Kanpur/ Pilibhit: कानपुर चिड़ियाघर में लाई गई एक बाघिन इन दिनों सुर्खियों में है. पीलीभीत के गांवों में दहशत का पर्याय बनी इस बाघिन ने 5 लोगों की जान लेकर इंसानों के बीच खून का रिश्ता जोड़ लिया था. मगर अब वही बाघिन जू के पिंजरे में चुपचाप बैठी है—डरी, सहमी और डिप्रेशन में.
4 दिन से सोई नहीं, मुर्गा मारा लेकिन खाया नहीं
24 जुलाई को पकड़ी गई इस बाघिन को 26 जुलाई की रात कानपुर लाया गया था. नया माहौल, अजनबी जगह और पहले से बना खौफ का बोझ... सब मिलकर उसे गहरे तनाव में ले गए. चार दिन तक उसने खाना नहीं खाया, केवल पानी पिया. दो रातें तो ऐसी बीतीं जब उसने आंख तक नहीं झपकी, बस गुर्राती रही. चौथे दिन जब उसे जिंदा मुर्गे दिए गए, उसने मार तो डाला, लेकिन खाया नहीं.
बाघिन का डाइट चार्ट
पांचवें दिन यानी गुरुवार की रात उसने पहली बार बकरे का 1.2 किलो मीट खाया. अब डॉक्टरों की टीम उसका डाइट चार्ट तैयार कर चुकी है. फिलहाल उसे सिर्फ बकरे का मांस दिया जा रहा है, जिसे धीरे-धीरे बढ़ाकर भैंस के मांस तक लाया जाएगा. एक सामान्य बाघ की डेली डाइट करीब 5-6 किलो मांस की होती है.
सुधर रहा बाघिन का बर्ताव
जू डायरेक्टर कन्हैया पटेल और पशु चिकित्सक डॉ. नासिर बताते हैं कि बाघिन के व्यवहार में अब सुधार है. पहले वह पिंजरे के पास आते ही झपट्टा मारती थी, अब शांति से बैठती है. फिलहाल उसे 14 दिन क्वारैंटाइन में रखा जाएगा और उसके बाद एक महीने तक ऑब्जर्वेशन में.
इस बाघिन का नाम वन विभाग और वाइल्डलाइफ फोटोग्राफरों के बीच 'मिठ्ठी' था.पीलीभीत के जंगलों और गन्ने के खेतों में अकेली घूमने वाली यह बाघिन पहले शर्मीली मानी जाती थी.लेकिन इंसानी दुर्व्यवहार—पत्थर, डंडे और डराने के कारण वह हिंसक हो गई.
अब सवाल ये है कि क्या ‘मिठ्ठी’ फिर कभी शांत बाघिन बन पाएगी, या उसके भीतर का खौफ हमेशा ज़िंदा रहेगा?
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