उन्होंने  इन हाउस कमेटी के जांच के तरीके पर सवाल उठाते हुए इस पूरी प्रकिया की वैधता पर भी सवाल खड़े किए थे. उनका कहना था कि चीफ जस्टिस का राष्ट्रपति और पीएम को उन्हें हटाने की सिफारिश भेजना सवैंधानिक रूप से गलत था. सिब्बल ने दलील दी थी कि उन्हें उम्मीद थी कि कमेटी जांच करेगी कि कैश किसका था, पर कमेटी ने उनसे कहा कि वो साबित  करे कि कैश किसका है. सिब्बल ने कमेटी के गठन से पहले जस्टिस  वर्मा के घर पर कैश से जुड़े वीडियो, डॉक्यूमेंट के वेबसाइट पर डालने को लेकर भी सवाल किया था. उनका कहना था कि  किसी जज को आर्टिकल 124 के तहत मौजूदा सवैंधानिक  प्रकिया के ज़रिए ही हटाया जा सकता है और उससे पहले जज का आचरण सार्वजनिक चर्चा का विषय नहीं हो सकता।पर इस केस में  22 मार्च को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर वीडियो डाल दिया गया , जनता के बीच उन्हें पहले  ही दोषी मान लिया गया.

सुप्रीम कोर्ट के सवाल

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कपिल सिब्बल की दलील पर कई सवाल खड़े किए थे. कोर्ट ने सवाल उठाया था कि अगर जस्टिस वर्मा का एतराज इस बात को लेकर था कि इन हाउस जांच प्रकिया वैध नहीं है तो  फिर वो कमेटी के सामने पेश क्यों हुए. उन्हें तभी इस कमेटी के गठन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट आना चाहिए था. कोर्ट ने कहा था कि चीफ जस्टिस कोई पोस्ट ऑफिस नहीं है कि वो सिर्फ सूचना का आदान प्रदान करें. जुडिसिरी के चीफ होने के नाते  उनकी राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी बनती है. उन्हें अपने पास उपलब्ध तथ्यों के आधार पर जज का कदाचार नज़र आता है तो वो निश्चित तौर पर उन्हें पद से हटाने की सिफारिश भेज सकते है.

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