उत्तर प्रदेश के महाराजगंज में एक अनोखा गांव है. जहां पर हमेशा ताजिया बनाने का काम किया जाता है. ये वर्षो से चली आ रही है. सबसे बड़ी बता यह है कि ताजिया बनाने के लिए बाहर से भी कारीगर आते है. आइए जानते हैं इस अनोखे गांव के बारे में....
मोहर्रम का समय इस गांव में एक बड़े उत्सव का रूप ले लेता है. ताजिया के जुलूस, सजावट और लोगों की भागीदारी से पूरा माहौल आध्यात्मिक और भावनात्मक हो जाता है. स्थानीय लोग पूरे उत्साह और श्रद्धा से इस पर्व में भाग लेते हैं.
महराजगंज जिले के सिसवा क्षेत्र स्थित भारतखंड पकड़ी गांव में ताजिया बनाना सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि एक साल भर चलने वाली धार्मिक परंपरा है. यहां ताजिया निर्माण की परंपरा वर्षो पुरानी है और यह गांव अब ताजिया कला के लिए पूरे जिले में जाना जाता है.
इस गांव के कारीगर ताजिया बनाने में बांस, कागज और रंगीन पेपर्स का बारीकी से उपयोग करते हैं. यह एक बेहद नाजुक और कलात्मक प्रक्रिया होती है, जिसमें महीनों की मेहनत लगती है. यहां के ताजिए अपनी उत्कृष्ट डिज़ाइन, सजावट और सजीव रंगों की वजह से न सिर्फ जिले में बल्कि आसपास के क्षेत्रों में भी प्रसिद्ध हैं.
भारतखंड पकड़ी गांव में ताजिया बनाने का काम पूरे साल चलता है. मोहर्रम के बाद केवल एक महीने का विश्राम होता है, बाकी 11 महीने लगातार निर्माण चलता रहता है.
इस वर्ष गांव में 50X60 के आकार का और 35 फीट ऊंचा विशाल ताजिया तैयार किया गया है, जो लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. दूर-दूर से लोग इसे देखने आ रहे हैं और इसकी सुंदरता की सराहना कर रहे हैं. इसका आकार और डिजाइन इतना भव्य है कि यह ताजिया इलाके में चर्चा का विषय बना हुआ है.
ताजिया बनाने वाले कारीगर केवल स्थानीय नहीं होते, बल्कि अलग-अलग जिलों से आते हैं. उनके रहने, खाने और जरूरत की सभी चीजों की व्यवस्था गांव के लोग या आयोजन समिति द्वारा की जाती है. पूरे साल चलने वाले इस कार्य में कारीगरों के लिए उचित सुविधाएं दिया जाता है.
भारतखंड पकड़ी का ताजिया न सिर्फ धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह गांव की पहचान और रोजगार का भी मुख्य स्रोत बन गया है. कारीगरों को इससे सालभर का काम मिलता है, जिससे उनकी आय भी सुनिश्चित होती है.
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