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कोई कोर्ट सबोर्डिनेट नहीं होता और सुप्रीम कोर्ट... विदाई भाषण में बहुत कुछ सिखा गए जस्टिस अभय एस ओका

Supreme Court News: जस्टिस ओका ने कहा, 'न्यायालय एक सुंदर अवधारणा है. जब आप वकील होते हैं, तो आपके सामने कई तरह की बाधाएं हो सकती हैं, लेकिन जब आप जज होते हैं, तो संविधान, कानून और आपकी अंतरात्मा के अलावा कोई भी आपको नियंत्रित नहीं कर सकता.'

कोई कोर्ट सबोर्डिनेट नहीं होता और सुप्रीम कोर्ट... विदाई भाषण में बहुत कुछ सिखा गए जस्टिस अभय एस ओका
Shwetank Ratnamber|Updated: May 23, 2025, 10:42 PM IST
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Justice Abhay S Oka news: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस. ओका ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में अपना विदाई भाषण देते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय मुख्य न्यायाधीश-केंद्रित अदालत है, जिसमें बदलाव की जरूरत है. शनिवार को पद छोड़ने जा रहे जस्टिस ओका ने कहा कि देश के विभिन्न भागों से 34 न्यायाधीशों वाले सर्वोच्च न्यायालय की विविधता इसकी कार्यप्रणाली में झलकनी चाहिए.

'सभी को विश्वास में लेकर फैसले लिए'

उन्होंने पारदर्शिता पहल के लिए पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की सराहना करते हुए कहा कि खन्ना ने सभी को विश्वास में लेकर निर्णय लिए. जस्टिस ओका ने कहा कि वर्तमान मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई के खून में 'लोकतांत्रिक मूल्य समाहित हैं'.

अपने भाषण में जस्टिस ओका ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की सहायता से शीर्ष न्यायालय में मामलों की लिस्टिंग का सुझाव दिया. उन्होंने कहा कि जब तक मैनुअल हस्तक्षेप को कम नहीं किया जाता, तब तक बेहतर लिस्टिंग नहीं हो सकती.

काम की संतुष्टि ही सबकुछ

पिछले 21 साल और 9 महीने से जज के रूप में कार्यरत जस्टिस ओका ने कहा कि वह अपने न्यायिक कार्य में इतने व्यस्त हो गए कि न्यायाधीश का पद जीवन बन गया और जीवन न्यायाधीश का पद बन गया. उन्होंने कहा कि जब कोई व्यक्ति बेंच में शामिल होता है, तो उसे वकील जितनी आय नहीं मिलती, लेकिन काम से मिलने वाली संतुष्टि की तुलना वकील के रूप में करियर से नहीं की जा सकती.

जस्टिस ओका ने कहा, 'न्यायालय एक सुंदर अवधारणा है. जब आप वकील होते हैं, तो आपके सामने कई तरह की बाधाएं हो सकती हैं, लेकिन जब आप न्यायाधीश होते हैं, तो संविधान, कानून और आपकी अंतरात्मा के अलावा कोई भी आपको नियंत्रित नहीं कर सकता.'

अपने विदाई भाषण में जस्टिस ओका ने अपने परिवार के बलिदानों को याद किया, जिसमें उनके पिता भी शामिल थे, जिन्होंने अपने बेटे के बेंच में पदोन्नत होने के बाद बॉम्बे हाई कोर्ट में सिविल प्रैक्टिस छोड़ दी थी. उन्होंने जोर देकर कहा कि जिला न्यायालयों या ट्रायल कोर्ट को अधीनस्थ न्यायालय नहीं कहा जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, कोई भी कोर्ट अधीनस्थ नहीं होता. कोर्ट को अधीनस्थ कहना हमारे संवैधानिक मूल्यों के विरुद्ध है. (आईएएनएस)

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