हेमकांत नौटियाल/उत्तरकाशी: चिपको आंदोलन की अलख जगाने वाली गौरा देवी पर्यावरण संरक्षण का दूसरा नाम है. इस आंदोलन में दुनिया ने जाना की कैसे उत्तराखंड की महिलाएं पर्यावरण के साथ अपना गहरा संबंध बनाए हुए हैं. उत्तराखंड के लिए इसी लिहाज से यह साल बेहद खास है. यह साल गौरा देवी जन्म शताब्दी के रूप में मनाया जा रहा है. उत्तराखंड वन विभाग ने भी पर्यावरण संरक्षण से जुड़े इस नाम को वन क्षेत्र में संजोकर रखने के लिए विशेष योजना तैयार की है. पूरे प्रदेश में 100 गोरा देवी वन वाटिका बनाई जाएगी. उत्तरकाशी से शुरुआत हो चुकी है.
गौरादेवी जन्म शताब्दी वर्ष
उत्तरकाशी जनपद के अपर यमुना वन प्रभाग के रवांई रेंज में ग्रीन मैन ऑफ द इंडिया विजयपाल बघेल , यमुनोत्री विधायक सहित वन विभाग के अधिकारी कर्मचारियों डिवीजन में 7 हजार पौधों का रोपण किया. ग्रीन मैन ऑफ इंडिया विजयपाल बघेल ने कहा कि इस साल गौरादेवी जन्म शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है. राज्य में लगभग 100 स्थलों पर गौरादेवी जन्म शताब्दी वन बाटिका बनाई जानी है जिसकी शुरुआत बड़कोट के यमुना वन प्रभाग राड़ी टॉप वन बाटिका बनाकर की गई.
गोरा देवी वन वाटिका में देवदार,बांज,रीठा,अंगा, अमरूद,दाणीम,नाशपती, पुलम का रोपण किया गया. ग्रीन मैन ऑफ द इंडिया के नाम से विख्यात पर्यावरणविद विजयपाल बघेल ने कहा कि हरेला पर्व की मानें तो यह केवल प्रकृति प्रेम ही नहीं शरीर, मन और परिवेश के संतुलन का भी असीम अनुभव कराने वाला पर्व है. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के हरेला वैसे उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान और पर्यावरण चेतना का प्रतीक पर्व है. अपर यमुना वन प्रभाग के डी एफओ रविन्द्र पुंडीर ने कहा कि कि रवांई रेंज के अंतर्गत राड़ी में गौरादेवी जन्म शताब्दी पर प्रदेश की पहली बांज वन बाटिका बनाई गई जिसमें 5500 पौधें बांज के लगाये गये है. उन्होंने कहा कि सभी को एक पौधा धरती माँ के नाम का जरूर लगाना चाहिए.