Ramnagar News, सतीश कुमार: उत्तराखंड में शिकारी पक्षियों पर एक गंभीर और वैज्ञानिक रिसर्च किए जा रहे हैं. ऐसा रिसर्च पहली बार उत्तराखंड में किया जा रहा है. जिसमें इन पक्षियों की मूवमेंट को जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क और राजाजी टाइगर रिजर्व को केंद्र बनाकर ट्रैक किया गया है. रिसर्च में वल्चर समेत कई संकटग्रस्त प्रजातियों को सैटेलाइट टेलीमेट्री डिवाइस के जरिए मॉनिटर किया गया है.
दो तरह के हो रहे रिसर्च
इस रिसर्च में बेहद चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं. कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के डायरेक्टर डॉ. साकेत बडोला ने बताया कि WWF इंडिया के सहयोग से दो तरह की रिसर्च की जा रही है. पहली रिसर्च सैटेलाइट टेलीमेट्री आधारित स्टडी है, जिसमें पक्षियों को कॉलर लगाकर ट्रैक किया जा रहा है. जबकि, दूसरी रिसर्च फील्ड सर्वे आधारित स्टडी है, जिसमें पूरे उत्तराखंड में इनकी जनसंख्या और मूवमेंट को समझा जा रहा है.
स्टडी देख विशेषज्ञ भी हैरान
स्टडी के मुताबिक, जिम कॉर्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व में टैग किए गए कुछ रेड हेडेड वल्चर पिथौरागढ़ की ओर गए. जबकि, कुछ अन्य वल्चर हरियाणा तक पहुंच गए हैं. विशेषज्ञों को यह जानकर हैरानी हुई कि ये संकटग्रस्त पक्षी प्रोटेक्टेड एरिया से बाहर निकल रहे हैं, जहां उनके सामने बिजली की खुली लाइनों, भोजन की कमी और अन्य मानवजनित खतरों का गंभीर सामना करना पड़ रहा है.
वल्चर संरक्षण के लिहाज से अहम
WWF की रिसर्च में एक साढ़े चार किलोमीटर लंबी बिजली लाइन की पहचान की गई है, जिससे टकराकर कई गिद्धों की जान जा चुकी थी. रिपोर्ट के बाद बिजली विभाग ने WWF के साथ मिलकर उस लाइन को इंसुलेट कर दिया. ताकि, आगे और नुकसान न हो. यह कदम वल्चर संरक्षण के लिहाज से अहम माना जा रहा है.
30 प्रजातियों की हुई पहचान
डॉ. बडोला के मुताबिक, कॉर्बेट में अब तक रैप्टर पक्षियों की 30 प्रजातियों की पहचान हुई है, जिनमें से पांच को संकटग्रस्त श्रेणी में रखा गया है. जो शिकारी पक्षी पूरे साल कॉर्बेट में रहते हैं, उनमें पलास फिशिंग ईगल और ऑसप्रे जैसे शिकारी पक्षी हैं. कहा जा रहा है कि भविष्य में ऐसी स्टडी से इन पक्षियों के संरक्षण के लिए मजबूत डेटा तैयार हो जाएगा.
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