लखीमपुर खीरी: उत्तर प्रदेश का हर जिला अपने भीतर कोई न कोई ऐतिहासिक धरोहर समेटे हुए है. ऐसा ही एक जिला है लखीमपुर खीरी, जिसे आज हम गन्ने और चीनी उत्पादन के लिए जानते हैं, लेकिन इसका इतिहास कहीं ज्यादा रोचक और पुराना है. क्या आप जानते हैं कि लखीमपुर पहले लक्ष्मीपुर के नाम से मशहूर था?
लक्ष्मीपुर से लखीमपुर बनने की कहानी
लखीमपुर जिले को पहले लक्ष्मीपुर के नाम से जाना जाता था. बताया जाता है कि धीरे-धीरे उच्चारण और भाषा परिवर्तन के साथ इसका नाम लखीमपुर हो गया. लखीमपुर से करीब 2 किलोमीटर दूर एक छोटा सा कस्बा है खीरी, जिसका नाम एक सूफी संत सैयद खुर्द के नाम पर रखा गया था. सैयद खुर्द की मृत्यु 1563 में हुई थी, और उनके अवशेषों पर बना मकबरा आज भी खीरी कस्बे की पहचान है.धीरे-धीरे प्रशासनिक रूप से लक्ष्मीपुर और खीरी एक साथ लखीमपुर खीरी के रूप में जाना जाने लगा.
खीरी नाम की उत्पत्ति
खीरी नाम की उत्पत्ति के पीछे एक मान्यता यह भी है कि इस क्षेत्र में एक समय 'खर' वृक्षों के घने जंगल हुआ करते थे, जिनसे यह नाम जुड़ा. यह क्षेत्र हरियाली और वन्यजीवों के लिए भी प्रसिद्ध रहा है.
मुगलकाल से अंग्रेजी शासन तक
10वीं सदी में लखीमपुर खीरी को राजपूतों द्वारा बसाया गया था. 14वीं शताब्दी में नेपाल की तरफ से लगातार हो रहे हमलों को रोकने के लिए यहां कई किलों का निर्माण हुआ. मुगल सम्राट अकबर के समय में यह इलाका अवध के सूबे का हिस्सा बन गया. अंग्रेजों के आने के बाद 1801 में इसे रोहिलखंड के साथ अंग्रेजी शासन को सौंप दिया गया, लेकिन एंग्लो-नेपाली युद्ध (1814-1816) के बाद यह क्षेत्र फिर से अवध में शामिल हो गया.
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
1857 की क्रांति में भी लखीमपुर खीरी पीछे नहीं रहा. जिले का मोहम्मदी कस्बा विद्रोह का मुख्य केंद्र बन गया था. 2 जून 1857 को शाहजहांपुर से आए क्रांतिकारी यहां पहुंचे और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बिगुल बजा दिया. विद्रोह के दौरान कई लोगों की जान गई, लेकिन यह घटना स्वतंत्रता संग्राम में लखीमपुर की भागीदारी की गवाही देती है.
आज का लखीमपुर खीरी
आज लखीमपुर खीरी को "चीनी का कटोरा" कहा जाता है. यहां देश की सबसे बड़ी चीनी मिलें स्थित हैं. 2022-23 में यहां 107.29 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ. यह उत्तर प्रदेश का क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे बड़ा जिला है और यहां सबसे बड़ी सिख आबादी भी रहती है, जो मुख्यतः किसान हैं.