Uddhav Thackeray Devendra Fadnavis: महाराष्ट्र की राजनीति में एक तरंग उठती है और उसकी हलचल दिल्ली तक पहुंच जाती है. इस बार भी यही हुआ है. सीएम देवेंद्र फडणवीस और उद्धव ठाकरे की मुलाकात हुई. इस मुलाकात के तो वैसे कई बहाने हैं लेकिन राजनीतिक विश्लेषक अपने-अपने निहितार्थ निकालने में जुट गए हैं. अब तक एक दूसरे पर तीखे बाण छोड़ रहे उद्धव ठाकरे और देवेंद्र फडणवीस आमने-सामने बैठे. यह मुलाकात विधान परिषद के सभापति राम शिंदे के कक्ष में हुई. मुलाकात करीब 20 मिनट तक चली. खास बात यह रही कि महज एक दिन पहले ही फडणवीस ने सार्वजनिक मंच से ठाकरे को सत्ता पक्ष में आने का चुटीला न्योता दिया था.
असल में इस मुलाकात में ठाकरे के साथ उनके बेटे आदित्य ठाकरे और शिवसेना यूबीटी के कुछ विधायक भी मौजूद थे. वैसे तो बताया गया कि बातचीत में विधानसभा में नेता विपक्ष की नियुक्ति और विवादास्पद त्रिभाषा नीति जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई. ठाकरे ने इस मौके पर फडणवीस को Why Should Hindi Be Imposed? नामक एक किताब भी भेंट की जिसे उन्होंने मुख्यमंत्री द्वारा गठित त्रिभाषा नीति समीक्षा समिति के अध्यक्ष को देने का सुझाव दिया.
राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज
फडणवीस ने किताब तो ले ली लेकिन कहा कि नेता विपक्ष की नियुक्ति विधानसभा अध्यक्ष के अधिकार क्षेत्र में आती है और उस पर निर्णय लंबित है. इस मुलाकात को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज हो गई है कि क्या बीजेपी और उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) के बीच कोई नया समीकरण बन सकता है? इस राजनीतिक गर्माहट के बीच यह भी देखा जा रहा है कि फडणवीस का यह कदम कहीं शिंदे गुट की पकड़ कमजोर करने की कोशिश तो नहीं.
एकनाथ शिंदे के लिए मुश्किलें?
एक्सपर्ट्स का यह भी कहना है कि महायुति गठबंधन के भीतर बीच-बीच में तनाव निकलकर आ ही जाता है. ऐसे में यह मुलाकात महत्त्वपूर्ण संकेत दे रही है. अगर उद्धव और फडणवीस की नजदीकियां बढ़ती हैं तो यह एकनाथ शिंदे के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं. शिंदे गुट के साथ बीजेपी और अजित पवार की एनसीपी महायुति सरकार का हिस्सा हैं लेकिन समीकरणों में बदलाव महाराष्ट्र की राजनीति को किसी भी दिशा में मोड़ सकते हैं.
गठबंधन की भी जवाबदेही बन रही..
हालांकि इसकी संभावना बहुत कम ही है. इसके कई कारण हैं. निकाय चुनाव होने वाले हैं और उधर ठाकरे ब्रदर्स फिर से एक साथ आ चुके हैं. इसके अलावा उनके साथ विपक्षी गठबंधन की भी जवाबदेही बन रही है. एनसीपी पहले से ही विपक्ष में उनके साथ है और कांग्रेस भी विपक्षी गठबंधन का हिस्सा है. मगर फिर भी महाराष्ट्र की राजनीति के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता कि क्या हो जाए.
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