Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका PIL खारिज कर दी जिसमें राजनीतिक दलों को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा देने वाले POSH कानून के दायरे में लाने की मांग की गई थी. शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि यह मामला संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है इसलिए कोर्ट इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता.
वे POSH कानून के अंतर्गत नहीं..
असल में याचिका में यह मांग नहीं की गई थी कि कोई नया कानून बनाया जाए बल्कि सिर्फ यह आग्रह था कि POSH अधिनियम की व्याख्या इस तरह हो कि राजनीतिक दलों को भी उसके दायरे में शामिल किया जाए. वरिष्ठ वकील शोभा गुप्ता ने दलील दी कि केरल हाई कोर्ट के एक फैसले में कहा गया है कि राजनीतिक दलों में नियोक्ता और कर्मचारी का रिश्ता नहीं माना जाता. इसलिए वे POSH कानून के अंतर्गत नहीं आते.
इस पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता को स्वतंत्र रूप से केरल हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देनी चाहिए. न कि इस तरह की जनहित याचिका दाखिल करनी चाहिए. इसके बाद याचिकाकर्ता ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी. जिसे कोर्ट ने मंजूर कर लिया और मामला समाप्त हो गया.
चुनाव आयोग से संपर्क करें..
इससे पहले दिसंबर 2023 में भी सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी ही एक याचिका खारिज की थी और याचिकाकर्ता से कहा था कि वह चुनाव आयोग से संपर्क करें क्योंकि राजनीतिक दलों को दिशा निर्देश देने का अधिकार आयोग के पास है. यदि वहां से समाधान नहीं मिलता, तो वे कानून के तहत आगे की कार्यवाही कर सकते हैं.
नई याचिका में यह भी कहा गया था कि चुनाव आयोग को मार्च 2025 में पत्र भेजा गया था लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है. याचिका में POSH अधिनियम को राजनीतिक दलों के लिए भी लागू करने की मांग की गई थी ताकि महिलाओं को एक सुरक्षित कार्य वातावरण मिल सके. इसमें केंद्र सरकार चुनाव आयोग समेत 10 प्रमुख दलों को पक्षकार बनाया गया था. Ians Input
Q1: सुप्रीम कोर्ट ने याचिका क्यों खारिज की?
Ans: कोर्ट ने कहा कि यह नीति निर्धारण का मामला है. जो संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है.
Q2: याचिका में क्या मांग की गई थी?
Ans: याचिका में राजनीतिक दलों को POSH कानून के तहत लाने की अपील की गई थी.
Q3: POSH कानून का उद्देश्य क्या है?
Ans: POSH अधिनियम कार्यस्थल पर महिलाओं की यौन उत्पीड़न से सुरक्षा सुनिश्चित करता है.
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