UP BJP District President List 2025: यूपी बीजेपी के नए जिलाध्यक्षों का लंबे समय का इंतजार खत्म हो गया है. 98 में से 70 जिलों में अपने 'सेनापति' मैदान में उतार दिए हैं. जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में बीजेपी ने पहले चरण में अगड़ों पर ज्यादा भरोसा जताया है. 70 में से 39 जिलाध्यक्ष बीजेपी के कोर वोट बैंक यानी सामान्य जाति के हैं. बीजेपी ने पंचायत चुनाव-2026 और विधानसभा चुनाव 2027 को देखते हुए जातीय समीकरण पर फोकस किया है. 2023 में बीजेपी ने 98 में से 4 महिला और 4 एससी वर्ग के जिलाध्यक्ष बनाए थे.
एक भी मुस्लिम जिलाध्यक्ष नहीं
आने वाले चुनावों में महिला और एससी वर्ग को साधने के लिए केंद्रीय नेतृत्व ने एससी और महिलाओं की संख्या 20 फीसदी तक करने का सुझाव दिया था. बड़ी मशक्कत के बाद भी प्रदेश चुनाव अधिकारी महेंद्रनाथ पांडेय, प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी और महामंत्री संगठन धर्मपाल सिंह सुझाव पर पूरी तरह अमल नहीं कर सके. हालांकि, पहले चरण में ही महिलाओं की संख्या 4 से बढ़कर 5 और एससी की संख्या 4 से बढ़ाकर 6 जरूर की गई है. बीजेपी ने एक भी मुस्लिम जिलाध्यक्ष नहीं बनाया है.
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बीजेपी जिलाध्यक्षों की नई लिस्ट
बीजेपी ने जो लिस्ट जारी की है, उसमें सामान्य वर्ग में 20 ब्राह्मण, 10 ठाकुर, 3 कायस्थ, 2 भूमिहार, 4 वैश्य और 1 पंजाबी अध्यक्ष हैं. ओबीसी के 25 जिलाध्यक्ष हैं, जिसमें यादव, बढ़ई, कश्यप, कुशवाहा, पाल, राजभर, रस्तोगी, सैनी के 1-1 जिलाध्यक्ष बनाए गए हैं. वहीं, 5 कुर्मी, 2 मौर्य, 4 पिछड़ा वैश्य, 2 लोध समाज के नेता शामिल हैं. अनुसूचित वर्ग से कुल 6 जिलाध्यक्ष बनाए गए हैं. इनमें एक-एक धोबी, कठेरिया, कोरी और पासी वर्ग से 3 जिलाध्यक्ष निर्वाचित हुए हैं.
क्या चाहती है भाजपा?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा पिछड़ों के साथ दलितों में अपनी पैठ तो बढ़ाना चाहती है, लेकिन अगड़ों की कीमत पर नहीं. लिहाजा उसने संगठन में अगड़ों का प्रभुत्व कायम रखा है. पार्टी का यह भी मानना है कि चुनाव में जातीय समीकरणों की मजबूरी ज्यादा होती है. जबकि संगठन में सर्वसम्मति और पार्टी को साथ लेकर चलने वाले नेताओं की ज्यादा जरूरत है. जनहित से जुड़े मुद्दों पर खरी-खरी बात करने वाले नेताओं की अनदेखी नहीं की जा सकती. उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण, ठाकुर और वैश्य समाज का करीब 27-28 फीसदी वोट है. यह वोटबैंक लंबे समय से मजबूती के साथ भाजपा के साथ खड़ा रहा है. भाजपा जिलाध्यक्ष की सूची में जो 39 नाम सवर्ण समाज से हैं, उसमें 4 वैश्य, तीन कायस्थ, 2 भूमिहार के अलावा 19 ब्राह्मण हैं.
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हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश
राजनीति के जानकारों की मानें तो बीजेपी ने ढाई महीने की मशक्कत के बाद पंचायत चुनाव से विधानसभा चुनाव तक के लिए सटीक सियासी समीकरण बैठाया है. पार्टी ने अगड़ी जातियों को तवज्जो देकर यह पक्का किया है कि सपा किसी भी स्थिति में उनके सवर्ण वोट बैंक में सेंध न लगा सके. पिछड़ी जातियों में भी कुर्मी, लोधी, सैनी, मौर्य, कुशवाह, यादव, राजभर, निषाद समेत सभी प्रमुख जातियों को मौका दिया. दलितों की संख्या बढ़ाकर सपा के पीडीए में पिछड़ा और दलित को साधने की कोशिश की है. इतना ही नहीं एक भी मुस्लिम जिलाध्यक्ष न बनाकर हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश भी है.
अगड़ों पर ही बीजेपी का फोकस
जानकारों की मानें तो नए जिलाध्यक्षों के लिए यह कुर्सी शोहरत और सत्ता की बुलंदी नहीं, बल्कि कांटों भरा ताज है. उनका कहना है कि नए जिलाध्यक्षों के सामने डबल चुनौती है. उन्हें पंचायत चुनाव में पार्टी को जीत दिलाने के लिए स्थानीय स्तर पर संतुलन बैठाना है. माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव की तैयारी भी करनी है. जिलाध्यक्ष पद को लेकर काफी खींचतान बनी हुई थी. सत्तारुढ़ दल होने की वजह से सभी कार्यकर्ता जिलाध्यक्ष बनना चाहता है. ऐसे में जिलाध्यक्ष चुनने में खूब कठिनाई हुई. पार्टी ने विधानसभा चुनाव के मद्देनजर जातीय समीकरण बैठाने की कोशिश की. जानकार कहते हैं कि पार्टी ने साफ संदेश दिया है कि पिछड़े और दलितों के साथ अगड़ी जातियां उनके लिए अहम हैं.
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