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भारत में सबसे पहले कब शुरू हुई 'शिफ्ट', कितने काम के घंटे और वीकऑफ, हर हफ्ते 70-80 घंटे काम पर बवाल के बीच जानें

History of Working Hours:  ILO की रिपोर्ट कहती है कि कोरोना महामारी से पहले भारतीयों ने हर साल औसतन 2,000 घंटे से ज़्यादा काम किया, जो अमेरिका, ब्राज़ील और जर्मनी से बहुत ज़्यादा है.

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Subodh Anand Gargya|Updated: Nov 16, 2024, 04:21 PM IST
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Working Hours Debate: दुनिया कि दिग्गज कारोबारी एलन मस्क ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर भर्ती का अनोखा विज्ञापन निकाला है. भर्ती की शर्तों में हफ्ते में 80 घंटों से ज्यादा काम करना रखा गया है. इन शर्तों पर दुनियाभर में रिएक्शन आ रहे हैं. आपको बता दें कि हमारे देश में भी आईटी कंपनी इन्फोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने हफ्ते में कम से कम 70 घंटे काम करने की बात कही थी. शिफ्ट और वीक ऑफ ऐसे शब्द हैं जो नौकरीपेशा आदमी की जुबान पर रहते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये शिफ्ट में काम करने और वीक ऑफ की शुरुआत कब और कैसे हुई. हमारे देश भारत में इस व्यवस्था का कितना पुराना इतिहास रहा है? आइए इन सब सवालों के जवाब देते हैं.

पहले थोड़ा इतिहास जान लीजिए कि ये शिफ्ट में कान करना दुनिया में कब शुरू हुआ. दरअसल 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध में औद्योगिक क्रांति हुई. जिसने कि साल भर काम करने को मुमकिन बनाया. अब प्रत्येक दिन लंबे समय तक काम करना मुमकिन हो चुका था. ऐसे में लोग रोजी रोटी कमाने और कामकाज करने शहर आ गए. सालभर होने वाले औद्योगिक कार्य में वृद्धि हुई. उस समय काम के घंटे तय नहीं होते थे और वीकऑफ नहीं था. ऐसे में मालिक मनमर्जी मुताबिक काम लिया करते थे. रिकॉर्ड बताते हैं कि कुछ औद्योगिक जगहों में प्रति दिन बारह से सोलह घंटे काम लिया जाता था. 19वीं सदी के उत्तरार्ध में अमेरिका में औसत कार्य सप्ताह 60 घंटे से अधिक था.

20वीं शताब्दी में, काम के घंटे कम हो गए. यह इसलिए हुआ क्योंकि अब श्रम के लिए प्रतिस्पर्धा होने लगी. श्रमिकों के आगे भी विकल्प खुलने लगे. न सिर्फ काम के घंटे कम हुए बल्कि मजदूरी भी बढ़ी. 1891 में भारत में पहला कारखाना कानून बना था. आगे इस कानून में बदलाव कर काम के घंटों को घटाकर 12 घंटे कर दिया गया और एक साप्ताहिक अवकाश रखा गया. भारत में 1918 में पहली संगठित यूनियन बनी थी. मद्रास लेबर यूनियन की स्थापना बी.पी. वाडिया ने की थी. 1922 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने अधिकतम साप्ताहिक कार्य घंटों को घटाकर 60 घंटे करने की सिफारिश की.

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कार्य सप्ताह 40 घंटे का होने लगा. कर्मचारियों के मानवाधिकार,आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर विमर्श हुआ. 1942 में डॉ. अंबेडकर ने भारतीय श्रम सम्मेलन के काम के घंटे 12 से घटाकर 8 घंटे करने की बात कही. 1948 में कारखाना कानून में बदलाव कर अधिकतम कार्य घंटों को घटाकर प्रति सप्ताह 48 घंटे और प्रतिदिन 9 घंटे कर दिया गया. 1995 में, चीन ने 40 घंटे का सप्ताह अपनाया, शनिवार को आधे दिन का काम खत्म कर दिया.

21 वीं सदी में तो फ्रांस ने साल 2000 में 35 घंटे का कार्य सप्ताह अपनाया. 2000 के दशक के मध्य में, नीदरलैंड पहला ऐसा देश था, जहां कुल औसत कार्य सप्ताह 30 घंटे से कम हो गया था. आज अमेरिका में कर्मचारी हफ्ते में 33 घंटे काम करते हैं. सबसे कम औसत साप्ताहिक कार्य घंटों के मामले में सबसे आगे नीदरलैंड है, जहां यह 27 घंटे है, और फ्रांस में यह 30 घंटे है. जर्मनी में प्रति सप्ताह सबसे कम औसत कार्य घंटे 25.6 घंटे है.

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