Mahakumbh Mela 2025 Harsha Richhariya: प्रयागराज कुंभ में सबसे सुंदर साध्वी कही जाने वाली हर्षा रिछारिया इन दिनों सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी हुई हैं. इस बीच गुरुवार को उन्होंने रोते-रोते एक इंटरव्यू में महाकुंभ छोड़ने का ऐलान कर दिया और इसकी वजह शांभवी पीठ के पीठाधीश्वर को बताया. लेकिन, अब वायरल हर्षा रिछारिया के माता पिता का बयान सामने आया है. सिलाई मशीन पर काम करती हुईं उनकी मां ने कहा है कि वह अपनी बेटी को लेकर खुश हैं. वे उसके हर फैसले पर खुश हैं. हर्षा की मां ने कहा कि घर-परिवार के माहौल से बच्चे बनते हैं. उन्होंने आगे कहा कि हर्षा महादेव की भक्त हैं. महादेव की कृपा से सब हो रहा है. हर्षा रिछारिया को सोशल मीडिया पर ट्रोल करने पर उनके परिजनों ने कहा कि बुराई और अच्छाई एकसाथ चल रही है.
हर्षा की शादी को लेकर माता-पिता ने क्या कहा
इसके अलावा हर्षा की शादी को उनके पिता ने बताया कि इसके बारे में अभी नहीं सोचा है. सब महादेव की कृपा है. साथ ही हर्षा की भक्ति को लेकर उन्होंने कहा कि वह 10 साल की उम्र से भोलेनाथ की भक्त हैं. प्रत्येक सोमवार को पहले शिव मंदिर और उसके बाद कॉलेज जाना होता है. हर्षा रिछारिया के पिता ने आगे बताया कि कुछ लोगों की आदत है बढ़ते आदमी के कदमों को पीछे खींचना. हर्षा रिछारिया की दीक्षा को लेकर उनके उनके पिता ने जानकारी दी कि वह हरिद्वार में गुरु दीक्षा ली है. उन्होंने विश्वास के साथ कहा कि मेरे बच्चे गलत रास्ते पर नहीं जाएंगे. उनके हर फैसले पर मां-बाप साथ हैं.
क्यों खड़ा हुआ विवाद?
दरअसल, प्रयागराज महाकुंभ के पहले अमृत स्नान के दौरान हर्षा रिछारिया को महामंडलेश्वर के शाही रथ पर बैठे देखा गया, जिससे वह चर्चा का केंद्र बन गईं. इसी दौरान उन्होंने अपना पहला मीडिया इंटरव्यू दिया, जिसके बाद वह देशभर में सुर्खियों में आ गईं. साधु-संतों ने हर्षा के शाही रथ पर बैठने को लेकर नाराजगी जताई, जिससे विवाद खड़ा हो गया.
स्वामी आनंद स्वरूप ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "एक आचार्य महामंडलेश्वर द्वारा किसी मॉडल को शाही रथ पर बैठाकर अमृत स्नान के लिए जाना समाज के लिए उचित नहीं है. इससे श्रद्धालुओं की आस्था कमजोर होती है. साधु-संतों को समाज को सही दिशा में ले जाने का प्रयास करना चाहिए न कि धर्म का प्रदर्शन करना चाहिए. धर्म को दिखावे का हिस्सा बनाना खतरनाक हो सकता है और इससे बचना चाहिए. यदि साधु-संतों ने इस पर रोक नहीं लगाई तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं. साधु-संतों को त्याग और तपस्या की परंपरा का पालन करना चाहिए, न कि भोग-विलास का."