Barabanki News: जब देश अंतरिक्ष में इतिहास रच रहा है, गांव-गांव इंटरनेट पहुंचाने की बात हो रही है, तब बाराबंकी का एक गांव ऐसा भी है, जहां आज भी हर शाम अंधेरे से पहले घर लौटना मजबूरी है. यहां एक बल्ब की रोशनी आज भी सपना है. जहां दीये की मद्धम लौ में बच्चे अपने भविष्य को ढूंढते हैं. यह गांव है गढ़रियनपुरवा जो बाराबंकी जिला मुख्यालय से महज 8 किलोमीटर दूर है, लेकिन विकास से सौ साल पीछे.
78 साल भी अंधेरे में रह रहे लोग
गांव के बुजुर्ग जब अपने बीते बचपन को याद करते हैं तो बस एक ही बात कहते हैं कि ''तब भी बिजली नहीं थी, आज भी नहीं है. फर्क सिर्फ इतना है कि अब आंखें भी कमजोर हो गई हैं. गांव में जन्मे हर बच्चे ने रोशनी का इंतजार किया लेकिन ये इंतजार अब उनकी बुजुर्गी तक चला आया. कुछ तो इस इंतजार में ही दुनिया से चले गए.
'2017 में लगे थे बिजली के खंभे'
गांव के रहने वाले रोहित पाल का कहना है सरकारें आईं वादे हुए, लेकिन हकीकत में कुछ नहीं बदला. 2017 में गांव में कुछ बिजली के खंभे जरूर लगाए गए, लेकिन फिर विभाग ने मानो मुंह मोड़ लिया. आठ साल हो गए न तार खिंचे न सपनों में उजाला आया. गांव की शिक्षिका रूबी कहती हैं कि बच्चे दीये की रोशनी में पढ़ते हैं. गर्मी इतनी होती है कि पंखा भी नहीं चला सकते. रोशनी और हवा के बिना पढ़ाना क्या होता है, कोई शहर में नहीं समझ सकता.
'पीने की पानी की भी किल्लत'
गढ़रियनपुरवा में पीने के पानी की हालत भी उतनी ही चिंताजनक है. प्रधानमंत्री जल जीवन मिशन की योजना यहां सिर्फ नाम की है. पाइप तोड़ बढ़ा दिए गए हैं लेकिन एक भी टोटी अभी तक नहीं लग पाई है. एकमात्र सरकारी नल पर सुबह-शाम लंबी कतारें लगती हैं.
'शादी करने से कतराते हैं लोग'
गांव के रहने वाले अरविंद पाल कहते हैं कि लोग हमारे यहां रिश्ता जोड़ने से भी कतराते हैं. कहते हैं कि जहां बिजली न हो, वहां बेटियों का भविष्य अंधेरे में जाएग.। वहीं जो शादियां होती हैं उनमें मिले दहेज के इलेक्ट्रॉनिक सामान यहीं खराब होकर धूल खाते हैं. गांव की एक बुजुर्ग महिला ने बताया कि हमारे सास-ससुर बिजली की आस में चले गए. अब हम भी बुढ़ापे के पड़ाव पर हैं. लगता है, हम भी बिना रोशनी देखे ही चले जाएंगे, क्या हमारे बच्चों को भी यही अंधेरा मिलेगा.
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