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मेरठ से निकलकर नासा पहुंचे वैज्ञानिक भाई यूनिवर्सिटी के नाम करने जा रहे करोड़ों का पैतृक घर, पूर्व पीएम भी रहे इस परिवार के मुरीद

Meerut News : यूपी के मेरठ से एक परिवार ने मिसाल पेश की है. यहां एक परिवार ने अपना करोड़ों रुपये का मकान चौधरी चरण सिंह विश्‍वविद्यालय को दान में देने का ऐलान किया है.

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Chaudhary Charan Singh University
Chaudhary Charan Singh University
Zee News Desk|Updated: Dec 16, 2023, 09:20 PM IST
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Meerut News : संपत्ति को लेकर जहां एक तरफ अपनों का कत्‍ल हो रहा है, वहीं, यूपी के मेरठ से एक परिवार ने मिसाल पेश की है. यहां एक परिवार ने अपना करोड़ों रुपये का मकान चौधरी चरण सिंह विश्‍वविद्यालय को दान में देने का ऐलान किया है. इतना ही नहीं परिवार के सदस्‍यों ने चौधरी चरण सिंह विश्‍वविद्यालय के कुलपति से मिलकर मकान लेने के प्रस्‍ताव को स्‍वीकारे की अपील की है. 

दोनों बेटों की सहमति के बाद लिया गया फैसला 
मेरठ के बुढ़ाना में डॉ. रमेश चंद त्‍यागी का घर है. साल 2020 में डॉ. रमेश चंद का निधन हो गया. रमेश चंद की पत्‍नी का भी निधन हो चुका है. उनके दो बेटे दिनेश और रमेश त्‍यागी अमेरिका में नासा में वैज्ञानिक हैं. रमेश चंद की भतीजी शिवा त्‍यागी ने चौधरी चरण सिंह विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. संगीता शुक्‍ला से मुलाकात की. 

400 गज में बना मकान दान देने का ऑफर 
शिवा त्‍यागी के मुताबिक, मेरठ के बुढ़ाना गेट पर करीब 400 गज में डॉ. रमेश त्‍यागी का मकान है, जिसकी कीमत करोड़ों में है. शिवा त्‍यागी ने बताया कि रमेश त्‍यागी के दोनों बेटों ने मकान को विश्‍वविद्यालय प्रशासन को दान में देने का फैसला किया है. विश्‍वविद्यालय प्रशासन रमेश त्‍यागी का मकान दान स्‍वरूप लेकर उसमें अध्‍ययन का केंद्र या लाइब्रेरी बना सकता है.

लीगल राय ले रहा विश्‍वविद्यालय प्रशासन 
शिवा त्‍यागी के प्रस्‍ताव पर विश्‍वविद्यालय प्रशासन विचार कर रहा है. विश्‍वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि वह लीगल राय लेने और आगे के फैसले के लिए दो सदस्‍यीय समिति बना दी है. समिति मुआयना कर अपना फैसला लेगी. विश्‍वविद्यालय प्रशासन का एक पक्ष का मानना है कि लड़कियों के लिए संगीत एवं कंप्‍यूटर सेंटर बनाने का इच्‍छुक है. वहीं, दूसरा पक्ष इससे सहमत नहीं है. 

पूर्व पीएम के कहने पर भारत लौटे थे 
बता दें कि डॉ. रमेश त्‍यागी भी नासा में वैज्ञानिक थे. उन्‍होंने 1971 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर भारत आ गए थे. भारत लौटकर डीआरडीओ में छह महीने में इंफ्रा रेड डिटेक्‍टर को देश में ही निर्मित कर दिया था. हालांकि, बाद में किसी कारण वश पीएक्‍स एसपीएल-47 के नाम से जारी इस प्रोजेक्‍ट को रोक दिया गया.  

 

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