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550 साल बाद दिगंबर अनि अखाड़े में हुए चुनाव, पहली बार चुनी नई कार्यकारिणी; पदाधिकारियों का कार्यकाल तय

Digambar Ani Akhada Elections: महाकुंभ के दौरान वैष्णवों के सबसे बड़े दिगंबर अनि अखाड़े ने लगभग 550 साल पुरानी परंपरा को छोड़ते हुए लोकतांत्रिक प्रणाली की ओर कदम बढ़ाया है. अब अखाड़े में सभी पदों के लिए चुनाव होंगे और कार्यकाल भी 12 साल के लिए निर्धारित कर दिया गया है.

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550 साल बाद दिगंबर अनि अखाड़े में हुए चुनाव, पहली बार चुनी नई कार्यकारिणी; पदाधिकारियों का कार्यकाल तय
Dipesh Thakur|Updated: Feb 06, 2025, 11:30 AM IST
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Digambar Ani Akhada: महाकुंभ के दौरान वैष्णवों के सबसे बड़े दिगंबर अनि अखाड़े ने करीब 550 साल पुरानी परंपरा को छोड़कर लोकतांत्रिक व्यवस्था की ओर कदम बढ़ाया है. अनि अखाड़े में भी अब न सिर्फ सभी पदों के लिए चुनाव होगा बल्कि उनका कार्यकाल भी 12 साल के लिए तय कर दिया. अब तक अखाड़े के पदाधिकारियों का कोई कार्यकाल तय नहीं रहता था. अखाड़े के अध्यक्ष, महामंत्री समेत अन्य पदाधिकारी आजीवन इस पद पर बने रहते थे. 

अखिल भारतीय श्रीपंच दिगंबर अनि अखाड़े को छोड़कर अनि निर्वाणी एवं निर्मोही अखाड़े में व्यवस्था संचालन के लिए हर 12 साल में पदाधिकारियों का चुनाव होता है, लेकिन दिगंबर अनि अखाड़ा में यह व्यवस्था लागू नहीं थी. अखाड़े के पदाधिकारी आजीवन पद पर बने रहते थे. उनके निधन या किसी अन्य वजह से स्थान खाली होने पर ही नए सदस्य को कार्यकारिणी में जगह मिलती थी. 

पदाधिकारियों का कार्यकाल 12 साल के लिए तय 

करीब 550 साल से अखाड़े में यही परंपरा काम कर रही थी. राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्रीमहंत माधव दासै मौनी बाबा बताते हैं कि अखाड़े ने पहली बार सभी पदाधिकारियों का कार्यकाल 12 साल के लिए तय करते हुए अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, दो मंत्री, कोषाध्यक्ष समेत महंत पद के लिए चुनाव कराए गए. इसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष वैष्णव दास (अयोध्या), महामंत्री बलराम दास (उज्जैन), मंत्री जानकी दास (फरीदाबाद) पुजारी सीताराम दास (छत्तीसगढ़) बनाए गए. आम सहमति से इनका चुनाव हुआ. अब अगले 12 साल तक यह पदाधिकारी अखाड़े की बागडोर संभालेंगे. अगले प्रयागराज कुंभ के दौरान फिर से चुनाव होगा.

अखाड़े की अनूठी परंपरा

अखाड़ा पदाधिकारियों के मुताबिक वर्ष 1475 में दिगंबर अनि अखाड़े की स्थापना स्वामी चालानंदाचार्य ने की थी. अखाड़े की धर्मध्वजा में पांच रंग (लाल, पोला हरा, सफेद एवं काला) अलग-अलग समूहों को स्थान देने के लिए शामिल किए गए. साधु-महत राम एवं कृष्ण की उपासना करते हैं. अखाड़े के इंम्टदेव हनुमानजी महाराज हैं। संत सफेद बस्त्र धारण करने के साथ ही त्रिपुंड लगाते हैं.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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