अरविंद सिंह,नई दिल्ली: असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी (AIMIM) की मान्यता रद्द करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इंकार किया है. शिवसेना नेता तिरूपति नरसिम्हा मुरारी की ओर से दायर याचिका में AIMIM को धार्मिक आधार पर गठित पार्टी बताते हुए इसकी मान्यता रद्द करने की मांग की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सुझाव दिया कि वो किसी पार्टी विशेष को लेकर अर्जी दाखिल करने के बजाए धार्मिक और जातीय आधार पर वोट मांगने वाले राजनीतिक दलों को लेकर व्यापक याचिका दाखिल करें.
'सिर्फ मुस्लिमों के हितों की नुमाइंदगी'
कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि जनप्रतिनिधत्व अधिनियम के तहत यह ज़रूरी है कि पार्टी सेकुलरिज्म की अवधारणा को माने पर AIMIM अपने आप मे एक मजहबी पार्टी है, जिसका एकमात्र मकसद सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम समुदाय के हितों के लिए काम करना है. अर्जी में कहा गया है कि एआईएमआईएम के पदाधिकारी, नेता और कार्यकर्ता हिंदू समुदाय और मूर्ति पूजा का अपमान करते हैं ताकि मुस्लिम समुदाय के वोट बैंक को हासिल किया जा सके.
वकील की दलील,कोर्ट के सवाल
आज इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील विष्णु शकंर जैन पेश हुए. विष्णु शंकर जैन ने कहा कि AIMIM का संविधान ही सेकुलरिज्म की अवधारणा के खिलाफ है. जनप्रतिनिधत्व अधिनियम के सेक्शन 29 A के तहत इस पार्टी को मान्यता नहीं दी जा सकती. जैन ने दलील दी कि AIMIM कहती है कि वो मुस्लिम समुदाय के बीच मजहबी शिक्षा को बढ़ावा देगी. यहाँ भेदभाव की बात है कि अगर मैं चुनाव आयोग से किसी पार्टी के हिंदू नाम से रजिस्ट्रेशन मांगू और पार्टी के उद्देश्य के रूप में कहूँ कि मैं वेद की शिक्षा को बढ़ावा देना चाहता हूँ तो मेरी पार्टी को आयोग को मान्यता नहीं देगा.
इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि अगर चुनाव आयोग वेद या किसी धार्मिक ग्रंथ से जुड़ी शिक्षा पर ऐतराज करता है तो आप इसके लिए उपयुक्त क़ानूनी विकल्प आजमा सकते है. क़ानून में इसको लेकर कोई मनाही नहीं है.
SC का सुझाव
वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि आखिर कोई राजनीतिक पार्टी कैसे यह घोषणा कर सकती है कि वो सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लिए काम करेंगी, किसी और के लिए नहीं. जैन ने अपनी दलीलों के समर्थन में अभिराम सिंह केस में दिए सुप्रीम कोर्ट फैसले का हवाला दिया. इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि धर्म पर वोट मांगना धर्म, जाति, संप्रदाय या भाषा के आधार पर वोट मांगना भ्रष्ट आचरण है.
कोर्ट ने कहा कि कई बार राजनीतिक पार्टी स्थानीय भावनाओं को उकसाती है, तो कई बार वो जातीय मुद्दों को उभारती है, वो भी उतना ही खतरनाक है. अगर आप राजनीतिक पार्टियों के इस रवैये पर याचिका दाखिल करना चाहते है तो बेहतर होगा कि किसी एक पार्टी को पक्ष बनाने के बजाए इस मसले पर व्यापक अर्जी दाखिल करें.
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