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'लाखों वोटर खो देंगे मतदान का अधिकार..' वोटर लिस्ट रिविजन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका

Supreme Court: याचिका में कहा गया है कि  इस आदेश के ज़रिए चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट में अपना नाम शामिल करने की योग्यता साबित करने की जिम्मेदारी सरकार के बजाए आम नागरिक पर डाल दी है.

File Photo
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Arvind Singh|Updated: Jul 05, 2025, 02:16 PM IST
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Supreme Court Plea ADR: बिहार में वोटर लिस्ट के रिविजन के चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हुई है. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ADR की तरफ से दायर याचिका में  कहा गया है कि चुनाव आयोग का यह फैसला मनमाना है और इसके चलते बिहार के लाखों मतदाताओं का मतदान का अधिकार छीन जाएगा. बिहार में इसी साल चुनाव होने हैं. बीते 24 जून को चुनाव आयोग ने बिहार में वोटर लिस्ट के एसआईआर (स्पेशल इंटेंसिव रिविजन) की घोषणा की थी. आयोग के इस फैसले पर विपक्षी दल के नेता भी अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके है.

'आयोग का फैसला असंवैधानिक, मनमाना'
ADR की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि बिहार में वोटर लिस्ट के रिवीजन का चुनाव आयोग का यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 के साथ साथ रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल एक्ट, और रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्टर्स रूल्स, 1960 के नियम 21ए का भी उल्लंघन करता है. अगर यह आदेश रद्द नहीं किया गया तो यह लाखों मतदाताओं को बिना किसी वाजिब वजह के वोट देने से अधिकार से वंचित कर देगा. इसका सीधा असर चुनाव प्रकिया की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर पड़ेगा. यह संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन होगा.

'वंचित तबके के लाखों लोगों के नाम कट जाएंगे'
याचिका में कहा गया है कि  इस आदेश के ज़रिए चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट में अपना नाम शामिल करने की योग्यता साबित करने की जिम्मेदारी सरकार के बजाए आम नागरिक पर डाल दी है. चुनाव आयोग के आदेश में जिस तरह वोटर लिस्ट में नाम शामिल कराने के लिए आधार, राशन कार्ड जैसे सामान्य पहचान पत्र के बजाए दूसरे दस्तावेजों को पेश करने, अपने साथ साथ अभिभावकों की पहचान साबित करने के लिए दस्तावेज पेश करने की बाध्यता रखी गई है. उसके चलते समाज के वंचित तबके के लाखो लोगो के नाम वोटर लिस्ट से कट जाएंगे.

'वोटरों को दस्तावेज जुटाने के लिए कम समय मिलेगा'
बिहार में चुनाव नवंबर में होने हैं. ऐसे में आयोग ने वोटर लिस्ट रिवीजन के लिए जो समयसीमा तय की है वो गैरवाजिब और अव्यवहारिक है. लाखों की संख्या में ऐसे वोटर हैं जिनके नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं थे. उनके पास आयोग के आदेश के मुताबिक जरूरी दस्तावेज भी नहीं है. इतनी कम समयसीमा में इन दस्तावेजों का हासिल करना उनके लिए संभव नहीं होगा.

याचिका के मुताबिक बिहार में गरीबी और बड़ी संख्या में माइग्रेशन के चलते ऐसे लोग हैं जिनके पास अपने माता पिता के जन्म प्रमाणपत्र और दूसरे दस्तावेज नहीं है. इस आदेश के चलते  SC/ST, वंचित, प्रवासी मजदूर तबके के 3 करोड़ से ज़्यादा लोग वोट का अधिकार खो बैठेंगे.

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