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दुनिया का इकलौता मंदिर जहां आकाश की ओर मां का मुख, खेचरी मुद्रा में विराजमान हैं मां काली, दर्शन मात्र से पूरी होती हैं मनोकामनाएं!

Chaitra Navratri 2025: देश के लगभग सभी मंदिरों में मां के विग्रह का मुख सामने की तरफ होता है. लेकिन यूपी की इस जगह पर स्थित मां काली देवी का मस्तक ऊपर आकाश की तरफ है. जिसे खेचरी मुद्रा कहते हैं.  

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Chaitra Navratri 2025
Chaitra Navratri 2025
Zee Media Bureau|Updated: Mar 29, 2025, 10:43 PM IST
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Chaitra Navratri 2025: चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 30 मार्च यानी रविवार से हो रही है. मां के मंदिरों में भक्तों का तांता लगा रहता है. आज हम आपको मां के एक अनोखे मंदिर के बारे में बताएंगे. जो विंध्य क्षेत्र में आता है. विंध्य क्षेत्र में आदिशक्ति अपने तीनों रूप महालक्ष्मी, महासरस्वती तथा महाकाली के रूप में विराजमान होकर त्रिकोण बनाती हैं. विंध्य क्षेत्र की महिमा अपरम्पार है. आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी अपने भक्तों को लक्ष्मी के रूप में दर्शन देती हैं. 

रक्तासुर का वध करने के बाद माता काली और कंस के हाथ से छूटकर महामाया अष्टभुजा सरस्वती के रूप में त्रिकोण पथ पर विंध्याचल विराजमान हैं. रक्तासुर का वध करने के बाद महाकाली इस पर्वत पर आसीन हुईं. उनका मुख आज भी आसमान की ओर खुला हुआ है. इस रूप का दर्शन विंध्य क्षेत्र में ही प्राप्त होता है. नवरात्रि में यहां बड़ी संख्या में भक्त आते हैं. मान्यता है कि यहां दर्शन मात्र से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

तीन रूपों के साथ विराजमान माता विंध्यवासिनी के धाम में त्रिकोण करने से भक्तों को सब कुछ मिल जाता है जो उसकी कामना होती है. भक्त नंगे पांव व लेट - लेटकर दंडवत करते हुए चौदह किलोमीटर की परिक्रमा कर धाम में हाजिरी लगाते हैं. जगत जननी माता विंध्यवासिनी अपने भक्तों का कष्ट हरण करने के लिए विन्ध्य पर्वत के ऐशान्य कोण में लक्ष्मी के रूप में विराजमान हैं. दक्षिण में माता काली व पश्चिम दिशा में ज्ञान की देवी सरस्वती माता अष्टभुजा के रूप में विद्यमान है 

जब भक्त करुणामयी माता विंध्यवासिनी का दर्शन करके निकलते हैं तो मंदिर से कुछ दूर काली खोह में विराजमान माता काली का दर्शन मिलता है. माता के दरबार में उनके दूत लंगूर व जंगल में विचरने वाले पशु पक्षियों का पहरा रहता है. माता काली का मुख आकाश की ओर खुला हुआ है. माता के इस दिव्य स्वरूप का दर्शन रक्तासुर संग्राम के दौरान देवताओं को मिला था. माता उसी रूप में आज भी अपने भक्तो को दर्शन देकर अभय प्रदान करती हैं. माता के दर्शन पाकर अपने आप को धन्य मानते हैं.

शक्ति पीठ विन्ध्याचल धाम में नवरात्र के दौरान माता के दर पर हाजिरी लगाने वालो की तादात प्रतिदिन लाखो में पहुच जाती हैं. औसनस उप पुराण के विन्ध्य खंड में विन्ध्य क्षेत्र के त्रिकोण का वर्णन किया गया है. विन्ध्य धाम के त्रिकोण का अनंत महात्म्य बताया गया है. भक्तों पर दया बरसाने वाली माता के दरबार में पहुंचने वाले भक्तों के सारे कष्ट मिट जाते हैं. भारतीय धर्म शास्त्र में ऐशान्य कोण को देवताओं का स्थान माना गया है. विन्ध्य पर्वत के इसी कोण पर शिव के साथ शक्ति अपने तीनों रूप में विराजमान होकर भक्तो का कल्याण कर रही हैं. विन्ध्य क्षेत्र में दर्शन पूजन व त्रिकोण करने से अनंत गुना फल की प्राप्ति होती है.

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