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Kalyan Singh: रामलला के लिए कल्याण सिंह ने छोड़ दी थी कुर्सी, पूर्व सीएम की जयंती पर याद आया विवादित ढांचा विध्वंस का वो किस्सा

Kalyan Singh Jayanti: उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में कारसेवा के दौरान कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश देने से इनकार कर दिया था. राम मंदिर आंदोलन में उनका बड़ा योगदान था.

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Kalyan Singh
Kalyan Singh
Amrish Kumar Trivedi|Updated: Jan 05, 2024, 01:01 PM IST
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Kalyan Singh Jayant : राम जन्मभूमि आंदोलन का जिक्र हो और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को याद न किया जाए, ऐसा नहीं हो सकता. कल्याण सिंह ने बाबरी विध्वंस को लेकर अपनी कुर्सी गंवा दी थी, लेकिन उन्हें इस बात का रत्ती भर भी अफसोस नहीं था. राम जन्मभूमि आंदोलन के चरम पर पहुंचने के बीच 1991 में उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तो वो मुख्यमंत्री बने. कल्याण सिंह ने भाजपा संगठन को मजबूत करने के लिए पदयात्रा से लेकर रथयात्रा तक की जिम्मेदारी संभाली.

कारसेवा के दौरान जब कारसेवक विवादित ढांचे के ऊपर चढ़ गए और हथौड़ा चलाने लगे तो दिल्ली से लेकर अयोध्या तक हड़कंप मच गया. तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहा राव को भी इसकी जानकारी हुई. प्रधानमंत्री कार्यालय से कल्याणसिंह सरकार को जरूरी आदेश दिए जाने लगे. लेकिन कल्याण सिंह ने लिखित तौर पर पुलिस महानिदेशक को आदेश दिया कि कारसेवकों पर किसी भी सूरत में फायरिंग न की जाएगी. केंद्र सरकार दिल्ली से केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को बल प्रयोग का आदेश दे रही थी, लेकिन लाखों के हुजूम के आगे सब बेबस नजर आए. कहा जाता है कि तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री शंकरराव चह्वाण और सीएम कल्याण सिंह के बीच इसको लेकर तीखी बहस भी हुई. लेकिन सीएम सिंह ने स्पष्ट कर दिया था कि गोली चलाने से कारसेवक भड़क सकते हैं. दंगे जैसे हालात पैदा हो सकते हैं.

कल्याण सिंह की सरकार के दौरान कथित बाबरी मस्जिद से सटी 2.77 एकड़ भूमि का यूपी सरकार ने अधिग्रहण किया. यहीं पर हिन्दुओं को धार्मिक पूजा अनुष्ठान करने की मंजूरी दी गई.कल्याण सिंह ने खुद मुरली मनोहर जोशी के साथ विवादित स्थान पर जाकर मंदिर वहीं बनाएंगे का नारा दिया था. विवादित ढांचा परिसर में हिंदू मंदिर के मुख्य पुजारी लाल दास को भी कल्याण सिंह सरकार ने हटा दिया था, जो बाबरी मस्जिद की जगह मंदिर के लिए आंदोलन का विरोध कर रहे थे. 

दिसंबर 1992 में लाखों की संख्या में कारसेवक अयोध्या पहुंचे थे. कल्याण सिंह सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया था कि विवादित ढांचे को कोई नुकसान नहीं होगा. छह दिसंबर 1992 को बीजेपी, विहिप, शिवसेना और अन्य हिन्दू संगठनों को मिलाकर करीब डेढ़ लाख का हुजूम वहां पहुंचा. लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती भी वहीं थी. पुलिस का बैरिकेड तोड़कर कारसेवकों का हुजूम अंदर घुस गया और विवादित ढांचे को गिरा दिया. इसके कुछ घंटों बाद ही कल्याण सिंह ने अपना इस्तीफा दे दिया था.

रामलला के दर्शन की अंतिम इच्छा
अयोध्या में कारसेवा के दौरान कल्याण सिंह ने कार सेवकों पर गोली चलवाने का आदेश देने से इनकार कर दिया था. विवादित ढांचा गिराए जाने की जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया था. कल्याण सिंह की ख्वाहिश थी कि अयोध्या के निर्माणाधीन मंदिर में विराजमान रामलला के दर्शन उन्हें हो सकें. मगर 89 साल की उम्र में 21 अगस्त 2021 को लंबी बीमारी के बाद उनका लखनऊ में उनका निधन हो गया.

अलीगढ़ जिले की अतरौली तहसील के गांव मढ़ौली गांव में कल्याण सिंह जन्मे थे. किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले कल्याण सिंह प्रदेश के बड़े पिछड़े नेता बनकर उभरे. यूपी के एक औऱ मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की तरह कल्याण सिंह भी राजनीति में आने से पहले अध्यापक थे.अतरौली इंटर कॉलेज में शिक्षक रहे कल्याण सिंह ने 1967 में अतरौली से विधायकी का चुनाव जीता और 1980 तक कभी नहीं हारे. 1997 में इमरजेंसी के दौरान 21 माह तक वो अलीगढ़ और वाराणसी की जेल में बंद रहे.

आरएसएस की शाखाओं से शुरू हुआ उनका सफर सीएम पद तक पहुंचा. जनसंघ, जनता पार्टी से लेकर भाजपा की 1980 में स्थापना से वो पार्टी के साथ थे. पिछड़ों के बड़े नेता के तौर पर वो 
यूपी में भाजपा संगठन महामंत्री और प्रदेश अध्यक्ष तक पहुंचे. अटल आडवाणी और जोशी के युग में भी कल्याण सिंह हिन्दुत्व का प्रखर चेहरा बनकर उभरे. 

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