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कितना पुराना है कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद? इस केस में वर्शिप एक्ट का क्या है रोल

Krishna Birthplace Controversy: कृष्‍ण जन्‍मभूमि से जुड़ा विवाद लगभग 350 साल पुराना है. कृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह का ये विवाद 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना हक से जुड़ा है. जिसमें हिंदू पक्ष का दावा है कि 17वीं शताब्दी में मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी.

कितना पुराना है कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद? इस केस में वर्शिप एक्ट का क्या है रोल
Gaurav Pandey|Updated: Dec 15, 2023, 09:31 PM IST
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Mathura Shahi Idgah Survey: मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और ईदगाह विवाद पर शुक्रवार को मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका लगा है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सर्वे पर दिए गए इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है. उस पर रोक लगाने से साफ मना कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा बिना तय प्रोसीजर के रोक लगाने की डिमांड रखी गई इसलिए इस पर सुनवाई नहीं हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि उनकी कोर्ट में ये केस 9 जनवरी 2024 के लिए लिस्टेड है और उसी दिन इस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट के रुख के बाद ये साफ हो गया है कि अब मथुरा में ईदगाह मस्जिद में सर्वे को लेकर सारी बाधाएं दूर हो चुकी हैं और अब सर्वे जरूर होगा. आइए जानते हैं कि यह मामला कितना पुराना है और इस मामले में वर्शिप एक्ट कितना अहम है. 

लगभग 350 साल पुराना है विवाद
कृष्‍ण जन्‍मभूमि से जुड़ा विवाद लगभग 350 साल पुराना है. कृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह का ये विवाद 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना हक से जुड़ा है. जिसमें हिंदू पक्ष का दावा है कि 17वीं शताब्दी में मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी. याचिका में हिंदू पक्ष ने मस्जिद की दीवारों पर कमल के फूल और शेषनाग की आकृति होने का दावा करते हुए सर्वे की मांग की थी. कृष्ण जन्मभूमि और शाही मस्जिद विवाद में कुल 18 मामले हैं, जिनकी अब हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है. जिसमें हिन्दू और मुस्लिम पक्ष के अपने-अपने दावे हैं. हिंदू पक्ष ने ईदगाह मस्जिद को हटाने और मस्जिद वाली जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान को देने की मांग की है. हिंदू पक्ष का ये भी दावा है कि नगर निगम में मुस्लिम पक्ष का नाम दर्ज नहीं है और रेवेन्यू रिकॉर्ड में पूरी जमीन मंदिर ट्रस्ट के नाम है.

कितना अहम है प्लेसेस ऑफ़ वर्शिप एक्ट ?
असल में इस मामले में मुस्लिम पक्ष का कहना है कि सर्वे का आदेश देना एक प्रकार से प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट का उल्लंघन है. इसके बाद मामला हाईकोर्ट में गया और फिर सुप्रीम अदालत में गया. जबकि एक्ट में यह प्रावधान है कि यथास्थिति बरकरार रखी जाए और कोर्ट की तरफ से सिर्फ सर्वे का आदेश दिया गया है. लेकिन सर्वे का आखिर प्वाइंट क्या है? सर्वे से क्या हल निकल रहा है? इसको ऐसे समझिए कि यदि वहां पर मंदिर था और सर्वे में अगर निकलकर भी आता है तो भी इस स्पेशल वर्शिप एक्ट के हिसाब से ही होगा. 

क्या है प्लेसेस ऑफ़ वर्शिप एक्ट 1991 ?
1991 का पूजा अधिनियम 15 अगस्त 1947 से पहले सभी धार्मिक स्थलों की यथास्थिति बनाए रखने की बात कहता है. वह चाहे मस्जिद हो, मंदिर, चर्च या अन्य सार्वजनिक पूजा स्थल. उसे किसी भी अदालत या सरकार की तरफ से बदला नहीं जा सकता. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के अयोध्या फैसले के दौरान भी पांच न्यायाधीशों ने एक स्वर में यही कहा था.

इसमें पांच धाराएं हैं. प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट धारा -2 के मुताबिक 15 अगस्त 1947 में किसी धार्मिक स्थल में बदलाव को लेकर कोर्ट में केस लंबित है तो उसे रोक दिया जाएगा. प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट धारा-3 के मुताबिक किसी भी पूजा स्थल को दूसरे धर्म के पूजा स्थल के रूप में परिवर्तित नहीं किया जा सकता. प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट धारा – 4 (1) के मुताबिक विभिन्न धर्मों के पूजा स्थलों का चरित्र बरकरार रखा जाएगा. वहीं धारा – 4 (2) कहती है इस तरह के विवादों से जुड़े केसों को खत्म करने की बात कहती है.

यह पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार के समय आया था, तब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था. लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा, बिहार में उनकी गिरफ्तारी और उत्तर प्रदेश में कारसेवकों पर गोलीबारी ने सांप्रदायिक तनाव बढ़ा दिया था. इसी दौरान संसद में विधेयक को पेश करते हुए तत्कालीन गृहमंत्री एस बी चव्हाण ने कहा था सांप्रदायिक माहौल को खराब करने वाले पूजा स्थलों के रूपांतरण के संबंध में समय-समय पर उत्पन्न होने वाले विवादों को देखते हुए इन उपायों को लागू करना आवश्यक है.

क्या कहता है इतिहास? इसको सिलसिलेवार तरीके से ऐसे समझिए
श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर था प्राचीन केशवनाथ मंदिर
1669-70 में औरंगजेब के आदेश पर मंदिर तोड़ा
मंदिर की जगह शाही ईदगाह मस्जिद बनाई गई
1770- गोवर्धन में मराठों से जंग में मुगलों की हार
जीत के बाद मराठों ने फिर से मंदिर निर्माण कराया
1937- HC से 13.37 एकड़ ज़मीन कृष्ण दास को आवंटित
1951- श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने किया भूमि अधिग्रहण 
12 अक्टूबर 1968 को जन्मभूमि-ईदगाह ट्रस्ट में समझौता
विवादित ज़मीन पर मंदिर-मस्जिद दोनों पर सहमति
1964- जन्मभूमि पर कब्जे के लिए केस 
1968- संस्था का मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता 
1968- मुस्लिम पक्ष को 2.37 एकड़ भूमि मिली
मस्जिद प्रबंधन का अधिकार मिला
2020- हिंदू पक्ष कोर्ट पहुँचा, 1968 का समझौता रद्द करने की मांग
हिंदू पक्ष की मांग 13.37 एकड़ भूमि पर कब्जा मिले
दिसंबर 2023-
इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश
'शाही ईदगाह मस्जिद में सर्वेक्षण होगा'
SC से भी मुस्लिम पक्ष को झटका
सुप्रीम कोर्ट का सर्वे पर रोक से इनकार

फिलहाल हिंदू पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के रुख का स्वागत किया है. दूसरी तरफ मुस्लिम पक्ष कोर्ट के फैसले पर नाखुश दिखा है. जमीयत उलेमा ए हिंद के मुखिया मौलाना अरशद मदनी ने आरोप लगाया कि जानबूझकर मुस्लिमों को परेशान किया जा रहा है. मदनी ने सर्वे पर भी सवाल उठाए, उन्होंने कहा कि सर्वे तो बाबरी और दूसरी मस्जिदों का भी हुआ था जिसमें साबित हुआ था कि वहां पर मस्जिद थी. मुस्लिम पक्ष से जुड़े दूसरे लोगों के बयानों का लब्बोलुआब भी करीब करीब ऐसा ही है. सवाल ये भी है कि क्या सर्वे के बाद श्रीकृष्ण जन्मभूमि और ईदगाह मस्जिद विवाद खत्म हो जाएगा या फिर इस विवाद की पटकथा अभी और ज्यादा लंबी होने वाली है

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