Mahakumbh 2025: प्रयागराज महाकुंभ मेला महाशिवरात्रि के साथ कल समापन की ओर बढ़ेगा, लेकिन इस बीच अखाड़ा परिषद ने नई मांग सरकारों के समक्ष रख दी है. दरअसल, उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने अखाड़ा परिषद के साधु संतों की कई मांगों को माना था. अब ऐसी ही डिमांड साधु संतों ने महाराष्ट्र, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के सामने रख दी हैं. इसमें गुलामी के दौर में मिले दो प्रमुख शब्दों, पेशवाई और शाही स्नान के नाम आगामी कुंभ में भी बदलने की मांग है. महाकुंभ में इन्हें छावनी प्रवेश और अमृत स्नान के तौर पर जाना गया था.
अखाड़ों की नई मांग
महाकुंभ के दौरान नाम परिवर्तन के इस निर्णय का व्यापक स्वागत हुआ. अब अखाड़े उज्जैन, हरिद्वार और नासिक में होने वाले आगामी कुंभ और अर्धकुंभ मेलों में भी यही बदलाव चाहते हैं. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाने का निर्णय लिया है और वह तीनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों से मुलाकात कर शाही स्नान और पेशवाई शब्द को अभिलेखों से हटाने की मांग करेगी.
सनातन संस्कृति का गौरव बढ़ाने की पहल
अखाड़ों का मानना है कि पेशवाई फारसी और शाही उर्दू शब्द हैं, जो सनातन परंपराओं के अनुरूप नहीं हैं. इसलिए इन्हें संस्कृत या हिंदी में बदलना जरूरी था. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मांग को मानते हुए पेशवाई की जगह छावनी प्रवेश और शाही स्नान की जगह अमृत स्नान के नाम को मंजूरी दी, जिससे अखाड़ों की परंपराओं का सम्मान बढ़ा.
अखाड़ा परिषद की नई मांग
अखाड़ों के प्रमुखों का कहना है कि जब अखाड़ों की परंपराएं हर कुंभ और अर्धकुंभ में समान होती हैं, तो नामों में भी एकरूपता होनी चाहिए. 2027 में नासिक कुंभ, 2027 में हरिद्वार अर्धकुंभ और 2028 में उज्जैन सिंहस्थ कुंभ में भी "छावनी प्रवेश" और "अमृत स्नान" नामों को अपनाने की मांग रखी जाएगी.
राज्य सरकारों से सकारात्मक पहल की उम्मीद
अब अखाड़ा परिषद का प्रतिनिधिमंडल मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों से मिलकर अभिलेखों में नाम परिवर्तन का अनुरोध करेगा. परिषद को उम्मीद है कि योगी सरकार की तरह इन राज्यों की सरकारें भी सनातन परंपराओं का सम्मान करते हुए इस मांग को स्वीकार करेंगी.
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