Uttarkashi: उत्तरकाशी की धराली घाटी में आई विनाशकारी आपदा ने पूरे गांव का नामोनिशान मिटा दिया है. मलबे के ढेर, टूटी सड़कें और बह चुके पुल इस त्रासदी की भयावह तस्वीर पेश कर रहे हैं. इसी मलबे में कहीं अपनी पत्नी और बेटे को खोज रहे हैं 50 वर्षीय विमल कुमार सिंह, जिनकी आखिरी बातचीत 5 अगस्त को पत्नी पूनम और 22 वर्षीय बेटे अनीस से हुई थी. उस कॉल में घबराई हुई आवाज आई—“पहाड़ टूट गया है, धरती हिल रही है… हम जंगल की ओर भाग रहे हैं.” इसके बाद से मोबाइल खामोश है और उनका कोई पता नहीं है.
विमल, जो आपदा के समय उत्तरकाशी गए हुए थे, अब मातली स्थित ITBP कैंप में रोजाना रेस्क्यू लिस्ट खंगालते हैं. उनकी आंखें हर नाम के साथ उम्मीद और डर के बीच झूलती रहती हैं. वो कहते हैं, “बस मुझे धराली पहुंचा दो, मैं अपने हाथों से खुदाई कर परिवार को निकाल लाऊंगा.”
धराली तक राहत पहुंचाना चुनौती
धराली तक राहत पहुंचाना इस समय सबसे बड़ी चुनौती है. उत्तरकाशी मुख्यालय से गांव की दूरी 84 किमी है, लेकिन अब तक केवल 50 किमी तक ही रास्ता साफ हो सका है. गंगनानी का पुल पूरी तरह बह चुका है और BRO 90 फीट का बैली ब्रिज बना रहा है. अधिकारियों के मुताबिक, इसे जोड़ने में कम से कम एक दिन लगेगा, लेकिन पुल के आगे भी डबरानी में सड़क पूरी तरह ध्वस्त है, जिससे धराली तक पूर्ण कनेक्टिविटी बहाल होने में तीन से चार दिन और लग सकते हैं.
मलबे में जिंदगी की उम्मीदें कम
मलबा हटाने के लिए भारी मशीनों की जरूरत है, जो सड़क न खुलने के कारण अभी वहां नहीं पहुंच पाई हैं, NDRF, SDRF, ITBP, सेना और पुलिस की टीमें लगातार राहत कार्य में जुटी हैं. NDRF के नॉर्थ इंडिया DIG गंभीर कुमार का कहना है कि मौजूदा हालात में मलबे में दबे लोगों के जीवित मिलने की संभावना बेहद कम रह गई है.
धराली अब धराली नहीं रहा
रिटायर्ड कर्नल राजीव दुआ, जो इस समय रेस्क्यू हेलिकॉप्टर उड़ा रहे हैं, बताते हैं, “धराली अब धराली नहीं रहा. जहां कभी घर और दुकानें थीं, वहां अब केवल मलबा है. मैं पिछले 17 साल से इस इलाके में उड़ान भर रहा हूं, पर इतनी तबाही पहले कभी नहीं देखी.”
राहत में रोड़ा बना मौसम
मौसम भी राहत कार्य में रोड़ा बना हुआ है. 8 अगस्त को तेज बारिश के कारण हेलिकॉप्टर मिशन बीच में ही रुक गए. जैसे ही मौसम खुलता है, रेस्क्यू टीमें फिर उड़ान भरती हैं, ताकि फंसे लोगों और जरूरी सामान को धराली तक पहुंचाया जा सके.
पांच दिन गुजरने के बाद भी विमल को न पड़ोसियों से कोई खबर मिली, न ही फोन से कोई संपर्क. उनकी नजरें हर हेलिकॉप्टर पर टिक जाती हैं, मानो उसमें उनका परिवार आ रहा हो. पर हर बार लौटती सिर्फ निराशा है. अब वो सिर्फ एक चमत्कार की आस लगाए बैठे हैं—कि किसी तरह पत्नी और बेटा सुरक्षित मिल जाएं.