trendingNow/india/up-uttarakhand/uputtarakhand02369817
Home >>आजमगढ़

देश के स्वतंत्र होने से 5 साल पहले ही आजाद हो गया था यूपी का बलिया, जानें भारत छोड़ो आंदोलन की रोचक कहानी

Independence Day Special: 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ था लेकिन बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि देश की आजादी से पांच साल पहले ही उत्तर प्रदेश के बलिया ने खुद को अंग्रेजी हुकूमत से आजाद कर लिया था. भारत ही नहीं ब्रिटेन में भी इतिहास के पन्नों में दर्ज यह वाकया अगस्त 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का है. 

Advertisement
देश के स्वतंत्र होने से 5 साल पहले ही आजाद हो गया था यूपी का बलिया, जानें भारत छोड़ो आंदोलन की रोचक कहानी
Pradeep Kumar Raghav |Updated: Aug 05, 2024, 08:39 PM IST
Share

Ballia Quit India Movement: ये तो सभी जानते हैं कि 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ था लेकिन बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि देश की आजादी से पांच साल पहले ही उत्तर प्रदेश के बलिया ने खुद को अंग्रेजी हुकूमत से आजाद कर लिया था. ऐसा भले ही चार दिन के लिए हुआ था लेकिन ब्रिटिश कलेक्टर ने आधिकारिक तौर पर बलिया का प्रशासन स्वतंत्रता सेनानी चित्तू पांडे को सुपूर्द किया था.  

भारत छोड़ो आंदोलन  
नौ अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान से अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन छेड़ा और 'करो और मरो' को नारा दिया तो अंग्रेजों ने इस अंदोलन को कुचलने के लिए कांग्रेस की पूरी कार्यसमिती को गिरफ्तार कर लिया. अंग्रेजों की इस दमनकारी कार्रवाई से आंदोलन की आग ऐसी भड़की कि मुंबई से उत्तर प्रदेश के इलाहबाद और यहां तक कि बलिया तक भी जा पहुंची. थाने जलाए जाने लगे, सरकारी दफ्तर लूटे गए और रेल की पटरियां उखाड़ दी गईं. 

बगैर नेतृत्व की भीड़ भयानक थी
अंग्रेजी सरकार ने महात्मा गांधी द्वारा 'भारत छोड़ो आंदोलन' के आह्वान के बाद ही सभी बडे़ नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डालना शुरु कर दिया. बची थी तो बस भीड़ जिसका नेतृत्व करने वाले जेल में डाले जा चुके थे. ऐसे में भीड़ को अपने नेताओं की अनुउपस्थिति में जो ठीक लगा वो करने निकल पड़ी.  9 अगस्त से शुरू हुआ आंदोलन बलिया में 14 अगस्त तक अपने चरम पर पहुंचा चुका था. बेल्थरारोड इलाके में मालगाड़ी को लूटकर रेल की पटरियां उखाड़ दी गईं जिससे बलिया रेल मार्ग से पूरी तरह कट गया. 

बेबस नजर आई अंग्रेजी सरकार 
ऐसा नहीं है कि जनाक्रोश को कुचलने के लिए अंग्रेजी सरकार कुछ नहीं कर रही थी. आंदोलन से जुड़े लोग न केवल हिरासत में लिये जा रहे थे बल्कि आंदोलनकारियों की उग्र भीड़ पर फायरिंग भी की गई, जिसमें देश के दर्जनों सपूत शहीद हुए. लेकिन भीड़ भयानक रूप ले चुकी थी.  लाठी, भाले, बल्लम, गड़ासा, बर्छी, खुखरी, तलवार यहां तक कि ईंट और पत्थर तक लोगों के हाथ में थे. जिले के कोने-कोने से हजारों आंदोलनकारी अपने-अपने हथियारों से लैस होकर जिला कारागार पर डेरा डालने पहुंच गए. 

अंग्रेजी कलेक्टर को सौंपनी पड़ी सत्ता
लगातार बढ़ रही आंदोलनकारियों को भीड़ को देख अंग्रेजी कलेक्टर और पुलिस कप्तान जेल के अंदर घुस गए और चित्तू पांडे और दूसरे क्रांतिकारी नेताओं से बात की. चित्तू पांडे समेत दूसरे नेताओं को ना केवल रिहा किया गया बल्कि टाउन हाल क्रांति मैदान में उनका भाषण हुआ. आंदोलनकारियों का उग्र रूप देख जिले के 10 से ज्यादा थानों की पुलिस निष्क्रिय दिखाई दी. 20 अगस्त 1942 तक अंग्रेजी हुकूमत बलिया में इस कदर पंगु हो चुकी थी कि अंग्रेजी कलेक्टर ने बलिया का प्रशासन चित्तू पांडे को हस्तांरित किया और अपने रास्ते चलते बने. 

बलिया में स्वराज आया
इसके बाद बलिया में करिश्माई नेता चित्तू पांडे के नेतृत्व में स्वराज का गठन हुआ. स्वराज सरकार के समर्थन में जनता ने भी हजारों रुपये का चंदा इकट्ठा कर दिया. स्वराज के पहले कलेक्टर चित्तू पांडे बने और पहले पुलिस कप्तान पंडित महानंद मिश्रा घोषित किये गए. इस तरह बलिया ने भारत की आजादी से 5 बरस पहले ही खुद को आजाद कर लिया. बलिया का यह प्रकरण हिन्दुस्तान के इतिहास में ही नहीं बल्कि ब्रिटिश इतिहास में भी दर्ज है.

Read More
{}{}