trendingNow12509144
Hindi News >>देश
Advertisement

Justice Sanjiv Khanna: चाचा ने इमरजेंसी के दौर में इंदिरा गांधी के खिलाफ दिया फैसला, भतीजा बना CJI

Chief Justice of India: जस्टिस एच आर खन्ना आपातकाल के दौरान एडीएम जबलपुर मामले में असहमतिपूर्ण फैसला लिखने के बाद 1976 में इस्तीफा देने के कारण चर्चा में रहे थे. 

Justice Sanjiv Khanna: चाचा ने इमरजेंसी के दौर में इंदिरा गांधी के खिलाफ दिया फैसला, भतीजा बना CJI
Atul Chaturvedi|Updated: Nov 11, 2024, 10:23 AM IST
Share

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ रविवार को रिटायर हो गए. उनकी जगह जस्टिस संजीव खन्‍ना ने देश के 51वें चीफ जस्टिस के रूप में शपथ ली है. जस्टिस संजीव खन्ना को 18 जनवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था. वह लंबित मामलों को कम करने और न्याय मुहैया कराने में तेजी लाने पर जोर देते रहे हैं. दिल्ली के एक प्रतिष्ठित परिवार से ताल्लुक रखने वाले जस्टिस खन्ना दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जज न्यायमूर्ति देव राज खन्ना के बेटे और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एच आर खन्ना के भतीजे हैं. 

एडीएम जबलपुर केस
जस्टिस एच आर खन्ना आपातकाल के दौरान एडीएम जबलपुर मामले में असहमतिपूर्ण फैसला लिखने के बाद 1976 में इस्तीफा देने के कारण चर्चा में रहे थे. आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों के हनन को बरकरार रखने वाले संविधान पीठ के बहुमत के फैसले को न्यायपालिका पर एक ‘‘काला धब्बा’’ माना गया. न्यायमूर्ति एच आर खन्ना ने इस कदम को असंवैधानिक और कानून के शासन के खिलाफ घोषित किया और इसकी कीमत चुकाई क्योंकि तत्कालीन केंद्र सरकार ने उन्हें दरकिनार कर न्यायमूर्ति एम एच बेग को अगला प्रधान न्यायाधीश बना दिया.

न्यायमूर्ति एच आर खन्ना 1973 के केशवानंद भारती मामले में संविधान का मूल ढांचा सिद्धांत को प्रतिपादित करने वाले ऐतिहासिक फैसले का हिस्सा थे.

जस्टिस संजीव खन्‍ना (Justive Sanjiv Khanna)
जस्टिस खन्ना का जन्म 14 मई, 1960 को हुआ था. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस लॉ सेंटर से कानून की पढ़ाई की. न्यायमूर्ति खन्ना राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) के कार्यकारी अध्यक्ष हैं. उन्होंने 1983 में दिल्ली बार काउंसिल में एक वकील के रूप में नामांकन कराया और शुरुआत में यहां तीस हजारी परिसर में जिला अदालत में और बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय में वकालत की.

आयकर विभाग के वरिष्ठ स्थायी वकील के रूप में उनका कार्यकाल लंबा रहा. 2004 में, उन्हें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के लिए स्थायी वकील (सिविल) के रूप में नियुक्त किया गया था. न्यायमूर्ति खन्ना दिल्ली उच्च न्यायालय में अतिरिक्त सरकारी अभियोजक और न्याय मित्र के रूप में कई आपराधिक मामलों में भी अदालत की सहायता की थी.

प्रमुख फैसले
जनवरी 2019 से सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में कार्यरत न्यायमूर्ति खन्ना के उल्लेखनीय निर्णयों में से एक चुनावों में ईवीएम के उपयोग को बरकरार रखना है, जिसमें कहा गया है कि ये उपकरण सुरक्षित हैं और बूथ कब्जा करने और फर्जी मतदान की आशंका को खत्म करते हैं. न्यायमूर्ति खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने 26 अप्रैल को ईवीएम में हेरफेर की आशंका को ‘‘निराधार’’ करार दिया और पुरानी मतपत्र प्रणाली पर वापस लौटने की मांग को खारिज कर दिया. 

वह पांच न्यायाधीशों की उस पीठ का भी हिस्सा थे जिसने राजनीतिक दलों को वित्त पोषण के लिए बनाई गई चुनावी बॉण्ड योजना को असंवैधानिक घोषित किया था.

न्यायमूर्ति खन्ना उस पांच न्यायाधीशों की पीठ का हिस्सा थे, जिसने तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के 2019 के फैसले को बरकरार रखा था. 

जस्टिस खन्ना की अगुवाई वाली पीठ ने ही पहली बार आबकारी नीति घोटाला मामलों में लोकसभा चुनाव में प्रचार करने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री केजरीवाल को एक जून तक अंतरिम जमानत दी थी.

न्यायमूर्ति खन्ना का कार्यकाल 13 मई 2025 तक रहेगा.

Read More
{}{}