यूपी के हमीरपुर जिले में अंग्रेजों के जमाने से घूंघट की आड़ में भी महिलाओं के दंगल की सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा आज भी बरकरार है, जहां महिलाएं अपने शौर्य और शक्ति का प्रदर्शन करती हैं.
इस दंगल में पुरुषों का प्रवेश निषेध होता है. इस दंगल में पहलवान,रेफरी और दर्शक सभी महिलाएं ही होती हैं. जहाँ आखाड़े में उतर कर अपने प्रतिद्वंद्वी पहलवान को चुनौती देते हुए महिलाएं अपना दमखम और जौहर दिखाती हैं.
हमीरपुर जिले के लोदीपुर निवादा गांव में कजली विसर्जन के अगले दिन घूंघट की आड़ में दंगल लड़ने की सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा आज भी बरकरार है.
जहां की महिलाएं पुरुषों की भांति आखाड़े में उतर कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करती हैं और लोगों को यह संदेश देती हैं कि वह किसी से कम नहीं हैं. महिलाएं भी हर क्षेत्र में बेहतर काम कर सकती हैं और यह महिलाओं ने साबित भी किया है. हालांकि इस दंगल में पुरुषों की एंट्री बैन होती है, वह यहां पर दर्शक भी नहीं बन सकते.
दंगल में साड़ी पहने एक दूसरे को ललकारती और अपने अपने दांव पेच से एक दूसरे को पटखनी दे रही कोई कुशल महिला पहलवान नहीं बल्कि इसी गांव की घरेलू काम काज में व्यस्त रहने वाली महिलाएं हैं, जो कजली उत्सव के अवसर पर प्रत्येक वर्ष दंगल में उतरती हैं.
गाँव के पुराने बाजार में आयोजित किए गए महिलाओं के दंगल में अखाड़े में उतर कर महिलाओं ने अपने दाव पेच दिखाए. इस दंगल में 22 जोड़ी कुश्ती संपन्न हुई. जिन्हें उचित इनाम भी दिया गया. इस दंगल में पुरुषों की इंट्री बैन होने के बाद भी पुरुषों द्वारा इस दंगल को सफल बनाने के लिए आर्थिक सहयोग किया जाता है.