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Uttarakhand Forest Fire : उत्‍तराखंड के जंगलों में नहीं लगेगी आग!, धामी सरकार का मास्‍टर प्‍लान तैयार

Uttarakhand Fire News: उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग बुझने का नाम नहीं ले रही है. इसी बीच प्रदेश की धामी सरकार जंगलों को आग से बचाने के लिए एक मास्टरप्लान लेकर आई है. पढ़िए धामी सरकार के इस प्लान के बारे में...

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Uttarakhand News
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Rahul Mishra|Updated: May 11, 2024, 04:34 PM IST
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Uttarakhand News: देवभूमि को जंगलों की आग से बचाने के लिए धामी सरकार एक बड़ा अहम और ठोस प्लान लेकर आई है. इस प्लान से अब जंगलों में आग नहीं लगेगी इसके बजाए जंगलों की आग लगने के पीछे सबसे बड़ी वजह से अब यहां के लोग कमाई कर सकते हैं. अब प्रदेश की धामी सरकार ने चीड़ के पेड़ों की पत्तियों जिसे पिरूल कहा जाता है. इसको लेकर एक नया प्लान बनाया है. इस प्लान मास्टर प्लान के बाद पिरूल गेहूं और धान से भी महंगा बिकेगा.

15% है चीड़ का जंगल
उत्तराखंड में वन विभाग के नाम जो जमीन दर्ज है. उसमें अगर पेड़ की प्रजातियों के क्षेत्र के वर्गीकरण पर हम देखें तो सबसे ज्यादा वन विभाग के एरिया में चीड़ के पेड़ ही मौजूद है. वन विभाग के पास टोटल वन क्षेत्र प्रजातिवार आंकड़े पर नजर दौडाएं तो 25 लाख 86 हजार 318 हेक्टेयर जमीन में से 3 लाख 94 हजार 383 हेक्टर जमीन पर चीड़ का जंगल है. यानी की वन विभाग की कुल वनाच्छादित जमीन पर 15% क्षेत्र पर चीड़ का जंगल है. यही जंगल उत्तराखंड के लिए आग लगने का सबसे बड़ा खतरा भी हर साल पैदा करता है.
 
95% घटनाओ में खुद लगाते हैं आग
वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में 95% जो वनाग्नि की घटनाएं घटित होती हैं. वह लोगों द्वारा ही आग लगाने से सामने आती है. एक तो चीड़ का जंगल और ऊपर से खुद ही उत्तराखंड में लोग आग लगाते हैं. चीड़ के जंगल में आग जिस तरीके से फैलती है. वह केवल उत्तराखंड के लिए नहीं बल्कि अन्य राज्यों के लिए भी प्रदूषण को लेकर एक बड़ा सबक बनता जा रहा है. इसी को देखते हुए प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के द्वारा पिरूल खरीदने को लेकर बड़ा फैसला लिया गया है. 

पिछली सरकार के मुकाबले बढ़ाए दाम
हालांकि त्रिवेंद्र रावत सरकार में भी पिरूल खरीदने को लेकर एक नीति बनी थी. जिसके तहत 3 रुपये किलो के हिसाब से पिरूल खरीदने का सरकार ने निर्णय लिया था. लेकिन यह योजना पूरी तरीके से फेल साबित हो गई थी. यही वजह है कि अब धामी सरकार ने पिरूल के दाम इतने बढ़ा दिए हैं, की यह अब एक आय का जरिया भी पहाड़ के लोगों के लिए बन सकता है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने खुद रुद्रप्रयाग पहुंचकर पिरूल इकट्ठा कर 50 किलो तक खरीदनी की मुहिम को शुरू किया है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सेक्रेटरी पराग मधुकर धकाते का कहना है कि आग लगने से जंगलो की रक्षा भी की जाए और आग लगने से प्रदूषण भी न फैले इसलिए इस दिशा में फैसला लिया गया है.

सीधे बैंक खाते में पहुंचेगा पैसा
पिरूल खरीदने को लेकर धामी सरकार ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नोडल एजेंसी बनाया है. पहले वन-विभाग की रेंज और तहसील स्तर पर इसके लिए कलेक्शन सेंटर खोले जा रहे हैं. जहां से प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को पिरूल बेचा जाएगा. इसके बाद यह पिरूल एनटीपीसी व अन्य उद्योगों को इसका इस्तेमाल कर बायोफ्यूल बनाने के लिए बेचा जाएगा. जो भी लोग पिरूल इकट्ठा कर बेचेंगे पैसे उनके बैंक खाते में सीधा पहुंचेगा. इसको लेकर आधार कार्ड, मोबाइल फोन नंबर और बैंक अकाउंट की डिटेल के साथ पैन कार्ड की डिटेल फिरुल इकट्ठा कर बेचने वाले लोगों से ली जाएगी.

5000 रूपए प्रति कुंतल बिकेगा
उत्तराखंड में पिरुल 5000 रूपए प्रति कुंतल बिकेगा. जो किसानों की उगने वाली फसल से भी महंगा होने वाला है. हालांकि, पिरुल बेचे जाने को लेकर पहले भी एक नीति त्रिवेंद्र सरकार की समय सामने आई थी. जो कि फेल साबित हुई थी. ऐसे में पहाड़ के जंगलों को बचाने को लेकर धामी सरकार ने पिरुल खरीदने को लेकर जो फैसला लिया है, वह फेल न हो ऐसी उम्मीद की जा रही है. ताकि पहाड़ के जंगल हर साल धधके ना.

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