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charbagh railway station: चारबाग रेलवे स्टेशन, जहां गांधी से पहली बार मिले थे नेहरू, अवध नवाब के चार बगीचों पर 110 साल पहले बनी थी इमारत

Charbagh Railway Station Facts:   चारबाग स्टेशन की गिनती यूपी ही नहीं बल्कि भारत के बड़े और खूबसूरत स्टेशनों में होती है. चारबाग 110 के स्वर्णिम इतिहास को समेटे है. आज इससे जुड़े कुछ दिलचस्प और रोचक तथ्यों के बारे में जानेंगे. 

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Charbagh Railway Station History
Charbagh Railway Station History
Shailjakant Mishra|Updated: Oct 02, 2024, 05:42 PM IST
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Charbagh Railway Station History: लखनऊ के चारबाग स्टेशन की गिनती यूपी ही नहीं बल्कि भारत के बड़े और खूबसूरत स्टेशनों में होती है. इन दिनों चारबाग स्टेशन को सजाने-संवारने का काम चल रहा है. स्टेशन को एयरपोर्ट की तरह हाई-टेक सुविधाओं से लैस करने की तैयारी है. चारबाग 110 के स्वर्णिम इतिहास को समेटे है. आज इससे जुड़े कुछ दिलचस्प और रोचक तथ्यों के बारे में जानेंगे. 

1914 में रखी गई स्टेशन की नींव
चारबाग रेलवे स्टेशन की नींव अब से 110 साल पहले 21 मार्च 1914 में रखी गई थी, जिसका श्रेय जॉर्ज हर्बर्ट को जाता है. स्टेशन को बनने में 9 साल का लंबा समय लगा. 1923 में यह बनकर तैयार हुआ. जिसको तैयार करने में करीब 70 लाख रुपये की मोटी रकम खर्च हुई थी. स्टेशन का नक्शा जैकब हॉर्निमैन ने तैयार किया था. स्टेशन की बिल्डिंग में छतरी जैसे छोटे गुंबद हैं जो शतरंज की बिसात जैसे नजर आते हैं. इसमें मुगल, अवधी और राजपूत आर्किटेक्चर की झलक देखने को मिलती है. 

चारबाग स्टेशन का इतिहास
चारबाग स्टेशन का इतिहास प्राचीन है. ये आसफ उद दौला का शहर के पसंदीदा बगीचों में से एक था. चार नहरों के चारों कोनों पर  चार बगीचे बनाए गए थे, जिनको फारसी भाषा में चाहर बाग कहा जाता था, बाद में यही चारबाग हो गया.

चारबाग स्टेशन की खासियत
चारबाग स्टेशन में कई ऐसी खासियत हैं, जिनकी चर्चा आज भी होती है. इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि स्टेशन से धड़धड़ाते हुए सैकड़ों ट्रेनें रोजाना गुजरती हैं लेकिन इनकी आवाज या यात्रियों का शोरगुल स्टेशन के बाहर नहीं जाता है.

गांधी जी से पहली बार यहीं मिले नेहरू
स्टेशन से जुड़ा एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की  राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से पहली बार मुलाकात चारबाग रेलवे स्टेशन पर ही हुई थी. 26 दिसंबर 1916 को बापू कांग्रेस के अधिवेशन में शामिल होने पहली बार लखनऊ आए तो पंडित नेहरू से उनकी यहीं मुलाकात हुई थी. जिसका जिक्र नेहरू ने अपनी आत्मकथा में भी किया है. 

ट्रैक के बीच 900 साल पुरानी मजार
चारबाग रेलवे स्टेशन पर  खम्मनपीर बाबा की मजार है, जो करीब 900 साल पुरानी बताई जाती है. मजार को अंग्रेज कहीं और शिफ्ट करना चाहते थे लेकिन मुस्लिम और हिंदुओं की आस्था के चलते इससे छेड़छाड़ नहीं की गई. इससे कुछ दूर हटकर दोनों तरफ रेलवे का ट्रैक बिछाया गया था.

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