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क्या मंदिर में हुई शादी वैध नहीं? इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

Prayagraj Hindi News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंदिर, घर या किसी खुली जगह पर हुए विवाह को लेकर बड़ा फैसला दिया है. आइए जानते हैं, क्या हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुई शादी को वैध माना जाएगा. इस फैसले के पीछे दरअसल मामला क्या है?  

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Allahabad High Court
Allahabad High Court
Zee Media Bureau|Updated: Apr 17, 2025, 09:05 PM IST
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Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि अगर विवाह हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ है, तो उसका स्थल चाहे मंदिर हो, घर हो या कोई खुली जगह विवाह वैध माना जाएगा. कोर्ट ने कहा कि आर्य समाज मंदिर में सम्पन्न हुआ विवाह भी हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 7 के अंतर्गत वैध है, बशर्ते वह वैदिक या अन्य प्रासंगिक हिंदू संस्कारों के अनुसार हो.

याचिका का मामला
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की एकल पीठ ने बरेली निवासी महाराज सिंह की याचिका खारिज करते हुए की. याचिका में महाराज सिंह ने आईपीसी की धारा 498-A (दहेज उत्पीड़न) के तहत चल रही आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी. उनका तर्क था कि उनका विवाह आर्य समाज मंदिर में हुआ था, जिसे वैध नहीं माना जा सकता.

कोर्ट का जवाब
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विवाह चाहे आर्य समाज मंदिर में हो, अगर उसमें कन्यादान, पाणिग्रहण, सप्तपदी और मंत्रोच्चार जैसे वैदिक संस्कार हुए हैं, तो वह विवाह पूरी तरह से वैध है.

कोर्ट ने यह भी माना कि आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाण पत्र भले ही वैधानिक रूप से अंतिम सबूत न हो, लेकिन यह "बेकार कागज" नहीं है. भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 के तहत इसे उस पुरोहित के माध्यम से प्रमाणित किया जा सकता है, जिसने विवाह कराया हो.

आर्य समाज पर कोर्ट की टिप्पणी
कोर्ट ने आर्य समाज को एक एकेश्वरवादी हिंदू सुधार आंदोलन बताते हुए कहा कि इसकी स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने 10 अप्रैल 1875 को की थी. आर्य समाज जातिवाद के विरोध और धार्मिक सुधार का प्रतीक है.

पंजीकरण जरूरी नहीं
कोर्ट ने यह भी कहा कि विवाह यदि हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न हुआ है, तो विवाह का पंजीकरण न होना उसे अवैध नहीं बनाता. चाहे वह 1973 के नियम हों या 2017 के विवाह पंजीकरण नियम, इनका पालन न होना भी विवाह की वैधता को नहीं बदलता.

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