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किसान का बेटा बना हजारों करोड़ का मालिक, फिर कृष्ण भक्ति में सब कुछ छोड़ बना संन्यासी, बनाया परमधाम

Prayagraj Mahakumbh 2025: आप सभी महाकुंभ में एक से बढ़कर एक बाबा देख चुके होंगे, चाहे वह आईआईटी वाले बाबा हों, या स्कारपियों वाले बाबा. लेकिन आज मैं आपको ऐसे बाबा के बारे में बताएंगे जो अरबो के मालिक थे और अब बाबा बन गए हैं. 

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Prayagraj Mahakumbh 2025, Mahakumbh 2025,  Businessman Baba
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Zee Media Bureau|Updated: Feb 18, 2025, 06:59 PM IST
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Mahakumbh 2025: महाकुंभ में इस बार एक अनोखा बाबा सामने आया है, जो कभी 1200 करोड़ रुपये के संपत्ति के मालिक थे. यह बाबा काशी के एक सफल बिजनेसमैन थे, जिन्होंने एक किसान के बेटे को अरबों का बिजनेस खड़ा किया. लेकिन अब वे संन्यासी बाबा बन गए हैं. सवाल यह है कि ऐसा कदम उठाने के पीछे क्या वजह रही होगी? आइए जानते हैं, कैसे उन्होंने अपने व्यवसाय को छोड़ा और अध्यात्म की राह अपनाई

गरीबी से शिखर तक का सफर
राधेश्याम बाबा का जन्म हरियाणा के एक छोटे से गांव में हुआ था. उनके पिता किसान थे और घर की हालत बेहद खराब थी. बचपन में राधेश्याम ने गायें भी चराई और गेहूं भी काटा. कड़ी मेहनत और संघर्ष के बावजूद उन्होंने केवल 8वीं कक्षा तक ही पढ़ाई की, लेकिन व्यापार में उन्हें अपार सफलता मिली. उनका बिजनेस 1200 करोड़ रुपये का था और लोग उन्हें ‘सीएमडी राधेश्याम’ के नाम से जानते थे.

ईडी की जांच और जेल
हालांकि, उनके चमकते हुए व्यापार की राह में कांटे भी थे. जांच के दौरान ईडी ने राधेश्याम बाबा की 500 करोड़ रुपये की संपत्ति सीज कर दी और उन्हें 5 साल की सजा सुनाई.

जेल में गीता का अध्ययन और संन्यास
राधेश्याम बाबा ने जेल में रहते हुए गीता का 500 से अधिक बार अध्ययन किया. उन्होंने गीता के सरल अनुवाद के साथ लगभग 1700 पेज की गीता भी लिखी. उनका मानना था कि भगवान श्री कृष्ण हर व्यक्ति के भीतर समाए हुए हैं और जीवन के असली उद्देश्य को समझने के लिए गीता का अध्ययन जरूरी है. जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने संन्यास लिया और अब गीता का प्रचार कर रहे हैं.

परमधाम संस्था की स्थापना 
राधेश्याम बाबा ने हरियाणा में ‘परमधाम’ नामक संस्था की स्थापना की है, जहां वे लोगों को योग और गीता की शिक्षा दे रहे हैं. उनका मानना है कि आज के युवा को सही दिशा देने के लिए गीता के उपदेशों को समझना जरूरी है. उनका कहना है कि उनके द्वारा किया गया हर कार्य भगवान श्री कृष्ण की लीला का हिस्सा था और यह सब आत्मा का कार्य था, जो कृष्ण के दर्शन से प्रेरित था.

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