Greater Noida Authority: उत्तर प्रदेश की राजनीति में मायावती एक ऐसी भूमिका में हैं जिनका सूरज भले ही आज डूब रहा हो लेकिन एक समय वो भी गुजरा है जब देश के सबसे बड़े प्रदेश की मुख्यमंत्री पद पर 4 बार बैठ चुकी मायावती के शासन की पूरे यूपी में तूती बोलती थी. प्रदेश का कायकल्प करने की ठान लेने वाली मायावती ने अपने पैतृक गांव बादलपुर के लिए भी विकास के कई काम किए.
मायावती सत्ता से दूर
हलांकि जिस तरह से पूर्व सीएम अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव ने अपने पैतृक गांव सैफई में चार चांद लगाए उस हद तक मायावती ने अपना गांव भले ही न संवारा हो लेकिन बादलपुर तब की सीएम का गांव होने का गौरव तो पा ही रहा था. वो बात और है कि जैसे-जैसे मायावती सत्ता से दूर जाती रहीं वैसे-वैसे उनके गांव से विकास ने भी दूरी बनानी शुरू कर दी. पिछले 15 से 16 साल में गांव की ओर पिछली सरकारों ने शायद नजर उठाकर भी नहीं देखा.
बादलपुर वीवीआइपी गांव
पीछे 12-13 साल मुड़कर देखें तो गौतमबुद्धनगर जिले का बादलपुर वीवीआइपी गांव की लिस्ट में शामिल था. विकास की लगभग हर योजना बादलपुर पहुंचा दी जाती थी. लेकिन अब हाल पहले जैसा नहीं रहा, योजनाएं ठप पड़ी हैं और पूरा गांव अनदेखी का दर्द झेल रहा है. ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण हो या गौतमबुद्ध नगर जिला प्रशासन या फिर विकास विभाग के अधिकारी हों, मायावती राज में सब गांव को चमकाने में लगे रहते थे. 24 घंटे बिजली व पानी का तो पूछिए ही नहीं.
मायावती के काल में जो सीवर लाइन, सीसी रोड और गांव की छुटपन गलियां चमकती थीं, पक्की सड़कें रोशनी से भरी रहती थीं आज कीचड़ और गंदगी ने उन चमक-दमक की जगह ले ली है. रास्तों और सड़कों का तो कोई हाल ही पूछने वाला नहीं है. गांव में बरिश का पानी भरने लगता है. करोड़ों रुपये की लागत से जो पार्क बनवाए गए उनकी दीवार के पत्थर उखड़ रहे हैं.
धरी रह गई योजनाएं
जहां तक गांव में युवाओं के लिए रोजगार होने न होने की बात है तो इसके लिए क्षेत्रीय मत्स्य बीज उत्पादन के साथ ही प्रशिक्षण केंद्र खोलने तक के लिए हुए भवन बनाए गए. जिन तालाबों पर रुपये खर्च किए गए उनका अस्तित्व खो रहा है. गांव की जिन नालियों से पानी तालाब तक पहुंचना था वो जाम हो चुका है और सड़क तालाब में तब्दील हो गया है.
सैफई और बादलपुर
यहां पर एक बात और गैर करने वाली है कि उत्तर प्रदेश को पश्चिमी यूपी से मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री के रूप में मिले, इन दोनों ने भी अपने गांव सैफई को चमकाने में कोई कोर कसर नहीं रहने दी. बादलपुर और सैफई दोनों ही पश्चिमी यूपी के गांव हैं लेकिन जब इटावा का सैफई का रूख किया जाता है तो वहां मेडिकल कॉलेज, स्टेडियम, डिग्री कॉलेज, तहसील के साथ ही विकास खंड कार्यालय, ऑडिटोरियम और गेस्ट हाउस गांव की शैभा बढ़ा रहे होते हैं. सत्ता में भले ही समाजवादी पार्टी नहीं है लेकिन सत्ता में रहते हुए इस पार्टी ने अपने गांव के लिए कितना कुछ किया यह किसी से छुपा नहीं है. इसी जगह पर अगर मायावती को रखकर देखा जाए तो साफ दिखता है कि शायद मूर्तियों के निर्माण में गांव का विकास पीछे छूट गया और बहनजी की सरकार जानें के बाद योजनाएं भी धरी की धरी रह गई.