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शादी में कन्यादान, सात फेरे या मंगलसूत्र में क्या जरूरी, हाईकोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

Allahabad हाई कोर्ट ने कहा है कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत विवाह संपन्न कराने के लिए 'कन्यादान' आवश्यक नहीं है, जबकि सप्तपदी यानी कि सात फेरे जरूरी हैं..

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Allahabad High Court
Allahabad High Court
Zee Media Bureau|Updated: Apr 08, 2024, 11:55 AM IST
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Allahabad High Court: इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court)  ने साफ किया है कि हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) के तहत विवाह संपन्न कराने के लिए कन्यादान की रस्म अनिवार्य नहीं है. कोर्ट ने कहा कि इस अधिनियम के प्रविधानों के मुताबिक सिर्फ सप्तपदी (Saptapadi)  ही ऐसी परंपरा है जो हिंदू विवाह को संपन्न करने के लिए जरूरी है.  यह टिप्पणी उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने एक आशुतोष यादव द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए दी

ये है पूरा मामला, जिस पर कोर्ट ने सुनाया फैसला
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आशुतोष यादव की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये फैसला दिया. आशुतोष यादव, जिन्होंने अपने ससुराल वालों द्वारा दायर एक आपराधिक मामले को लड़ते हुए 6 मार्च को लखनऊ के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित एक आदेश को कोर्ट में चुनौती दी थी. उन्होंने ट्रायल कोर्ट के सामने कहा था कि अधिनियम के तहत उनकी शादी के लिए 'कन्यादान' समारोह जरूरी है, जो नहीं किया गया. इसलिए इस बात की पुष्टि करने के लिए फिर से गवाहों को समन दिया जाए. 

हाई कोर्ट ने कहा-सात फेरे हैं जरूरी
याची के मुताबिक  इस मामले को लेकर काफी जिरह और विवाद हुआ था. कोर्ट ने कहा कि इस अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक सिर्फ सप्तपदी ही ऐसी परंपरा है जो हिंदू विवाह को संपन्न करने के लिए जरूरी है, कन्यादान नहीं. ऐसे में यह प्रासंगिक नहीं है कि कन्‍यादान हुआ था या नहीं. लिहाजा गवाहों को फिर से समन भेजने की जरूरत ही नहीं है. इन टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया.

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