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दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे बनकर तैयार! एक घर की वजह से 27 साल पहले की कहानी बनी स्पीड ब्रेकर

Delhi-Dehradun Expressway Latest Update: वैसे तो दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस वे का काम लगभग पूरा हो चुका है, लेकिन अभी भी दिल्ली गाजियाबाद बॉर्डर के पास एक 1600 वर्ग मीटर का प्लॉट इस प्रोजेक्ट में बड़ा रोड़ा है. 

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 Delhi-Dehradun Expressway
Delhi-Dehradun Expressway
Preeti Chauhan|Updated: Mar 30, 2025, 04:16 PM IST
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Delhi-Dehradun Expressway Latest Update: दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे का  लगभग तैयार है, लेकिन गाजियाबाद बॉर्डर के पास 1600 वर्ग मीटर का एक प्लॉट इस बहुप्रतीक्षित परियोजना के लिए रोड़ा बना हुआ है. यह मामला नया नहीं बल्कि 1998 से चला आ रहा है. जमीन अधिग्रहण की इस कानूनी लड़ाई ने न केवल एक्सप्रेसवे की गति को धीमा कर दिया है, बल्कि एनएचएआई और हाउसिंग बोर्ड के लिए भी बड़ी चुनौती पेश कर दी है. अब यह केस सुप्रीम कोर्ट से लौटकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच पहुंच गया है, जहां 16 अप्रैल को इसकी सुनवाई होनी है. 

 1998 में कहानी की शुरुआत
दरअसल, इस कहानी की शुरूआत साल 1998 में हुई थी. उस समय उत्तर प्रदेश हाउसिंग बोर्ड ने मंडोला हाउसिंग स्कीम लांच किया था.90 के दशक में जब वीरसेन सरोहा और उनका परिवार मंडोला में 1600 वर्ग मीटर के प्लॉट पर बने एक साधारण से बने घर में रहता था, उस समय जमीन की स्थिति अलग थी.  यह ग्रामीण इलाका था, जहां घर और खेत फैले हुए थे.  1998 में यूपी हाउसिंग बोर्ड ने मंडोला हाउसिंग स्कीम के लिए दिल्ली-गाजियाबाद सीमा के पास के 6 गांवों से 2614 एकड़ जमीन अधिग्रहित करने की अधिसूचना जारी की. कई  परिवारों को अपनी जमीन देने के लिए मना लिया गया था. लेकिन, वीरसेन ने अपनी जमीन देने से मना कर दिया था. 

हाइकोर्ट की लखनऊ बेंच में है मामला
उस समय हाउसिंग बोर्ड की ओर से जो मुआवजा दिया गया, उसे कम बताते हुए 1600 वर्ग मीटर के इस प्लॉट के मालिक वीरसेन ने लेने से मना कर दिया. वे  इलाहाबाद हाईकोर्ट चले गए. जिसके बाद हाई कोर्ट ने उनकी जमीन के अधिग्रहण पर रोक लगा दी. पहले इस प्लॉट को हाउसिंग बोर्ड ने अधिग्रहण का प्रयास किया था, लेकिन मामला कोर्ट में चला गया तो हाउसिंग बोर्ड ने इसे एनएचएआई को सौंप दिया. 

वीरसेन की मौत, लेकिन मामला जारी
अब इस प्लॉट का मामला सुप्रीम कोर्ट से लौटकर वापस हाईकोर्ट पहुंच गया है. बाद में वीरसेन की तो मौत हो गई, लेकिन यह मुकदमा उनके वंशजों ने जारी रखा है. अब वीरसेन के पोते इस केस को लड़ रहे हैं.  हाई कोर्ट में अब तक मामला लंबित है. इस कारण एक्सप्रेसवे को पूरा नहीं माना जा सकता है. 16 अप्रैल को इस पर सुनवाई होने वाली है, जिससे यह तय होगा कि एक्सप्रेसवे के इस महत्वपूर्ण हिस्से का निर्माण पूरा होगा या नहीं.

16 अप्रैल को सुनवाई
यह विवाद 1998 से चला आ रहा है, जब उत्तर प्रदेश हाउसिंग बोर्ड ने भूमि अधिग्रहण किया था. जमीन मालिक मुआवजे को कम बताते हुए अदालत पहुंचे हैं. फिलहाल मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में है. जिसकी सुनवाई 16 अप्रैल को होनी है.  मकान मालिक ने साल 2007 में इस घर को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट का रुख किया था. 

अक्षरधाम से खेकड़ा तक पूरा हो गया प्रोजेक्ट
एनएचएआई के अधिकारियों के मुताबिक अक्षरधाम-ईपीई सेक्शन पर यह प्लॉट है और इस प्लॉट का विवाद निपटने के बाद दिल्ली-बागपत ड्राइव महज 30 मिनट का रह जाएगा. यह करीब 20 किलोमीटर एलिवेटेड सेक्शन है. अधिकारियों के मुताबिक अक्षरधाम और ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे (EPE) के बीच इस एक्सप्रेसवे का निर्माण दो खंडों में किया जा रहा है. पहला खंड अक्षरधाम से लोनी में यूपी सीमा तक 14.7 किलोमीटर है. जबकि लोनी से ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे में खेकड़ा तक 16 किलोमीटर का हिस्सा है. इसमें वीरसेन के 1600 वर्ग मीटर के घर को छोड़ दिया जाए तो इस दोनों खंड का काम पूरा हो चुका है.

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