प्रमोद कुमार/कुशीनगर: कुछ सालों पहले कागज़ नाम की एक फ़िल्म आई थी. आपने हमने सबने देखी,जिसमें एक व्यक्ति खुद को जिंदा साबित करने के लिए लड़ाई लड़ता है. सिस्टम से और खुद को जिंदा साबित भी करता है, वो तो कहानी पर्दे की थी, अब सोचिए अगर यह असल हकीकत हो तो आप जरूर हैरान होंगे कि आप जिंदा हैं और आपको ये साबित करना पड़े कि आप जिंदा है तो कितना अजीब होगा ये. लेकिन ये हैरान कर देने वाली कहानी दरअसल एक हकीकत है.
लापरवाही से कागजों पर 'मृत' घोषित
कुशीनगर के बिशुनपुर विकासखंड अंतर्गत जड़हा गांव के रहने वाले 40 वर्षीय नवनीत मिश्रा की है. अपने आपको जिंदा साबित करने के लिए अधिकारियों के कार्यलय के चक्कर काट रहे हैं. जहां प्रशासन की लापरवाही के चलते उन्हें दो साल पहले कागज पर मृत घोषित कर दिया गया था, कागज़ों में मृत और तस्वीरों में "जिंदा दिव्यांग यह वही नवनीत मिश्रा हैं, जो सरकारी रिकॉर्ड में मृत हैं.
विकलांग ऊपर से सिस्टम की मार
अब भला मृत व्यक्ति को पेंशन बंद या अन्य योजनाओं का लाभ कैसे मिले. बस यही नवनीत मिश्रा की समस्या है, एक तो दिव्यांग ऊपर से सिस्टम की मार. जो खुद दिव्यांग हो चुका है, 90 प्रतिशत दिव्यांग नवनीत मिश्रा दो वर्ष पहले विभागीय लापरवाही के चलते सरकारी रिकॉर्ड में भले ही ''मृत'' घोषित कर दिए गए हों लेकिन नवनीत मिश्रा ने अपने आप को जिंदा साबित करने के लिए लगातार अधिकारियों के कार्यलय के चक्कर लगा रहे हैं.
खुद को जिंदा सिद्ध करने दर-दर भटक रहे
नवनीत को मृत घोषित करने के बाद नवनीत की पेंशन भी रोक दी गई है. खुद को जीवित साबित करने के लिए नवनीत मिश्रा डीएम और बीडीओ कार्यालयों के चक्कर काटते रहे हैं. गांव के ग्राम पंचायत सहायक अधिकारी मृत्युंजय कुमार गौतम द्वारा नवनीत को मृत घोषित करने की रिपोर्ट आज से दो साल पहले लगाई गई थी, जिसके बाद से नवनीत मिश्रा सरकारी तंत्र में खुद को जिंदा सिद्ध करने के लिए दर-दर भटक रहे हैं.