Lok Sabha Election 2024 West UP / मेरठ: लोकसभा चुनाव हो या प्रदेश का विधानसभा चुनाव, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के घटनाक्रम का हमेशा से ही इन चुनावों पर प्रभाव रहा है. लोकसभा चुनाव 2024 की बात करें तो वेस्ट यूपी में सभी पार्टी के योद्धा करीब करीब मैदान में उतर ही चुके हैं. इन सब में सबसे खास उम्मीदवार अगर किसी के हैं तो बहुजन समाज पार्टी के हैं जिनको बड़ी ही सूझबूझ के साथ और चुन चुनकर मायावती ने टिकट दिया है. मेरठ हो या कैराना या बिजनौर ही क्यों न हो बीजेपी के कोर वोटर को प्रभावित करने वाले उम्मीदवारों को बीएसपी ने अपने खेमे से उतारा है. मायावती की ये सूझबूझ बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती सीबित हो सकती है. आइए समझते हैं कि कैसे वेस्ट यूपी में बीएसपी कैंडिडेट बीजेपी को कड़ी टक्कर दे सकते हैं.
परिणामों को बदलने का माद्दा
दरअसल, मुस्लिम बहुल कुछ एक सीटों को छोड़कर बीएसपी ने अधिकतक सीटों पर अपने प्रत्याशी बीजेपी के कोर वोट बैंक को प्रभावित करने वाले ही उतारे हैं. ध्यान देना होगा कि अगर ये बीएसपी के उतारे गए उम्मीदवारों ने अपने जाति से संबद्ध वोट पर कब्जा कर लिया तो बीजेपी के साथ बड़ा खेल हो जाएगा. इस बारे के लोकसभा में वेस्ट यूपी में जातिगत समीकरण का चुनाव पर गहरा असर रह सकता है जो परिणामों को बदलने का माद्दा रखते हैं.
2014 की बात करें तो में वेस्ट यूपी में आने वाली सभी 14 सीटों पर बीजेपी जीत हासिल किया था और 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन का खास असर रहा था. बिजनौर, नगीना, सहारनपुर के साथ ही मुरादाबाद, संभल, रामपुर व अमरोहा सीटों पर गठबंधन ने नए जातीय समीकरण को भुनाकर जीत हासिल की थीं. 2019 से 2024 का चुनाव इस तरह अलग है कि बसपा इस बार किसी के साथ गठबंधन में नहीं है. रालोद इस बार भाजपा के साथ है और सपा कांग्रेस का गठबंधन है. वेस्ट यूपी में जातिगत समीकरण बिल्कुल साफ है. यूपी के इस क्षेत्र में कुछ ऐसी जातियां है जिनको बीजेपी के कोर वोटर के तौर पर देखा जाता है-
ये जातियां हैं-
त्यागी, ठाकुर
ब्राह्मण, सैनी
प्रजापति, कश्यप
सेन आदि समाज
गेम जितना सरल दिख रहा है उतना है नहीं
वहीं जाटों की पार्टी के तौर पर वेस्ट यूपी में रालोद की पहचान है. इस तरह इन सभी जातियों का बीजेपी के पक्ष में आना तय था. बाकी RLD के जरिए जाट समाज का वोट भी हालिस किया जा सकता था. लेकिन गेम जितना सरल दिख रहा है उतना है नहीं क्योंकि एकेल चुनाव लड़ रहीं मायावती ने गेम को इतना सरल रहने नहीं दिया है. आइए कुछ सीटों के समीकरण को समझते है.
बिजनौर में जाट समाज का प्रभाव
बिजनौर में भी बीएसपी ने बीजेपी का गेम बिगाड़ते हुए जाट चेहरे विजेंद्र सिंह को टिकट दिया है. दरअसल, यहां पर जाट वोट बैंक रालोद व बीजेपी के माने जाते रहे हैं लेकिन मायावती ने अपने बेहतरीन चुनावी रणनीति का परिचय देते हुए जाट, दलित समीकरण को भुनाने की कोशिश की है. इतना ही नहीं सपा ने भी यहां दांव चलते हुए अति पिछड़े सैनी समाज के दीपक सैनी पर विश्वास किया है. यहां के सैनी समाज को भी बीजेपी के वोट बैंक के रूप में देखा जाता है. 2019 में बीएसपी ने गुर्जर उम्मीदवार पर भरोसा किया था और पिछड़े दलित, मुस्लिम समीकरण को भुनाते हुए सीट अपने पाले में भी कर लिया था. इस बार भाजपा-रालोद गठबंधन के प्रत्याशी चंदन चौहान है जो मीरापुर से रालोद विधायक है और गुर्जर समाज से आते हैं. चौ. नारायण सिंह जोकि प्रदेश के डिप्टी सीएम रह चुके हैं उनके दादा थे. चंदन चौहान के पिता संजय चौहान सांसद रह चुके हैं.
मेरठ में त्यागी समाज का प्रभाव
मेरठ से किसी त्यागी को पहली बार बीएसपी ने टिकट दिया है, अब से पहले तक मुस्लिम को ही पार्टी मौका देती रही थी. देवव्रत त्यागी बीएसपी कैंडिडेट हैं और त्यागी समाज को यहां पर बीजेपी के कोर वोटर के रूप में देखा जाता रहा है. सपा ने पहले तो दलित भानु प्रताप सिंह को इस सीट से उतारा लेकिन अब गुर्जर विधायक अतुल प्रधान पर दांव लगाया है. वहीं वैश्य उम्मीदवार और रामायण में राम की भूमिका से प्रसिद्धि पाने वाले अरुण गोविल पर बीजेपी ने विश्वास किया है. यहां इंतजार इस बात का होगा कि अरुण गोविल बीएसपी के देवव्रत त्यागी के सामने टिक पाते हैं या नहीं.
कैराना में ठाकुर समाज का प्रभाव
कैराना की बात करते हैं, बीएसपी ने यहां स ठाकुर समाज से आने वाले श्रीपाल राणा को चुनावी मैदान में उतारा है. वहीं यहां पर बीजेपी का कोर वोटर ठाकुरों को माना जाता है. ऐसे में बीजेपी के सामने बीएसपी कैंडिडेट एक चुनौती की तरह साबित हो सकता है. इकरा हसन को सपा-कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया है. बीजेपी ने गुर्जर समाज से आने वाले और यहां से मौजूदा सांसद प्रदीप चौधरी पर फिर से भरोसा जताया है.